कांग्रेस विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास करे

punjabkesari.in Wednesday, Jun 05, 2019 - 12:55 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी संकट की इस घड़ी में सोनिया गांधी को अपने संसदीय दल की एक बार फिर नेता चुन कर उनके आजमाए तथा परखे नेतृत्व की ओर लौट आई है। इसे ‘अप्रत्याशित संकट’ बताते हुए खुद सोनिया गांधी ने स्वीकार किया कि कांग्रेस पार्टी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। 

यह दावा करते हुए कि संगठन को मजबूत करने के लिए कई निर्णायक उपाय किए गए हैं, उन्होंने संकेत दिया कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे हालांकि उन्होंने पराजय के बाद कांग्रेस कार्य समिति को अपना इस्तीफा सौंपने का प्रस्ताव दिया था लेकिन कार्य समिति ने उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया। यह स्पष्ट है कि न तो पार्टी गांधी परिवार को छोड़ेगी और न ही परिवार 132 वर्ष पुरानी वैभवशाली पार्टी पर अपनी ताकत को छोड़ेगा। 

राहुल गांधी को उन अन्य विपक्षी दलों से कुछ सबक सीखने चाहिएं, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों में शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा। बसपा प्रमुख मायावती ने पहले ही अपनी पार्टी को 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए चौकस कर दिया है। आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने अपने पार्टी नेताओं व कार्यकत्र्ताओं से 2020 के विधानसभा चुनावों के लिए तैयार रहने को कहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनावों की तैयारी के सिलसिले में सड़क स्तर की लड़ाई शुरू कर दी है। इसलिए जुझारू राजनीतिज्ञ संताप में नहीं बैठेंगे, जैसा कि गत कुछ दिनों से राहुल गांधी ने किया। यदि जनरल का ही मनोबल गिरा होगा तो पैदल सैनिकों का क्या होगा? 

एक सही संकेत
शनिवार को राहुल गांधी की पार्टी सांसदों के साथ प्रोत्साहित करने वाली बात ने एक सही संकेत भेजा है कि पार्टी संसद के भीतर तथा बाहर जवाबी हमला करेगी और एक जिम्मेदार विपक्षी नेता से यही आशा की जाती है। उन्होंने कहा कि ‘हम 52 सांसद हैं। मैं गारंटी देता हूं कि ये 52 सांसद भाजपा के खिलाफ प्रत्येक इंच पर लड़ेंगे। हम प्रतिदिन भाजपा को झटका देने के लिए पर्याप्त हैं।’ मगर यह करने के लिए राहुल को नियमित रूप से संसद में आना और आगे रह कर अपने सांसदों का नेतृत्व करना चाहिए। अभी तक वह अपनी संसदीय उपस्थिति में अनियमित रहे हैं। यदि जनसभाएं तथा रैलियां एक नेता को लोगों के सीधे सम्पर्क में लाती हैं तो संसद वह स्थान है जहां विपक्ष वाद-विवाद तथा चर्चाओं के माध्यम से सरकार से प्रभावपूर्ण तरीके से निपट सकता है। सोनिया गांधी ने आशापूर्ण तरीके से भविष्यवाणी की थी कि ‘एक अप्रत्याशित संकट में एक अप्रत्याशित अवसर होता है...जो आगे आने वाली कई चुनौतियों से रुकता नहीं, हम फिर से उठेंगे।’ 

फिर से उठने के लिए पार्टी को जरूरत है खुद को एक नए अंदाज में पेश करने तथा संगठन को मजबूत करने की। राहुल गांधी की पहली चुनौती यह दिखाना है कि कांग्रेस एक चला हुआ कारतूस नहीं है। दूसरे, उन्हें विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास करने चाहिएं ताकि विभिन्न मुद्दों पर संसद में मिलकर कार्रवाई की जा सके। अब चूंकि राजग को लोकसभा में 352 सीटें मिल गई हैं, विधेयक पारित करवाना मोदी सरकार के लिए कोई समस्या नहीं होगी। मगर यहीं पर कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों को सतर्क रहना होगा। 

एक प्रभावी विपक्ष को संख्या की जरूरत नहीं होती बल्कि ऐसे सदस्यों की जरूरत होती है जो प्रभावपूर्ण तरीके से मुद्दों को उठा सकें। क्या राजीव गांधी को बोफोर्स घोटाले के दिनों में 415 सदस्यों के जबरदस्त बहुमत के बावजूद संसद में ऐसी कठिन स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा था? मधु दंडवते, सोमनाथ चटर्जी, इन्द्रजीत गुप्त, जयपाल रैड्डी तथा उन्नीकृष्णन जैसे एक दर्जन विपक्षी नेताओं ने न केवल प्रभावपूर्ण तरीके से मुद्दों को उठाया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि राजीव गांधी 1989 के चुनावों में सत्ता से बाहर हो जाएं। 

विपक्ष की मजबूती
तीसरे, कांग्रेस को बीजू जनता दल, वाई.एस.आर. कांग्रेस पार्टी तथा टी.आर.एस. जैसी पाॢटयों को संसद में चर्चाओं में अपने पक्ष में कर विपक्ष को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। चौथे, हालांकि भारतीय प्रणाली में एक छाया मंत्रिमंडल की कोई व्यवस्था नहीं है, कांग्रेस को कुछ क्षेत्रों में विशेषज्ञता विकसित कर अपने सांसदों को प्रोत्साहित करने बारे सोचना चाहिए, जो पार्टी के काम आ सकें। आखिरकार पार्टी में कई अनुभवी पूर्व मंत्री हैं। अंतिम, पार्टी को वर्तमान में रहना चाहिए, न कि अपने अतीत के गौरव में क्योंकि कोई भी विरासत चाहे कितनी भी मजबूत हो, हमेशा के लिए नहीं रह सकती। 

विपक्ष की भूमिका सरकार के प्रत्येक निर्णय की आलोचना करना नहीं बल्कि जनहित के मुद्दों का समर्थन करना है। संसद का बहिष्कार करना, कार्रवाई को बाधित करना तथा सड़कों पर धरने देना काफी नहीं है। चुनावों में शानदार विजय के बाद अब मोदी को कोसने के दिन लद गए हैं और यह समय आगे देखने का है। जिस तरह से भाजपा विकास कर रही है, धर्मनिरपेक्षता/कट्टरवाद के विचारों का अब कोई महत्व नहीं। कांग्रेस को अब जरूरत है अपनी नई पहचान, आकर्षण को तलाशने तथा एक नए कथानक की। आखिरकार 2024 में होने वाले आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व इसे बहुत से विधानसभा चुनावों का सामना करना है। कांग्रेस एक विश्वसनीय विपक्ष है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अपनी पराजयों के बावजूद पार्टी अभी भी एकमात्र ऐसी राजनीतिक शक्ति बनी हुई है, जो भाजपा के आवेग की बराबरी कर सकती है। 

कांग्रेस को मिलकर काम करने वाले एक विपक्ष के निर्माण की दिशा में काम करना चाहिए और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रधानमंत्री के तौर पर दिए गए भाषण में कही गई बात पर ध्यान देना चाहिए कि ‘इन चुनावों में अतीत में जो कुछ भी हुआ, हमें आगे देखना होगा। हमें अपने कट्टर विरोधियों सहित सभी को आगे ले जाना है।’ यदि वह आगे की ओर देख रहे हैं तो विपक्ष को भी आगे देखना चाहिए। आखिरकार विपक्ष की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि सत्ताधारी दल की।-कल्याणी शंकर


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