सरकारी नीति के कारण किसानों को चुकाने पड़ते है कीटनाशकों के अधिक दाम

punjabkesari.in Sunday, Jun 10, 2018 - 02:42 PM (IST)

नई दिल्लीः कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों के शीर्ष संगठन पेस्टिसाइट्स मैन्युफैक्चरर्स एंड फॉर्म्युलेटर्स एसोसियेशन ऑफ इंडिया (पीएमएफएआई) और कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम पेस्टिसाइट्स मैन्युफैक्सरर्स (सीएपीएमए) ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2007 में टेक्निकल ग्रेड के पंजीयन के बगैर तैयार कीटनाशक फॉर्म्युलेशन के आयात की मंजूरी दिए जाने से देश में 10 बड़ी विनिर्माता कंपनियां बंद हो चुकी हैं या बेच दी गयी है जिसके कारण आयातित महंगें कीटनाशकों से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है।

इन दोनों संगठनों के अध्यक्ष प्रदीप दवे ने कहा कि वर्ष 2007 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 40 वर्ष पुरानी नीति में बदलाव कर दिया था और टेक्नीकल ग्रेड की लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया था जिसके कारण देश में यह स्थिति बनी है। उन्होंने दावा किया पूरी दुनिया में कीटनाशकों को लेकर इस तरह की नीति किसी भी देश में नहीं है जहां मात्र दो पेटेंटेड कीटनाशकों की बिक्री विदेशी कंपनियां कर रही है लेकिन भारत में बिक रहे 120 से अधिक कीटनाशकों की कीमतों में वैश्विक अनुपात में कई गुना अधिक कीमतें वसूल रही है।  

फसलों में लगने वाली विभिन्न तरह की बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किये जाने वाले पयाराजोसोफोरेन ईथाईल 70 डब्ल्यू की आयातित कीमत 2200 रुपए प्रति किलोग्राम है जिसे किसानों को 28,380 रुपए प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराया जाता है। इसी प्रकार से बिसपैरिबैक सोडियम 10 प्रतिशत एससी का आयातित मूल्य 670 रुपए प्रति लीटर है जिसे किसानों को 6640 रुपए लीटर की दर से बेजा जा रहा है। उन्होंने भारतीय कीटनाशक बाजार का उल्लेख करते हुए कहा कि अभी यह 20 हजार करोड़ रुपए का है लेकिन 17 हजार करोड़ रुपए का आयात किया जाता है। इससे न:न सिर्फ विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है बल्कि किसानों को भी कई गुना अधिक कीमतें चुकानी पड़ रही है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

jyoti choudhary

Recommended News

Related News