भारत पर मंडरा सकता है कर्ज का जोखिम, IMF ने दी चेतावनी

punjabkesari.in Wednesday, Dec 20, 2023 - 11:41 AM (IST)

नई दिल्लीः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा है कि केंद्र और राज्यों को मिलाकर भारत का सामान्य सरकारी कर्ज मध्यम अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 100 फीसदी के ऊपर पहुंच सकता है। आईएमएफ ने चेतावनी देते हुए कहा कि लंबी अवधि में भारत को कर्ज चुकाने में दिक्कत भी हो सकती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने में देश को बहुत अधित निवेश करना होगा। हालांकि इस पर भारत सरकार का कहना है कि सरकारी ऋण से जोखिम काफी कम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज भारतीय मुद्रा यानी रुपए में है।

'भारत को धन जुटाने के नए स्रोत तलाशने होंगे'

आईएमएफ ने अपने वार्षिक आर्टिकल 4 परामर्श रिपोर्ट में कहा, 'लंबी अवधि का जोखिम बहुत अधिक है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए भारत को बहुत अधिक निवेश करना होगा। इसके लिए भारत को पैसा जुटाने के नए और रियायती स्रोत ढूंढने होंगे और निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा।' यह रिपोर्ट IMF के सदस्य देशों की सहमति वाली निगरानी प्रक्रिया का हिस्सा है।

भारत ने नकारा IMF का दावा

वहीं आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक केवी सुब्रमण्यन ने एक बयान में कहा कि आईएमएफ का यह दावा अतिश्योक्ति जैसा है कि मध्यम अवधि में कर्ज जीडीपी के 100 फीसदी से अधिक पहुंचने का खतरा है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में शामिल लंबी अवधि में कर्ज चुकाने की क्षमता पर जोखिम के बारे में भी यही कहा जा सकता है। सरकारी कर्ज पर जोखिम बहुत कम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज रुपया में है।

सुब्रमण्यन ने कहा कि बीते दो दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगे झटकों के बावजूद भारत का सरकारी ऋण और जीडीपी का अनुपात 2005-06 के 81 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 84 फीसदी हुआ और 2022-23 में वापस घटकर 81 फीसदी पर आ गया।

IMF ने बढ़ाया भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान

आईएमएफ ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि पर आगे आने वाला जोखिम संतुलित है। आईएमएफ अधिक पूंजीगत व्यय और अधिक रोजगार के मद्देनजर भारत की वृद्धि दर का अनुमान 6 फीसदी से बढ़ाकर 6.3 फीसदी कर दिया है।

हालांकि भारत ने कहा है कि उसे 7 से 8 फीसदी की दर से वृद्धि होने की पूरी उम्मीद है। आईएमएफ ने कहा, ‘निकट भविष्य में वैश्विक वृद्धि दर में भारी गिरावट व्यापार एवं वित्तीय रास्तों से भारत को प्रभावित करेगी। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से जिंसों के दाम घटेंगे-बढ़ेंगे, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ जाएगा। देश में महंगाई के कारण खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि उपभोक्ता मांग और निजी निवेश उम्मीद से बेहतर रहने के कारण वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।’
 


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Content Writer

jyoti choudhary

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