अगर आप भी भेजते हैं विदेश में पैसा तो जरूर पढ़ें ये खबर, लगेगा तगड़ा झटका
punjabkesari.in Friday, Jul 18, 2025 - 11:05 AM (IST)

बिजनेस डेस्कः अगर आपका बच्चा विदेश में पढ़ाई कर रहा है या आप अपनों को किसी कारण से विदेश पैसे भेजते हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय परिवार हर साल विदेश में पैसे भेजते समय छिपे हुए बैंक चार्ज और महंगे एक्सचेंज रेट की वजह से करीब ₹1,700 करोड़ (करीब $200 मिलियन) का नुकसान उठा रहे हैं। यह नुकसान इतनी चुपचाप होता है कि लोगों को इसका अंदाजा तक नहीं होता। अगर आप भी पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम से फंड ट्रांसफर करते हैं, तो यह खबर आपके होश उड़ा सकती है।
2024 में भारतीय परिवारों ने बच्चों की पढ़ाई के लिए विदेश पैसे भेजते समय करीब ₹1,700 करोड़ का नुकसान झेला है। यह खुलासा रेडसीर स्ट्रैटेजी कंसल्टेंट्स और ग्लोबल पेमेंट कंपनी वाइज की रिपोर्ट में हुआ है। वाइज, एक ग्लोबल क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट कंपनी है। मतलब ये कंपनी एक देश से दूसरे देश में पैसे भेजने का काम करती है।
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हर साल भेजे जाते हैं ₹85,000 करोड़ से ज्यादा
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से हर साल लगभग ₹85,000–93,500 करोड़ (करीब $10–11 बिलियन) विदेश भेजे जाते हैं, जिनमें 95% ट्रांजैक्शन पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम से होते हैं। बैंकों द्वारा 3–3.5% तक का एक्सचेंज रेट मार्कअप और कई अन्य छिपे हुए चार्ज लगाए जाते हैं।
एक परिवार को 75 हजार तक का नुकसान
अगर कोई परिवार साल में ₹30 लाख विदेश भेजता है, तो उसे बैंक चार्ज और एक्सचेंज रेट की वजह से ₹75,000 तक का नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पैसा भेजने में 2 से 5 दिन भी लगते हैं।
डिजिटल ट्रांसफर सस्ता लेकिन कम लोग कर रहे इस्तेमाल
डिजिटल तरीके से पैसे भेजने पर औसतन 5% फीस लगती है, जबकि पुराने यानी बैंक आधारित तरीके से यह लागत 7% तक पहुंच जाती है। UN का लक्ष्य है कि 2030 तक रेमिटेंस कॉस्ट को 3% से नीचे लाया जाए।
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कैसे करती है वाइज अलग काम?
वाइज कंपनी दोनों देशों में लोकल अकाउंट्स का इस्तेमाल करती है, जिससे पैसे ट्रांसफर करने में न तो एक्सचेंज रेट चार्ज लगता है और न ही अतिरिक्त फीस। यह सिस्टम पारंपरिक बैंकों के मुकाबले तेज़ और सस्ता है।
अमेरिका बना सबसे बड़ा डेस्टिनेशन
2024 में भारत अमेरिका को सबसे ज़्यादा स्टूडेंट्स भेजने वाला देश बन गया है। अमेरिका, UK, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों में अब 30–35% इंटरनेशनल स्टूडेंट्स भारतीय हैं। यह आंकड़ा 10 साल पहले सिर्फ 11% था।
खर्च और भी बढ़ेगा
अनुमान है कि 2030 तक विदेश में शिक्षा पर भारतीयों का खर्च दोगुना हो जाएगा। ऐसे में पैसे भेजने की प्रक्रिया को पारदर्शी और किफायती बनाना अब और भी जरूरी हो गया है।