Acharya Vinoba Bhave Story: जब आचार्य विनोबा भावे की बात सुनकर एक अमरीकी पर्यटक का शर्म से झुक गया सिर

punjabkesari.in Tuesday, Apr 02, 2024 - 12:47 PM (IST)

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Acharya Vinoba Bhave: आचार्य विनोबा भावे अपने ज्ञान और सदविचारों के कारण समाज के हर वर्ग में लोकप्रिय थे। लोग दूर-दूर से उनसे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते और संतुष्ट होकर जाते। उनके शिष्यों में कई विदेशी भी शामिल थे। एक बार आचार्य विनोबा भावे पदयात्रा करते एक शहर में पहुंचे। वहां उन्हें एक अमरीकी पर्यटक मिला जो उनसे काफी प्रभावित था। उस अमरीकी ने विनोबा भावे के साथ कुछ दिन बिताए और उनसे कई विषयों पर चर्चा की।

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विदा लेते समय अमरीकी ने कहा, ‘‘मैंने आपसे और आपके देश से काफी कुछ सीखा है और अब मैं अपने मुल्क वापस जा रहा हूं। अपने देश वासियों को मैं आपकी ओर से क्या संदेश दूं जिससे उन्हें लाभ पहुंचे ?’’ 

विनोबा जी कुछ क्षण के लिए गंभीर हो गए फिर बोले, ‘‘मैं क्या संदेश दे सकता हूं। मैं तो बहुत छोटा आदमी हूं और आपका देश बहुत बड़ा है। इतने बड़े देश को कोई कैसे उपदेश दे सकता है ?’’ लेकिन अमरीकी पर्यटक नहीं माना। 

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जब उसने काफी जिद की तो विनोबा बोले, ‘अपने देशवासियों से कहना कि वे अपने कारखानों में साल में तीन सौ पैंसठ दिन काम करके खूब हथियार बनाएं, क्योंकि तुम्हारे आयुध कारखानों और नागरिकों को काम चाहिए। काम नहीं होगा तो बेरोजगारी फैलेगी। किन्तु जितने भी हथियार बनाए जाएं उन्हें तीन सौ पैंसठवें दिन बेकार समझ कर समुद्र में फैंक दिया जाए।’ 

विनोबा जी की बात का मर्म समझकर अमरीकी पर्यटक का सिर शर्म से झुक गया।

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Content Editor

Prachi Sharma

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