अपने अंदर सोख लें आदि शंकराचार्य की प्रतिभा को, बेहतर होगा जीवन

punjabkesari.in Saturday, Nov 13, 2021 - 11:28 AM (IST)

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8 वीं शताब्दी के अद्वैत वेदांत के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य की शिक्षाएं हाल ही में उस समय पुनर्जीवित हो गईं जब केदारमठ में इस विद्वान के बुत का अनावरण किया गया। पौराणिक चरित्र शंकराचार्य का जन्म केरल में परियार नदी के तट पर स्थित कलाडी नामक गांव में हुआ। उनका संबंध बेहद गरीब ब्राह्मण परिवार से था। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में अपने घर को छोड़ दिया। उनके मन में उस समय उच्च शिक्षा को ग्रहण करने की आंतरिक मंशा जागी। सत्य की उनकी खोज ने उन्हें भारत भ्रमण के लिए प्रेरित किया तथा अंतत: उन्होंने केदारमठ का रुख किया जहां पर 32 वर्ष की आयु में उन्होंने समाधि ली। 

परियार नदी में स्नान के दौरान एक बार उन्हें एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया।  उन्होंने अपनी माता को कहा कि मगरमच्छ तभी उनको छोड़ेगा यदि वह उनको संन्यास लेने की अनुमति प्रदान कर देंगी। उनकी माता ने अनिच्छा से उनका आग्रह स्वीकार कर लिया तथा इस घटना से उनके जीवन का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ। अपने अल्प जीवनकाल में शंकराचार्य ने कांची, कामरूप (असम), कश्मीर, केदार तथा बद्रीधाम जैसे विश्व विख्यात आध्यात्मिक केंद्रों की यात्राएं कीं। श्रीनगर में उन्होंने तांत्रिकों के साथ बहस में हिस्सा लिया। अद्वैत वेदांत के प्रसार के लिए उन्होंने श्रीनगर, द्वारिका, पुरी, जोशीनाथ जैसे चार मठों को स्थापित किया। उनके पास सभी धार्मिक अनुष्ठानों तथा वैदिक ज्ञान था। 

एक अन्य कहानी के अनुसार युवा अवस्था में शंकराचार्य ने एक गरीब ब्राह्मण परिवार के घर की यात्रा की। उस परिवार की महिला ने उन्हें सूखे आंवले खाने को दिए। उसके पास यही एकमात्र खाने की वस्तु थी जो उस महिला ने शंकराचार्य को दी। इस बात से शंकराचार्य बेहद प्रभावित हुए कि महिला के पास जो भी घर में उपलब्ध था उसने उन्हें खाने को दे दिया। महिला की ऐसी दयालुता के कारण उनके मन में देवी लक्ष्मी के प्रति आस्था पैदा हुई।  इस कहानी से पता चलता है कि शंकराचार्य ने किस तरह से कनकधारास्तोत्रम की रचना की। 

शंकराचार्य की अलौकिक शक्तियां उस समय जागृत हुईं जब उन्होंने विद्वान जोड़े मंदना मिश्रा तथा उनकी पत्नी उभाया भारती से बिहार के मिथिला में मुलाकात की। मिश्रा भी उन्हीं की तरह प्रतिभाशाली थे। दोनों के बीच विवेचना हुई। भारती ने मध्यस्थ की भूमिका अदा की। उन्होंने घोषणा की कि शंकराचार्य जिन्होंने आंतरिक ज्ञान हासिल कर रखा था, पति से ज्यादा बेहतर हैं। उभाया ने हालांकि शंकराचार्य को चुनौती देते हुए कहा कि पूरा वैदिक ज्ञान तब तक निश्चित नहीं है यदि उनके पास कामशास्त्र, कामुक कला की समझ नहीं है। तब आदि शंकराचार्य ने बिना मृत्यु को प्राप्त हुए शरीर को छोड़ने की यौगिक तकनीक पाराकाया प्रवेश को अपनाया तथा बिना जन्म लिए दूसरे शरीर में दाखिल हो गए। उन्होंने अमरुका नामक मृत सम्राट के शरीर में प्रवेश किया। हालांकि उनके शरीर ने कामशास्त्र की शिक्षा ले ली तथा उभाया भारती ने शंकराचार्य को एक महान वैदिक पंडित घोषित किया। 

अद्वैत वेदांत की शीर्ष परम्परा का मुकाम आदि शंकराचार्य ने हासिल किया। उन्होंने भारत वर्ष का भ्रमण किया और वेदों के ज्ञान का प्रसार किया। उन्होंने उपनिषिद, भागवत गीता  तथा भ्रम सूत्र जैसे तीन प्रमुख स्रोतों का ज्ञान हासिल किया।  अद्वैत वेदांत एक अद्वैतवादी विचार है जिसका मानना है कि यहां पर केवल एकमात्र शीर्ष सत्य है और वह ही ब्राह्मण है। ब्राह्मण न तो परमेश्वर है और न ही रचनाकार है। मगर उससे परे शंकराचार्य ने माना कि योग में मन की शुद्धता तथा स्थिरता से ही अंतिम सत्य हासिल किया जा सकता है।  इस तथ्य को नाकारा नहीं जा सकता कि आदि शंकराचार्य हिंदू धर्म का सार समझने के लिए एक महान बुद्धि रखते थे। इसके लिए सत्य की खोज को हासिल करने की अटूट खोज उन्होंने जारी रखी। 

आदि शंकराचार्य के तत्व ज्ञान को हम निम्रलिखित पद्य से जान सकते हैं :

‘ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या जीवो ब्रह्मएव न अपरहा’

इसका अभिप्राय: यह है कि जगत में एकमात्र सर्वोच्च वास्तविकता है जो ब्राह्मण है। विश्व वास्तविक नहीं है तथा कोई एक ब्राह्मण से भिन्न नहीं है। सभी मतभेद तथा अधिकता मोहमाया है। हिंदू धर्म में जीवन एक स्थिर व्यक्तित्व की स्थिर जांच-पड़ताल है। यही जीवन तथा आदि शंकराचार्य के कार्यों का सार है। आज हिंदू  धर्म उधेड़बुन में है तथा इसने असहनशीलता के उत्थान को देखा है। आइए शंकराचार्य की प्रतिभा को अपने अंदर सोख लें तथा अपनी सच्ची परम्पराओं को पुन: स्थापित करें।


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Content Writer

Jyoti

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