106th Birth Anniversary Bhandari Shri Padma Chandra Ji: मानवता के धर्मध्वज थे ‘भंडारी श्री पद्मचन्द्र जी’

punjabkesari.in Tuesday, Oct 04, 2022 - 10:46 AM (IST)

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106th Birth Anniversary Bhandari Shri Padma Chandra Ji: भारतीय संत-परम्परा के प्रतिनिधि मुनि शिरोमणि उत्तर भारतीय प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचंद्र जी म.सा. ने जाति, धर्म, सम्प्रदाय, देश-प्रदेश आदि की परिधियों से मुक्त रहकर अपना संपूर्ण जीवन मानव-मंगल और विश्व कल्याण के लिए समर्पित किया। शिक्षा, चिकित्सा और व्यसन मुक्ति के लिए उन्होंने आजीवन अभियान चलाया। उनकी मंगलमय प्रेरणाओं से उत्तर भारत में सैंकड़ों स्कूलों, कालेजों, लाइब्रेरियों, अस्पतालों,  डिस्पैंसरियों और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना हुई, जिनसे आज भी हजारों-लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।  

गुरुदेव का जन्म हरियाणा के हलालपुर गांव (जिला सोनीपत) में विजयदशमी के पावन दिन ईस्वी सन् 1917 को हुआ। इस वर्ष उनकी 106वीं जन्म जयंती है। 17 वर्ष की अवस्था में जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म.सा. के प्रशिष्य एवं संस्कृत-प्राकृत विशारद पंडित रत्न परम पूज्य श्री हेमचंद्र जी म.सा. के शिष्य के रूप में उन्होंने जैन दीक्षा स्वीकार की। 

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कुछ ही वर्षों में वह जैन और जैनेतर दर्शन के अधिकारी विद्वान बन गए। सेवा, स्वाध्याय, धर्मप्रभावना, जन-कल्याण आदि विविध गुणों के भंडार होने से आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म.सा. द्वारा इनको ‘भंडारी’ उपनाम से विभूषित किया गया।  सन् 1986 में आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी म.सा. ने गुरुदेव श्री भंडारी जी म.सा. को प्रवर्तक नियुक्त कर उत्तर भारत के श्रमण समाज का नेतृत्व करने का वृहद् दायित्व प्रदान किया। भंडारी जी म.सा. के दिशा-दर्शन में उत्तर भारत में जैन धर्म का महान उत्कर्ष हुआ। उन्होंने संघ और समाज को एक सूत्र में पिरोया। 

समाज-सुधार और समाज सेवा के क्षेत्र में गुरुदेव ने अनगिनत कार्य किए, जैसे कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन करवा कर समाज में वितरण कराया। लाखों लोगों को व्यसनों से मुक्त करके सदाचारी जीवन का अनुयायी बनाया। आपकी प्रेरणा से लाखों बालक-बालिकाओं को पुस्तकें, कॉपियां, पैन, स्कूल-ड्रैस आदि उपलब्ध कराए गए। यह पुनीत कार्य आज भी उनके शिष्यों और भक्तों द्वारा नियमित किया जा रहा है। ‘अन्नदानम’ कार्यक्रम शुरू कराया, जो आज भी जारी है। प्रतिवर्ष हजारों जरूरतमंद परिवार अन्न-वस्त्रादि से लाभांवित होते हैं। एक और ऐतिहासिक कार्य गुरुदेव ने अपने शिष्य श्रुताचार्य साहित्य सम्राट प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म.सा. को प्रेरित करने का किया।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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