Ashad sankranti: जानें, कब पड़ रही है आषाढ़ संक्रांति और उससे जुड़ी खास जानकारी

punjabkesari.in Thursday, Jun 11, 2020 - 07:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ashad sankranti 2020: हमारे ज्योतिष शास्त्र और हमारी संस्कृति के मुताबिक सूर्य का राशि परिवर्तन एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस राशि परिवर्तन की बहुत धार्मिक महत्ता भी होती है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में सूर्य को देवता का दर्जा दिया गया है और इन्हें प्रकाश, ऊर्जा, आध्यात्मिक शक्ति, आशा और पौरुष प्रवृत्ति का प्रतीक माना गया है। इसे आत्मा का कारक भी कहा गया है और इसी वजह से लोग प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करते हैं। सूर्य हमें सदैव सकारात्मक चीजों की ओर प्रेरित करते हैं। दिशाओं में यह पूर्व दिशा के स्वामी होते हैं जबकि धातुओं में यह तांबा और सोने का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह जन्म कुंडली में पिता का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है और मेष राशि में यह उच्च जबकि तुला राशि में नीच का होता है। सूर्य ग्रह कभी वक्री चाल नहीं चलता। सूर्य के राशि परिवर्तन से जातकों के राशिफल पर तो असर पड़ता ही है साथ ही सूर्य के परिवर्तन से सौर वर्ष के मास की गणना भी की जाती है। सूर्य चाल के आधार पर ही हिंदू पंचांग की गणना संभव है। सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है तो उसे एक सौर माह कहा जाता है । राशि चक्र में 12 राशियां होती हैं। इसलिए संपूर्ण राशि चक्र को पूरा करने में सूर्य को एक वर्ष लगता है।

सूर्य का राशि परिवर्तन Surya Rashi Parivartan/Sun Transit 2020
सूर्य के राशि परिवर्तन को सक्रांति कहा जाता है। सूर्य 14 मई को शाम 5:33 पर वृषभ राशि में गए थे और अब 14 जून को रविवार के दिन मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। मिथुन राशि में सूर्य का संक्रमण आषाढ़ सक्रांति कहलाता है। आषाढ़ सक्रांति 14 जून को रात्रि 23:53 पर आरंभ होगी । इस सक्रांति का स्नान और पुण्य काल अगले दिन प्रातः काल 06:17 तक रहेगा।

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आषाढ़ संक्रांति पूजा करने के लिए अनुष्ठान Rituals to perform Ashaadh sankranti Puja
शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ सक्रांति के दिन तीर्थ स्नान, जप-पाठ, दान आदि का विशेष महत्व रहता है इसलिए सक्रांति पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण तीनों ही समय में यथाशक्ति दान कार्य करने चाहिए। किसी कारणवश जो लोग तीर्थ स्थलों पर न जा पाएं, उन्हें अपने घर में ही स्नान व दान कार्य कर लेना चाहिए।

आषाढ़ संक्रांति का महत्व Significance of Ashaadh sankranti
ऐसी मान्यता भी है कि आषाढ़ मास में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारी रहते हुए नित्य प्रति भगवान लक्ष्मी नारायण की अगर पूजा अर्चना की जाए तो पुण्य फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस मास में विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ भी करना चाहिए तथा एकादशी तिथि, अमावस्या तिथि और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन, छाता, खड़ाऊं, आंवले, आम, खरबूजे आदि फलों, वस्त्र व मिष्ठान आदि का दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करना चाहिए। इससे जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति होती है और आशाओं व खुशियों का संचार भी होता है। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में इस सक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में भी मनाया जाता है।

गुरमीत बेदी
gurmitbedi@gmail.com

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Niyati Bhandari

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