हम अपने बच्चों को किस तरह का ‘शिमला’ देना चाहते हैं

punjabkesari.in Saturday, Jul 07, 2018 - 04:21 AM (IST)

मैं यहां शिमला में बैठी यह सोच रही हूं कि क्या गलत हुआ है। कहां है वह हरा-भरा हिल स्टेशन जहां मैं पली-बढ़ी हूं। मुझे याद आता है कि कैसे मैं अपनी यूनिफार्म पहन कर प्रतिदिन जोश में सुरक्षित स्कूल जाती थी क्योंकि उन दिनों शिमला में कारें नहीं होती थीं इसलिए हमें उनसे कुचले जाने का भी डर नहीं होता था। अब पहले पानी नहीं और ऊपर से मैं ट्रैफिक जाम देख सकती हूं। 

स्कूलों के आगे बच्चों को लेने आई गाडिय़ों का काला धुआं तथा उनके कारण लगा जाम और नि:संदेह अब कोई मॉल रोड तक भी पैदल चल कर नहीं जाता, जहां उन दिनों, यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारी तथा गण्यमान्य सैर करते थे। आज हमारे खुद के मुख्यमंत्री पांच कारों के काफिले के साथ मॉल रोड से तेजी से गुजर जाते हैं जबकि उस समय टहल रहे हर व्यक्ति को एक तरफ कर दिया जाता है। 

एक अन्य हैरानीजनक परिवर्तन है हर कहीं सीमैंट के बड़े-बड़े ब्लॉक्स का उभर आना। कहां हैं वे किचन गार्डन्स, खिले फूलों तथा कुदरती ढलानों वाली खूबसूरत इंगलिश काटेजिस जिन पर दौड़ कर बच्चे खुद अपने लिए नीचे से स्ट्राबेरीज लाते थे। नए हाईकोर्ट की इमारत शर्मनाक स्थिति में है। कैसे सरकार इस तरह के गंदे निर्माणों को बनने की आज्ञा देती है। यह न केवल खराब दिखाई देती है बल्कि इसने उस खूबसूरत दृश्य को भी अवरुद्ध कर दिया है जिसे देखने पर्यटक आते हैं। क्या हमें अपने पर्यटकों को लेकर कोई चिंता नहीं? निश्चित तौर पर नहीं। पर्यटकों को दूर रखने के लिए यहां काफी गंदगी फैला दी गई है। 

हे परमात्मा, मुझे सर्दियां और मौसम की बर्फ कितनी पसंद थी, हम अपने घरों में लकडिय़ों से आग जलाते थे और गर्म राख में आलू डाल देते थे। आइस स्केटिंग के लिए हम सुबह जल्दी उठ कर बाहर भाग लेते थे। हमारे पास मदन शर्मा जैसे कुछ असामान्य स्केटर थे, जिन्होंने हम सभी बच्चों को धैर्यपूर्वक स्केटिंग सिखाई और हम अंजाने में ही अपने विलक्षण मुख्यमंत्री एवं हिमाचल प्रदेश के संस्थापक डा. वाई.एस. परमार के साथ स्केटिंग करते थे। उन्हें ज्यादा भीड़-भाड़ पसंद नहीं थी और इसलिए चुपचाप आते और चले जाते थे। वह नियमित रूप से कुफरी की स्की ढलानों पर आते थे और जहां तक मुझे याद है, प्रत्येक सॢदयों में वहां बहुत अधिक बर्फ पड़ती थी और वहां पर चाय की केवल एक-दो दुकानों की ही व्यवस्था थी। 

आज हमें कुफरी में दो बदबूदार याक, घोड़ों की लीद तथा रास्तों को रोके हुए तिब्बती स्टाल दिखाई देते हैं। और फिर यहां हर आकृति तथा आकार के होटल खुल गए हैं जैसे कि किसी हिल स्टेशन पर होने चाहिएं। अब यदि वहां कोई स्कीइंग करना चाहता है तो उसे सामान्य टूटी हुई बसों में नारकंडा तक सफर करना पड़ता है क्योंकि हमारे पर्यटन विभाग को पर्यटकों को विशेष सुविधाएं देने में विश्वास नहीं है और नि:संदेह टूरिस्ट बंगले चलाने वाले लोग इतने असहयोगी होते हैं कि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी केवल तभी आप पर ध्यान देगा यदि आप एक वी.आई.पी. हैं। मुझे एक खूबसूरत पिकनिक स्पॉट याद है जहां हम जाया करते थे। वह है वायसरिगल लॉज। वाह, कितना मजा आता था। अब तो यह एक तरह से मृतप्राय: है। जो भी हो क्या शानदार इमारत है, अंग्रेजों द्वारा अब तक की बनाई गई बेहतरीन। क्या हमारे पास इसे दिखाने के लिए गाइड हैं? नि:संदेह नहीं, मगर इसमें प्रवेश करने के लिए हमें टिकट लेनी होती है। 

आपको भी पता है कि यहां एक हैलीपैड भी है, जिस तक पहुंचने के लिए एक संकरा तथा पेड़ों से घिरा मार्ग है। यहां पर एक गोल्फ कोर्स भी है, जिसके इर्द-गिर्द स्टाल तथा कंकरीट की इमारतें हैं। इन छायादार रास्तों पर हम हर शाम को तथा रविवार को सैर करते हुए चीड़ के सूखे फूल इकट्ठे करते थे और उन्हें रंगों से सजाते थे। क्या मुझे लोअर बाजार में फैली गंदगी के लिए लोगों को दोष देना चाहिए। केवल सभी छतों को लाल रंग से रंग देने से यह कितना खूबसूरत दिखाई देता है। शिमला के बाहर ‘प्लास्टिक नहीं’ के बोर्ड लगाए जाने तथा उल्लंघन करने वाले लोगों को जुर्माना किया जाना चाहिए। क्या हम एक शानदार राजधानी को अपनी सुस्ती तथा लापरवाही से नहीं चला रहे? क्या हम इसे वापस ब्रिटिश राजधानी जैसी स्थिति में लाने के लिए कुछ कर नहीं सकते? 

खुशी की बात यह है कि अभी भी आप किसी ऐसे पुराने बाबू के सम्पर्क में आ सकते हैं जिसने एक गोल्फ कैप के साथ आक्सफोर्ड शूज पहने हों और एक छड़ी पकड़ रखी हो। जागो! अपने बच्चों को वह शिमला देने का प्रयास करें जिसे हम जानते हैं। यहां तक कि शिमला में रचे-बसे लोग भी अब शिमला से बाहर जाने की राह ताक रहे हैं। क्या हमारे पास कोई ऐसी योजना नहीं होनी चाहिए कि प्रत्येक निर्माण ऐसा हो जैसे हम विदेश में बनाते हैं। यह इतना साधारण है तो हम इसे पेचीदा क्यों बनाते हैं?-देवी चेरियन


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Pardeep

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