Budh Pradosh Vrat 2020: इस कथा को पढ़े बिना अधूरा माना जाता है व्रत

punjabkesari.in Wednesday, Jan 08, 2020 - 10:26 AM (IST)

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सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा का विधान बताया जाता है। कहते हैं कि भोलेनाथ एक ऐसे देव हैं, जो एक लोटा जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। जैसे कि सोमवार के दिन उनका पूजन किया जाता है, ठीक उसी तरह हर महीने में आने वाले प्रदोष व्रत पर भी उनका पूजन किया जाता है। आज साल 2020 का पहला प्रदोष व्रत है और जोकि बुधवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इस बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। प्रदोष व्रत में बुध प्रदोष का काफी महत्‍व है, इसलिए बुध प्रदोष कथा को ही कहने का विधान बताया गया है। जो लोग इस दिन व्रत नहीं कर पाते वे आज के दिन व्रत कथा जरूर पढ़े या सुनें। 
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प्राचीन काल की कथा है, एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लाने के लिए ससुराल पहुंचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जाएगा। उस पुरुष के सास-ससुर ने, साले-सालियों ने उसको समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन वह पुरुष नहीं माना। विवश होकर सास-ससुर को अपने जमाता और पुत्री को भारी मन से विदा करना पड़ा।
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पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर से बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया। जब वह पानी लेकर लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी पराये पुरुष के लाए लोटे से पानी पीकर, हंस-हंसकर बात कर रही है। वह पराया पुरुष बिल्कुल इसी पुरुष के शक्ल-सूरत जैसा था। यह देखकर वह पुरुष दूसरे अन्य पुरुष से क्रोध में आग-बबूला होकर लड़ाई करने लगा। धीरे-धीरे वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। इतने में एक सिपाही भी आ गया और उसने सिपाही ने स्त्री से पूछा कि सच-सच बता तेरा पति इन दोनों में से कौन है? लेकिन वह स्त्री चुप रही क्योंकि दोनों पुरुष हमशक्ल थे।
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बीच राह में पत्नी को इस तरह देखकर वह पुरुष मन ही मन शंकर भगवान की प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मुझे और मेरी पत्नी को इस मुसीबत से बचा लो, मैंने बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर जो अपराध किया है उसके लिए मुझे क्षमा करो और भविष्य में मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी। शंकर भगवान उस पुरुष की प्रार्थना से द्रवित हो गए और उसी क्षण वह अन्य पुरुष कहीं अंर्तध्‍यान हो गया। वह पुरुष अपनी पत्नी के साथ सकुशल अपने नगर को पहुंच गया। इसके बाद से दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत करने लगे। 
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