वैश्विक रुख तय करेगा शेयर बाजारों की दिशा, कायम रहेगा उतार-चढ़ाव का दौर
punjabkesari.in Sunday, Mar 27, 2022 - 11:39 AM (IST)
मुंबईः रूस-यूक्रेन संघर्ष, मासिक डेरिवेटिव अनुबंधों के निपटान तथा कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से इस सप्ताह शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव रहने के आसार है। विश्लेषकों ने यह राय जताई है। विश्लेषकों का कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति-पक्ष की चिंताएं निवेशकों की धारणा को प्रभावित करती रहेंगी।
स्वस्तिका इन्वेस्टमार्ट लि. के शोध प्रमुख संतोष मीणा ने कहा, ‘‘इस सप्ताह मार्च के वायदा एवं विकल्प (एफएंडओ) अनुबंधों का निपटान है, जिससे बाजार के दायरे के बारे में दिशा मिलेगी। वैश्विक बाजारों में भी अब सुधार और कुछ स्थिरता दिख रही है। हालांकि, रूस-यूक्रेन के मुद्दे की वजह से अभी अनिश्चितता कायम है और इससे बाजार में उतार-चढ़ाव रहेगा।''
मीणा ने कहा कि भू-राजनीतिक तनाव तथा आपूर्ति-पक्ष की चिंता में कच्चे तेल के दाम फिर ऊंचाई पर पहुंच गए है। यदि इनमें और तेजी आती है, तो यह भारतीय बाजार की चिंता बढ़ाएगा। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च माह के डेरिवेटिव अनुबंधों के निपटान की वजह से इस सप्ताह बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। रेलिगेयर ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष-शोध अजित मिश्रा ने कहा, ‘‘बाजार भागीदारों की निगाह एक अप्रैल को आने वाले वाहन कंपनियों के बिक्री आंकड़ों पर भी रहेगी। वैश्विक मोर्चे पर रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े घटनाक्रमों पर सभी की निगाह रहेगी। कच्चे तेल की कीमतों पर भी निवेशक विशेष निगाह रखेंगे।''
उन्होंने कहा कि इसके अलावा बाजार का रुख रुपये के उतार-चढ़ाव तथा विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश के रुख से भी तय होगा। रूस-यूक्रेन संघर्ष में किसी तरह की कमी नहीं आने के बीच बीते सप्ताह सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में करीब एक प्रतिशत की गिरावट आई। इससे पिछले दो सप्ताह के दौरान इनमें लाभ दर्ज हुआ था। सैमको सिक्योरिटीज में इक्विटी शोध प्रमुख येशा शाह ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर बाजार में उतार-चढ़ाव रहेगा। चालू वित्त वर्ष के अंतिम मासिक निपटान के चलते बाजार की दिशा प्रभावित होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि अनिश्चितता के बावजूद बाजार जुझारू क्षमता दिखा रहा है। हालांकि, वैश्विक धारणा में कमजोरी का यहां भी असर पड़ सकता है। जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, ‘‘घरेलू बाजार वैश्विक घटनाक्रमों से दिशा लेगा। युद्ध समाप्त होने और कच्चे तेल की आपूर्ति बढ़ने से भारत अपनी जुझारू क्षमता को कायम रख सकता है। हालांकि, लघु अवधि में उतार-चढ़ाव चिंता का विषय रहेगा।''
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