Aprajita Puja Vastu Tips: घर, नौकरी और कारोबार में चल रही हर समस्या का हल है अपराजिता पूजा
punjabkesari.in Monday, Sep 29, 2025 - 03:36 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Aprajita Puja Vastu Benefits: हिन्दू धर्म और वास्तु शास्त्र में अपराजिता पूजा का विशेष स्थान है। अपराजिता शब्द का अर्थ है – जिसे कोई पराजित न कर सके। मां अपराजिता देवी शक्ति का वह रूप हैं जो साधक को विजय, सफलता और सुरक्षा प्रदान करती हैं। वास्तु शास्त्र में अपराजिता पूजा का सीधा संबंध घर, भूमि, कार्यक्षेत्र और नए आरंभ से है। यदि घर या व्यवसाय में नकारात्मक ऊर्जा, असफलता या विवाद हो, तो अपराजिता पूजा करके संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित किया जा सकता है। अपराजिता पूजा घर की दिशाओं को संतुलित करती है। इससे घर या कार्यस्थल में समृद्धि, शांति और स्थिरता आती है। वास्तु दोष या निर्माण संबंधी अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
Benefits of Aparajita Puja from Vastu point of view वास्तु दृष्टि से अपराजिता पूजा के लाभ
घर में शांति और सुख-समृद्धि आती है। नकारात्मक ऊर्जा और वास्तु दोष समाप्त होते हैं। शत्रु बाधा, कोर्ट-कचहरी और विवाद से मुक्ति मिलती है। करियर, नौकरी और व्यापार में विजय और उन्नति प्राप्त होती है। घर में लक्ष्मी और ऐश्वर्य का वास होता है।
मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है।
Procedure for performing Aparajita Puja at home as per Vastu वास्तु अनुसार, अपराजिता पूजा घर पर करने की प्रक्रिया
Choose the location according to Vastu वास्तु अनुसार करें स्थान का चयन
पूजा स्थल हमेशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में होना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर के मंदिर में पूजा करें। पूजा स्थान पर प्राकृतिक रोशनी और स्वच्छता बनी रहनी चाहिए।
शुद्धिकरण
गंगाजल से पूरे घर और पूजा स्थल का छिड़काव करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
कलश स्थापना
एक कलश में गंगाजल भरें, उसमें आम या अशोक के पत्ते रखें और ऊपर नारियल स्थापित करें। कलश को पूजा स्थल के उत्तर-पूर्व दिशा में रखें।
देवी का आह्वान
मां अपराजिता की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करें। दीपक और धूप जलाएं।
निम्न मंत्र का जाप करें:
ॐ ह्रीं अपराजितायै नमः॥
पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा
देवी को स्नान, वस्त्र, आभूषण और फूल अर्पित करें। रोली, अक्षत और मौली से तिलक करें। पुष्पमाला अर्पित करें।
वास्तु दीपदान
घर के प्रत्येक कोने (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) और मध्य भाग में दीपक जलाएँ। विशेष रूप से उत्तर-पूर्व दिशा में दीपक रखना शुभ माना गया है।
मंत्रजाप और स्तोत्र
“अपराजिता स्तोत्र” या “दुर्गा सप्तशती” के नवमी अध्याय का पाठ करें। 108 बार “ॐ ह्रीं अपराजितायै नमः” का जाप करें।
प्रसाद और भोग
देवी को फल, मिठाई और पंचमेवा अर्पित करें। हलवा, पूड़ी और चना का भोग सबसे उत्तम माना गया है।
हवन (वैकल्पिक)
गाय के घी, गुग्गुल और समिधा से छोटा हवन करें। प्रत्येक आहुति पर मंत्र बोलें – ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा॥
आरती और वंदना
देवी की आरती करें और भक्तिभाव से प्रार्थना करें। पूजा पूर्ण होने पर प्रसाद वितरित करें।