चीन के बदलते बोल,खोलते हैं उसकी नीयत की पोल

punjabkesari.in Thursday, Apr 07, 2016 - 06:25 PM (IST)

यूएन में भारत द्वारा आतंकी मसूद अजहर पर बैन लगाने के प्रस्ताव पर रुकावट डालने के बाद लगता है कि चीन रक्षात्मक मुद्रा में आ गया है। यूएन में 15 में से 14 देश भारत के समर्थन में थे। भारत ने मजबूती से अपना पक्ष रखा था। अब चीन के उप प्रमुख ल्यू जिनसोंग कहते हैं कि यूएन द्वारा किसी व्यक्ति को आतंकी करार देना गंभीर मामला है। उन्होंने अपने देश के रवैए के बारे में कहा है कि उनका देश जज नहीं हो सकता। इस गंभीर मसले पर बातचीत करनी चाहिए। जिनसोंग यदि ऐसा समझते हैं तो यह तय करना यूएन का काम था,चीन ने चौधराहट क्यों दिखाई। बीजिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ली इससे अलग ही राग अलाप रहे हैं। उन्होंने चीन के फैसले का समर्थन किया था। उन्होंने फरमाया कि उनका देश तथ्यों और नियमों के आधार पर एेसे मुद्दों पर यथार्थवादी और उचित तरीके से कदम उठाता है। इस प्रकार एक ही मुद्दे पर चीन दो विभिन्न बयान सामने आए हैं। 


जिनसोंग ने भारत को नसीयत भी दी है। वे कहते हैं कि पाकिस्तान दुश्मन नहीं,बल्कि भारत का पड़ोसी देश है। अब तक पाक द्वारा उठाया गया कश्मीर का मुद्दे और आतंकी हमलों पर भारत का जो रवैया रहा है उसे पूरा विश्व जानता है। चीन भारत को यह नसीहत क्यों दे रहा है? भारत को पाकिस्तान के साथ कैसे संबंध बनाने हैं वह अच्छी तरह जानता है। विशेष बात यह है कि चीन को पाकिस्तान के आतंकवादी मसूद अजहर की चिंता क्यों होने लगी? आतंकवाद पर पाकिस्तान का चरित्र हमेशा दोहरा रहा है,यह अन्य देश जानते हैं। उसकी कथनी और करनी मेें अंतर है। सवाल है कि क्या चीन पाकिस्तान के जरिए भारत में अशांति कायम रखना चाह र​हा है। वह नहीं चाहता कि भारत किसी दृष्टि से सक्षम बने। चीन द्वारा वीटो पॉवर इस्तेमाल करने के बाद पाकिस्तान की हिम्मत और बढ़ गई है। पठानकोट आतंकी हमले के सबूत जुटाने भारत आई उसकी जीआईटी का रुख अपने देश जाते ही बदल गया। उसने इस हमले को ड्रामा करार दे दिया।

भारत ने अब भी उम्मीद नहीं छोड़ी है। विदेश सचिव एस जयशंकर का मानना है कि मसूद के मुद्दे पर चीन के इस कदम से भारत-चीन रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बड़ा झटका सहने करने के बाद भी भारत यूएन में चीन को इस मसले पर राजी करने की कोशिश करता रहेगा।

मसूद के मामले के बाद चीनी कंपनियों पर सिक्युरिटी क्लीयरेंस में सख्ती करने के भारतीय प्रस्ताव से ही चीन का सरकारी मीडिया परेशान हो गया। जबकि भारत में इसके बारे में समीक्षा करने की बात उठी थी। उम्मीद जताई जा रही थी कि चीन,भारत और रुस के विदेश म़ंत्रियों की होने वाली बैठक में सुषमा स्वराज इसे उठा सकती हैं। तीनों देश नए आर्थिक संगठन ब्रिक्स (ब्राजील,रुस,भारत,चीन और दक्षिण अफ्रीका) के सदस्य भी हैं।  


बदलते आर्थिक दृष्टिकोण से भी चीन का रुख भारत के प्रति बदलने का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारत की स्थिति मजबूत होते देखकर चीन को अपनी चिंता होने लगी है। कुछ समय पहले ऐसा आकलन किया गया था कि विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी के चलते जुलाई-सितंबर की तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.4 % रही है। चीन को पछाड़ते हुए भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली बन गई है। इसे एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है। इसका सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में बढ़कर 7.4 फीसदी हो गई। यह पहली तिमाही में 7 फीसदी थी। अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिकूल हालात के बीच चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है। जुलाई-सितंबर में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.9 फीसदी रही, जबकि रूस की वृद्धि दर में इस दौरान 4.1 फीसदी की गिरावट आई है। ब्राजील के बारे में आशंका जताई गई कि उसकी अर्थव्यवस्था में 4.2 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

मसूद अजहर मामले में चीन के इस कदम का एक बड़ा असर देखने को यह मिला कि भारत में उसके सामान का बहिष्कार किए जाने की आवाज उठने लगी। यानि भारतीय जनता में चीन के प्रति खासी नाराजगी देखी गई। इससे चीन को आभास हो गया होगा कि भारत और पाकिस्तान में जमीन—आसमान का अंतर है।


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