गुरु पूर्णिमा: जानिए, कैसे दैविक शक्तियों से आदान-प्रदान का माध्यम बनते हैं गुरु
punjabkesari.in Monday, Jul 18, 2016 - 11:12 AM (IST)

ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् ।
मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ॥
ध्यान की नींव गुरु की छवि है, पूजा की नींव गुरु के चरण हैं, गुरु के वाक्य मंत्र के सामान हैं, मोक्ष केवल गुरु कृपा से ही संभव है। गुरु की मान्यता केवल वैदिक संस्कृति में पाई जाती है, अन्य किसी भी भाषा में गुरु का पर्यायवाची नहीं है। अध्यापक या स्वामी के पर्याय तो मिल जाते हैं परंतु गुरु इन दोनों से ऊपर हैं।
गुरु आपके और दैविक शक्तियों के बीच के सेतु और दैविक शक्तियों से आदान-प्रदान का एक मात्र माध्यम होते हैं। गुरु आपकी क्षमताओं को समझते हुए आपके लिए ऐसा साधना का मार्ग प्रशस्त करते है जिसके आप अधिकारी हो।
गुरु मां के समान है और शिष्य शिशु के सामान। गुरु को पता होता है कि शिष्य को क्या एवं कितना चाहिए और गुरु वही शिष्य को प्रदान करते हैं। गुरु ज्ञान का भंडार एवं स्तोत्र होते हैं किन्तु शिष्य में गुरु उतना ही ज्ञान हस्तांतरित करते हैं जितना कि शिष्य धारण कर सके।
ज्ञान गरम पानी के समान होता है और शिष्य ठंडे पत्थर के समान। यदि आप अत्यधिक गरम पानी को एक ठंडे पत्थर पर डालें तो वह पत्थर टूट जाएगा। गुरु ज्ञान को आहिस्ते से शिष्य की क्षमता के अनुसार शिष्य को हस्तांतरित करते हैं।
गुरु का मिलना बहुत दुर्लभ है परन्तु गुरु की खोज में आप दूसरों की सुनी सुनाई बातों पेर मत जाइए, योग पूर्ण रूप से अनुभव के विषय में है और ये पूर्तः आपका ही अनुभव और अंतर दृष्टि है जो आपको आपके गुरु तक ले जाती है। जब आप को गुरु संगत की प्राप्ति हो जाती है फिर तब आप अन्य किसी भी प्रवचन को सुनने या ज्ञानी के पास अपने प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए जाने की आवशयकता नहीं महसूस करते है, जब आप अपने गुरु को पा लेते हैं आपकी खोज समाप्त हो जाती है।
गुरु पूर्णिमा एक अत्यधिक शक्तिशाली दिन है, इस दिन गुरु कि उपस्थिति मात्र से ही आपको आंतरिक संसार के अभूतपूर्व अनुभव होते हैं एवं आपकी क्रमागत उन्नति पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है।
योगी अश्विनी
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