भारत के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध क्यों चाहता है अमरीका
punjabkesari.in Sunday, Jul 02, 2023 - 05:24 AM (IST)

अमरीका ने 2022 में विश्व के सैन्य खर्च का 39 प्रतिशत खर्च किया। इसके बाद 13 प्रतिशत के साथ चीन का स्थान था। यूक्रेन युद्ध के बावजूद रूस ने केवल 3.9 प्रतिशत खर्च किया जबकि भारत ने 3.6 प्रतिशत खर्च किया। इसके बाद सऊदी अरब और यूनाइटेड किंगडम क्रमश: 3.3 और 3.1 प्रतिशत पर थे।
अमरीका की संघीय सरकार के रक्षा विभाग (डी.ओ.डी.) के पास वित्तीय वर्ष 2023 के लिए 2.01 ट्रिलियन अमरीकी डालर का बजटीय आबंटन है। यह मोटे तौर पर प्रतिबद्ध दायित्वों में 829.89 बिलियन अमरीकी डालर और अनुबंधों तथा वित्तीय सहायता पर 192.23 बिलियन अमरीकी डालर खर्च करता है।
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पी.आर.सी.) ने वित्तीय वर्ष 2023 के लिए करीब 224. 79 बिलियन डालर के वार्षिक रक्षा बजट की घोषणा की। तुलनात्मक रूप से भारत का वित्तीय वर्ष 2023-24 में 72.6 बिलियन डालर का रक्षा बजट है। चीन संयुक्त रूप से इंडो पैसेफिक सेनाओं से 17 प्रतिशत अधिक खर्च करता है। इसके विपरीत अमरीका रक्षा पर चीन की तुलना में 10 गुणा अधिक खर्च करता है। इसलिए भारत के रक्षा खर्च को बढ़ाने या भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरों और चुनौतियों को कम करने का एक बहुत मजबूत मामला है। चीन के रक्षा खर्च में वित्तीय वर्ष-22 की तुलना में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। यह चीन के रक्षा खर्च में लगातार 8वीं एकल अंकों वाली वृद्धि है। 2015 में 10.1 प्रतिशत की अंतिम दोहरे अंकों वाली वृद्धि दर्ज की गई थी।
अमरीका के रक्षा विभाग ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि चीन का वास्तविक सैन्य खर्च आधिकारिक तौर पर बताए गए आंकड़े से कम से कम दोगुना है। अगर यह सही मान लिया जाए तो यह अभी भी संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा अपनी रक्षा जरूरतों पर खर्च किए जाने वाले खर्च से 8 गुणा कम है। अपने सैन्य खर्च को लगातार बढ़ाने के पीछे चीन का उद्देश्य 3 गुणा है। उसे यह सुनिश्चित करना है कि पी.एल.ए. अपने सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम के साथ ट्रैक पर है। चीन को शताब्दी बैंच मार्क को पूरा करना होगा। अन्य बातों के अलावा पी.एल.ए. 2027 तक रणनीतिक उच्च अंत निरोध हासिल कर ले, 2035 तक पी.एल.ए. के आधुनिकीकरण के उद्देश्य को पूरा कर ले जो अंतत: सदी के मध्य तक एक विश्व स्तरीय सेना के विकास में परिणत होगा।
इनमें से कुछ संस्थाओं को परिप्रेक्ष्य में रखने के कारण इस तथ्य को रेखांकित करना है कि पहले 4 देशों की रक्षा संख्याओं के बीच बहुत बड़ा अंतर है। इसलिए यह दावा करना कि अमरीका भारत के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध चाहता है, केवल भारतीय रक्षा बाजार में मजबूत होना चाहता है, पूरी तरह से सही नहीं हो सकता। अमरीकी सैन्य औद्योगिक परिसर शायद ही रक्षा विभाग की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। वित्तीय वर्ष 2023 में यह भारत के कुल रक्षा बजट का करीब अढ़ाई गुणा 192.23 बिलियन अमरीकी डालर का अनुबंध प्रदान करेगा और अन्य दायित्वों का निर्वहन करेगा। इसके अलावा अमरीकी रक्षा उद्योग अब एक बार फिर यूरोप की रक्षा में महत्वपूर्ण रूप से लगा हुआ है।
तो फिर अमरीका-भारत के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध क्यों चाहता है? कारण पूरी तरह से रणनीतिक हैं। जैसा कि पूर्व अमरीकी रक्षा सचिव डोनाल्ड रुम्सफील्ड ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी, ‘‘कुछ ज्ञात है-ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम जानते हैं, हम यह भी जानते हैं कि ज्ञात अज्ञात है। यानी हम जानते हैं कि कुछ चीजें हैं जिन्हें हम नहीं जानते हैं। लेकिन अज्ञात अज्ञात ही है जिन्हें हम नहीं जानते।’’ 20वीं सदी के अंतिम दशक और 21वीं सदी के पहले 2 दशकों ने अमरीका को दिखाया कि भू-रणनीतिक गणना में एकमात्र स्थिर अज्ञात है और यह वह है जिसके लिए उसे तैयार रहना चाहिए।
नवम्बर 1989 में बॢलन की दीवार का गिरना, जिसने शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी, एक अज्ञात घटना थी। 9/11 जिसने 2 दशकों तक अमरीकी रक्षा मुद्रा को परिभाषित किया वह अज्ञात था। यूक्रेन के खिलाफ रूस की अकारण आक्रामकता फिर से अज्ञात थी। यह अज्ञात है कि अमरीका इससे बचने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वह इंडो-पैसेफिक में क्वाड, ऑक्स और दुनिया भर में ऐसे ही अन्य गठबंधन बनाना चाहता है।
इसमें भारत के लिए एक पूरी तरह से नया दृष्टिकोण बनाने का अवसर है जो 21वीं सदी के लिए उसके रक्षा ढांचे और रणनीतिक संबंधों दोनों को मजबूत कर सकता है। उस रिश्ते और ढांचे को 21वीं सदी की चुनौतियों, वास्तविकताओं और अनिवार्यताओं को ध्यान में रखना होगा और वास्तव में पिछली सदी के चिन्हों को खारिज करना होगा कि हमारे ङ्क्षथक टैंक जो सोचते हैं वे अभी भी दिखावा है। लंदन स्थित इंटरनैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के प्रकाशन-मिल्ट्री बैलेंस द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार आज भारत वास्तव में कितना स्वायत: है कि भारतीय सेना के 90 प्रतिशत से अधिक बख्तरबंद वाहन, 69 प्रतिशत लड़ाकू विमान वायु सेना और नौसेना द्वारा संचालित होते हैं।
सेना और नौसेना की 44 प्रतिशत पनडुब्बियां और युद्धपोत रूसी मूल के हैं। इनमें से 65 फीसदी जहाज रूसी मिसाइलों से लैस हैं। भारत का रक्षा स्वदेशीकरण कार्यक्रम अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। इसलिए यह जरूरी है कि पुराने प्रतिमानों को त्यागने की जरूरत है और एक नया दृष्टिकोण तैयार किया जाना चाहिए जो वास्तव में रक्षा तैयारियों के मामलों में ‘रणनीतिक स्वायत:’ की गारंटी देता है।-मनीष तिवारी