2500 वर्ष बाद की दुनिया को हम क्या देंगे

punjabkesari.in Monday, Aug 05, 2019 - 02:53 AM (IST)

मैं जीवन में पहली बार यूनान (ग्रीस) आया हूं जिसे पश्चिमी दुनिया की सभ्यता का पालना कहते हैं। यहां आज भी 2500 साल पुराने संगमरमर के विशाल मंदिर और 30 मीटर की ऊंची देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष या प्रमाण मौजूद हैं। जिन्हें देखकर पूरी दुनिया के लोग हतप्रभ हो जाते हैं। 

हमारा टूरिस्ट गाइड एक बहुत ही पढ़ा-लिखा व्यक्ति है, जिसने पुरातत्व पर पी.एचडी. की है और लंदन से मास्टर की डिग्री हासिल की है। उसने हमें 2 घंटे में यूनान का 3000 साल का इतिहास तारीखवार इतना सुंदर बताया कि हम उसके मुरीद हो गए। जब हमने इन भव्य इमारतों के खंडहरों को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया, तो उसने पलटकर एक ऐसा सवाल पूछा, जिसे सुनकर मैं सोच में पड़ गया। उसने कहा, ‘‘ये इमारतें तो 2500 साल बाद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता का प्रमाण दे रही हैं, पर क्या आज की दुनिया में हम कुछ ऐसा छोड़कर जा रहे हैं, जो 2500 वर्ष बाद भी दुनिया में मौजूद रहेगा’’। 

उसने आगे कहा,‘‘हम प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, जल, जमीन और हवा जितनी प्रदूषित पिछले 50 सालों में हुई है, उतनी पिछले 1 लाख साल में भी नहीं हुई थी। आज ग्रीस गर्मी से झुलस रहा है, हमारे जंगलों में आग लग रही है, रूस के जंगलों में भी लग रही है, कैलिफोर्नियाके जंगलों में भी लग रही है। यह तो एक ट्रेलर है। अगर ‘ग्लोबल वॉॄमग’ इसी तरह बढ़ती गई,तो उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के ग्लेशियर अगले 2-3 दशकों में ही काफी पिघल जाएंगे। जिससे समुद्र का जलस्तर ऊंचा होकर दुनिया के तमाम उन देशों को डुबो देगा, जो आज टापुओं पर बसे हैं।’’ उसे संस्कृति में आई गिरावट पर भी बहुत चिंता थी। उसका कहना था कि जिस संस्कृति को आज दुनिया अपना रही है, यह भक्षक संस्कृति है, जो भविष्य में हमें लील जाएगी। 

भेड़ चाल चलते हैं अधिकतर लोग
दुनिया के सबसे पुराने ऐतिहासिक सांस्कृतिक केन्द्र एथेंस नगर का यह टूरिस्ट गाइड हर रोज दुनिया के कोने-कोने से आने वाले पर्यटकों को घुमाता है और इसलिए इस तरह की बातचीत वह दुनियाभर के लोगों से करता है। जाहिर है कि दुनिया के हर हिस्से में विचारवान लोगों की सोच इस टूरिस्ट गाइड की सोच से बहुत मिलती है। पर प्रश्न है कि सब कुछ जानते-बूझते हुए भी हम इतना आत्मघाती जीवन क्यों जी रहे हैं? जवाब सरल है। किसी देश में सही सोचने वाले मुट्ठी भर लोग होते हैं। ज्यादातर लोग भेड़ों की तरह ताकतवर या पैसे वाले लोगों का अनुसरण करते हैं। अब वह ताकत जिसके पास होगी, वह अपनी मर्जी से दुनिया का नक्शा बनाएगा। फिर वह चाहे राज सत्ता के शिखर पर बैठा व्यक्ति हो या फिर कुबेर के खजाने पर बैठा हुआ। दोनों की ही सोच समाज से बिल्कुल कटी हुई या यूं कहें कि  जनहित के मुद्दों से हटी हुई होती है। इसलिए वे एक से एक वाहियात और फिजूल खर्ची वाली योजनाएं लेकर आते हैं। चाहे उससे देश के प्राकृतिक या आर्थिक संसाधनों का दोहन हो या समाज में विषमता फैले, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

ग्रीस ने कई तूफान झेले
ग्रीस का इतिहास दुनिया के तमाम दूसरे देशों की तरह है, जहां राज सत्ताओं ने या आक्रांताओं ने बार-बार तबाही मचाई और सब कुछ पूरी तरह नष्ट कर दिया। यह तो आम आदमी की हिम्मत है कि वह बार-बार ऐसे तूफान झेलकर भी फिर उठ खड़ा होता है और तिनके-तिनके बीन कर अपना आशियाना फिर बना लेता है। पिछली सदियों में जो नुक्सान हुआ, उसमें जन-धन की ही हानि हुई। पर अब जो पाश्विक वृत्ति की सत्ताएं हैं, वे लगभग दुनिया के हर देश में हैं। वह ऐसी तबाही मचा रही हैं, जिसका खामियाजा आने वाली पीढिय़ां बहुत गहराई तक महसूस करेंगी। पर उससे उबरने के लिए उनके पास बहुत विकल्प नहीं बचेंगे। 

राष्ट्राध्यक्षों की दोहरी नीति
जलवायु परिवर्तन के शिखर सम्मेलन में फ्रांस में दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष इकट्ठे हुए और सबने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ पर चिंता जताई और गंभीर प्रयास करने की घोषणाएं कीं पर अपने देश में जाकर मुकर गए, जैसे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पैरिस में कुछ कहा और वाशिंगटन में जाकर कुछ और बोला। राष्ट्राध्यक्षों की यह दोहरी नीति समाज और पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रही है। सूचना क्रांति के इस युग में हर देश की जागरूक जनता को इस नकारात्मक प्रवृत्ति के विरुद्ध मिलकर जोरदार आवाज उठानी चाहिए और अपने जीवन में ऐसा बदलाव लाना चाहिए कि हम प्रकृति का अंधाधुंध दोहन न कर, उसके साथ संतुलन में जीना सीखें। तभी हमारी भावी पीढिय़ों का जीवन सुधर पाएगा।-विनीत नारायण


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