अमेरिकी बैंक संकट का भारत में असर, FPI निकालने लगे पैसे
punjabkesari.in Saturday, Mar 18, 2023 - 03:15 PM (IST)

नई दिल्लीः अमेरिकी बैंकिंग संकट का असर अब भारतीय शेयर बाजार पर साफ दिखने लगा है। मार्च महीने के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश में जो तेजी देखी जा रही थी, अब उसका ट्रेंड पलटने लगा है। इस कारण अब तक मार्च महीने के दौरान हुए एफपीआई निवेश के आंकड़े में कमी आई है।
इस सप्ताह हुई इतनी निकासी
एनएसडीएल (NSDL) के आंकड़ों के अनुसार, 17 मार्च को कारोबार समाप्त होने के बाद इस महीने इक्विटीज में एफपीआई का अब तक का निवेश 11,495 करोड़ रुपए है। इससे पहले 10 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के बाद मार्च महीने के दौरान एफपीआई के निवेश का आंकड़ा 13,450 करोड़ रुपए था। इसका मतलब हुआ कि इस सप्ताह यानी 13 मार्च से 17 मार्च के दौरान एफपीआई ने भारतीय बाजार से 7,953.68 करोड़ रुपए की निकासी की, जिसके कारण उनके शुद्ध निवेश में 2,045 करोड़ रुपए की कमी आई।
फैल चुका है बैंकिंग जगत का संकट
अमेरिका में सबसे पहले प्राधिकरणों से सिलिकॉन वैली बैंक को बंद किया। उसके बाद सिग्नेचर बैंक भी डूब गया। बैंकिंग जगत का संकट यहीं पर नहीं थमा। एक अन्य अमेरिकी बैंक फर्स्ट रिपब्लिक बैंक भी डूबने के कगार पर है, जिसे बचाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। दूसरी ओर यूरोप के सबसे पुराने बैंकों में से एक क्रेडिट सुईस भी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
महीने की शुरुआत में यह बड़ी डील
बैंकिंग व वित्तीय जगत के मौजूदा संकट के कारण पिछले सप्ताह भारतीय बाजार में बिकवाली देखी गई। सप्ताह के दौरान बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों सूचकांक करीब 2-2 फीसदी गिर गए। भारतीय शेयर बाजारों में हुई इस बिकवाली में एफपीआई का बड़ा योगदान रहा। इससे पहले तक एफपीआई इस महीने भारतीय बाजार में ठीक-ठाक पैसे लगा रहे थे। मार्च महीने की शुरुआत में ही अडानी समूह की चार कंपनियों को ब्लॉक डील के माध्यम से 15,446 करोड़ रुपए का एफपीआई निवेश मिला था।
बाजार पर इन फैक्टर्स का असर
भारतीय शेयर बाजारों ने इस सप्ताह की शुरुआत ही गिरावट के साथ की थी। पिछले सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने के कारण ऐसा हुआ था। इसके बाद सिग्नेचर बैंक के डूबने से निवेशक और डर गए। हालांकि बाद में क्रेडिट सुईस और फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को बचाने के लिए विभिन्न पक्षों के आगे आने से बाजार को कुछ राहत मिली। महंगाई के उम्मीद से बेहतर आंकड़ों ने भी धारणा को सुधारने का काम किया।
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