महंगे होते इलाज पर SC ने जताई चिंता, कहा- सरकार जल्द उठाए जरूरी कदम

punjabkesari.in Friday, Mar 09, 2018 - 10:27 AM (IST)

नई दिल्लीः देश में मंहगे हो रहे मेडिकल इलाज पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि उसे कुछ न कुछ करना चाहिए क्योंकि जनता इतना मंहगा इलाज कराने में सक्षम नहीं है। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण ने हाल ही में कहा था कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के चार निजी अस्पतालों में मरीजों से लिए जाने वाले बिल में गैर अनुसूची वाली दवाओं और जांच की कीमत सबसे बड़ा हिस्सा होता है जिसमे लाभ 1192 फीसदी तक होता है।

भारत में मेडिकल उपचार की लागत ज्यादा
राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल मूल्य प्राधिकरण के विश्लेषण के अनुसार जीवन के लिए खतरा होने वाले निम्न रक्तचाप के उपचार के लिए आपात मामलों में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में लाभ 1192 फीसदी तक लिया जा रहा है। औषधि मूल्य नियामक ने हाल ही में कहा था कि ऐड्रनार 2 एमएल के इंजेक्शन का अधिकतम खुदरा मूल्य 189.95 रूपए है और अस्पतालों के लिए इसका खरीद मूल्य 14.70 रूपए होता है लेकिन मरीजों से कर सहित 5,318.60 रूपए वसूले जाते हैं। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा, ‘‘भारत में मेडिकल उपचार की लागत बहुत ही ज्यादा है। जनता को इतना ज्यादा कीमत होने की वजह से मेडिकल उपचार नहीं मिल पा रहा है। सरकार को इस संबंध में कुछ न कुछ करना चाहिए।’’
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प्रदूषण को रोकने के लिए होना चाहिए प्रचार
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब पीठ ने केन्द्र से जानना चाहा कि क्या उसने जनता के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के असर और ऐसी बीमारियों के इलाज पर खर्च होने वाली रकम के बारे में कोई अध्ययन कराया है। इस पर केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ए एन एस नाडकर्णी ने पीठ से कहा कि जनता के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का कुछ अध्ययन हुआ है और अभी भी कुछ अध्ययन जारी हैं। पीठ ने केन्द्र से कहा कि वायु प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिए उठाए जा रहे कदमों का व्यापक प्रचार होना चाहिए ताकि जनता को यह पता चल सके कि इस मामले में कुछ किया जा रहा है। इस पर नाडकर्णी ने कहा कि वायु प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिए उठाए जाने वाले कदमो के बारे में पहले से ही प्रचार किया जा रहा है। कोर्ट पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता की वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए 1985  में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।  


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