भाजपा और कांग्रेस में हिंदुत्व को लेकर तू-तू, मैं-मैं

punjabkesari.in Wednesday, Nov 17, 2021 - 04:28 AM (IST)

धर्म हो या दंगे अथवा घोटाले, राजनेता सामान्यत: किसी भी चीज में अपने को दूसरे से अच्छा बताने का प्रयास करते हैं। सभी सत्ता के भक्त होते हैं और जब अपने सत्ता के आधार को बचाने की बात आती है तो सभी कट्टरपंथी बन जाते हैं और इसका सबसे बड़ा उपाय विवाद पैदा करना है और इस क्रम में ताजा विवाद भाजपा का हिन्दुत्व बनाम कांग्रेस का हिन्दू धर्म है।

इस विवाद की शुरुआत कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा अपनी पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन अवर टाइम्स’ में भाजपा के ङ्क्षहदुत्व की तुलना कथित रूप से इस्लामिक आतंक से करने से हुई, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि सनातन धर्म और प्राचीन हिंदू धर्म संतों और ऋषि-मुनियों से जाना जाता था, जिसे हिंदुत्व द्वारा किनारे लगाया जा रहा है और यह एक तरह से जेहादी इस्लाम के आई.एस.आई.एस. और नाइजीरिया के बोको हराम जैसे गुटों की तरह है। 

सलमान खुर्शीद के विरुद्ध दिल्ली, मुंबई और जयपुर में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए शिकायत दर्ज कराई गई है किंतु राहुल गांधी ने हिंदूू धर्म और हिंदुत्व में अंतर के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म अन्य धर्मों के लोगों का उत्पीडऩ करने के बारे में नहीं है जबकि हिंदुत्व ऐसा करता है। हिंदू धर्म में सिखों और मुस्लिमों को पीटा नहीं जाता, पर हिंदुत्व में ऐसा किया जाता है। हिन्दू धर्म में अखलाक को नहीं मारा जाता और न ही यह कहता है कि किसी को मारना चाहिए किंतु हिंदुत्व में ऐसा किया जाता है। उन्होंने कहा कि भाजपा-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की घृणा की विचारधारा ने कांग्रेस की स्नेह और राष्ट्रवादी विचारधारा को प्रभावित किया है। 

कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि उसने भारत में हिन्दू बहुलवादी सांप्रदायिक शैली की राजनीति की है और इसके लिए चुनावों में मुस्लिमों को हाशिए पर लाने जैसी युक्तियां चलने का प्रयास किया है और ऐसा करने के लिए साम्प्रदायिक हिंसा को संरक्षण दिया और विशेषकर गौ रक्षा और लव जेहाद के भावनात्मक मुद्दों को लेकर उसने ऐसा किया। 

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में जी-23 समूह के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि हिंदुत्व की तुलना आई.एस.आई.एस. और जेहादी इस्लाम से करना तथ्यात्मक रूप से गलत और अतिशयोक्तिपूर्ण है। कांग्रेस में व्यक्तिगत रूप से कुछ नेताओं को आशंका है कि राहुल के इन विचारों से इस मुद्दे पर बहस छिड़ सकती है, जो पार्टी के विरुद्ध जा सकता है तथा विधानसभा चुनावों, विशेषकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भजपा की मदद कर सकता है। 

भाजपा ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की यह कहकर आलोचना की कि वह हिंदुत्व के विरुद्ध जाल बुन रही है तथा हिन्दू तालिबान, भगवा आतंकवाद आदि जैसे शब्दों का प्रयोग कर हिंदू धर्म के विरुद्ध कार्य कर रही है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस हमेशा से तुष्टीकरण की राजनीति करती रही है। जनेऊधारी राहुल गांधी विधानसभा चुनावों से पूर्व मंदिरों के चक्कर लगाते हैं। कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी है और टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा है जो आतंकवादियों को संरक्षण देती है तथा पाकिस्तान के एजैंडे पर काम करती है और वहां की पार्टी है। 

हिंदू धर्म और ङ्क्षहदुत्व की आड़ में हम घोर सांप्रदायिकता देख रहे हैं, जहां पर हमारे नेताओं ने राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम वोट बैंक को राजनीति का मुख्य आधार बना दिया है। जहां हर नेता सांप्रदायिक सौहार्द की अपनी परिभाषा दे रहा है और उसका एक ही इरादा है कि वह अपने अबोध वोट बैंक को भावनात्मक रूप से इस तरह से बांधे रखे कि उससे सत्ता प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल हो सके। 

प्रश्न उठता है कि क्या हिन्दुत्व और हिंदू धर्म एक ही हैं? इन्साइक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म में हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म की संस्कृति के रूप में परिभाषित किया गया है। ङ्क्षहदुत्व एक कारक है और हिंदुओं, सिखों और बौद्धों द्वारा अपनाया गया एक धर्म है। मेरियम वैबस्टरर्स के इन्साइक्लोपीडिया ऑफ वल्र्ड रिलीजन में हिंदुत्व को भारतीय सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान के रूप में परिभाषित किया गया है। 

1920 के उत्तराद्र्ध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक सावरकर ने ‘एसैंशियल्स ऑफ  हिन्दुत्व’ में कहा कि एक सिद्धांत के रूप में हिंदुत्व भारत के राष्ट्रीय चरित्र का आधार है। उन्होंने हिन्दू पुनरुत्थान के विचार को राजनीतिक अर्थों में परिभाषित किया न कि धार्मिक अर्थों में। उन्होंने कहा राष्ट्र उसके लोगों को एकजुट करने के हिंदुनैस पर आधारित है। उनकी राय में राष्ट्र को एकजुट करने का उपाय हिंदू सभ्यता और हिंदू जीवनशैली है। उनके अनुसार, सामान्यत: हिंदुत्व एक मानसिक स्थिति है और इसकी तुलना धार्मिक हिंदू कट्टरवाद  से नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा हिंदुत्व एक स्थिर अवधारणा नहीं है। इसका अर्थ और संदर्भ समय के साथ बदलता रहा। औपनिवेशिक युग में न्यू हिंदुइज्म शब्द का प्रयोग किया गया। स्वतंत्रता के बाद इसका उपयोग धर्म बनाम संस्कृति और राष्ट्र बनाम राज्य के संदर्भ में किया गया। 

आज की धर्म पर आधारित प्रतिस्पर्धी लोकतांत्रिक राजनीति में मतदाताओं का धु्रवीकरण करने के आसार बढ़ जाते हैं। दु:खद तथ्य यह है कि हमारे नेताओं को धार्मिक भावनाएं भड़काने पर कोई ग्लानि नहीं होती। वे भूल जाते हैं कि राज्य की कोई धार्मिक पहचान नहीं है। राजनेता इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि उनके ऐसे विचार विनाशक हो सकते हैं या धार्मिक भावनाओं को भड़का सकते हैं अथवा लोगों को धार्मिक आधार पर और विभाजित कर सकते हैं। 

हमारे नेताओं को समझना होगा कि भारत एक विशाल बहुलवादी समाज है जिसकी जनसंख्या 140 करोड़ से अधिक है और यहां पर इतने ही विचार भी होंगे। वे लोगों के राजनीतिक विचारों पर अुंकश नहीं लगा सकते। उन्हें वोट बैंक की राजनीति से परे सोचना होगा और आम आदमी की सोच के साथ खिलवाड़ करना बंद करना होगा। आम आदमी को उनके निर्णयों के खतरनाक प्रभावों पर विचार करना होगा। आज राजनीति में उन लोगों को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए, जो लोगों और विभिन्न समुदायों के बीच घृणा पैदा करें। कुल मिलाकर राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं और अविवेकपूर्ण राजनीतिक निर्वाण से बचा जाना चाहिए।-पूनम आई. कौशिश
 


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