लोकतंत्र : कथनी और करनी में अंतर

punjabkesari.in Thursday, Apr 04, 2024 - 05:12 AM (IST)

विपक्षी नेताओं, विशेषकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की किसी भी ढीली टिप्पणी को रोकने और विपक्ष द्वारा उठाए गए अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों से प्रभावी ढंग से ध्यान हटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सलाहकारों की टीम को श्रेय दिया जाना चाहिए। इसका ताजा उदाहरण राहुल गांधी की यह टिप्पणी है कि अगर भाजपा ‘मैच फिक्सिंग चुनाव के बाद विजयी होती है और उसके बाद संविधान बदल देती है, तो वह देश में आग लगा देगी।’ रविवार को दिल्ली में अपनी विशाल रैली के दौरान विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन से इस एकमात्र पंक्ति को उठाते हुए, मोदी ने विपक्ष पर बाजी पलटने की कोशिश की। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने को याद किया और कहा कि कांग्रेस ‘आपातकालीन मानसिकता’ से ग्रस्त रही और देश को जलाने की बात करती रही। 

प्रधानमंत्री और उनके सलाहकारों ने सफलतापूर्वक सुर्खियों का पता लगाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कथा को बदलने या सैट करने में महारत हासिल कर ली है कि वे लगभग हर दिन सुर्खियों में रहें। कच्चाथीवू द्वीप से संबंधित मुद्दे का उठना ऐसा ही एक और उदाहरण था। अधिकांश लोगों ने भारत और श्रीलंका के बीच में करीब 2 किलोमीटर लंबे और 300 मीटर चौड़े निर्जन द्वीप के बारे में नहीं सुना होगा, लेकिन कांग्रेस को बदनाम करने के लिए इस मुद्दे को फिर से उठाया गया और दावा किया गया कि कांग्रेस ने 1974 में बिना किसी उचित कारण के इस द्वीप को सौंप दिया था। नि:संदेह चीन द्वारा हाल ही में डोकलाम और लद्दाख में हमारे क्षेत्र के एक हिस्से पर अतिक्रमण करने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। 

लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए लोकतंत्र के मुद्दे पर फिर से लौटते हैं। वह और उनकी सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि देश में लोकतंत्र फलता-फूलता रहे और वे लोकतांत्रिक संस्थानों का सम्मान कैसे करते हैं। हालांकि, हाल की कुछ घटनाएं और घटनाक्रम यह नहीं दर्शाते हैं कि हम सही अर्थों में एक जीवंत और संपन्न लोकतंत्र हैं। हां, हम नियमित आधार पर चुनाव कराते रहे हैं, आपातकाल के एकमात्र अपवाद को छोड़कर जब चुनाव स्थगित कर दिए गए थे और लोकसभा का कार्यकाल बढ़ा दिया गया था। फिर भी, दूसरी ओर, हम लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहे हैं। यह बात पहले भी सच थी लेकिन वर्तमान शासन के तहत सिद्धांतों के उल्लंघन की मात्रा और पैमाना बहुत अधिक है। 

चुनावी बांड का मुद्दा, जिसकी कोई पूर्वता नहीं है, लोकतंत्र का मखौल उड़ाने का एक प्रमुख उदाहरण है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है कि प्रवर्तन निदेशालय और आयकर जैसी केंद्रीय एजैंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों के लिए धन उगाही करने के लिए किया गया था, जिनमें से मुख्य लाभार्थी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी थी। जांच से पता चला है कि कैसे शीर्ष विपक्षी नेता, जो अन्य दलों से भाजपा में आए थे और भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे थे, को राहत प्रदान की गई और कैसे उनमें से कुछ के खिलाफ मामले हटा दिए गए। इसी तरह केंद्रीय एजैंसियों के नोटिस का सामना करने वाले बड़े व्यापारिक घरानों ने नोटिस जारी होने के ठीक बाद मुख्य रूप से सत्तारूढ़ दल को चुनावी बांड के रूप में भारी मात्रा में धन का भुगतान किया। सांठ-गांठ स्पष्ट है लेकिन विपक्षी दल और मीडिया का बड़ा वर्ग इस मुद्दे को उठाने में विफल हो रहा है। इस खुली लूट और जबरन वसूली को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को श्रेय दिया जाना चाहिए। हालांकि इस पर कार्रवाई करने में उसे 5 साल लग गए। उस समय तक अधिकांश क्षति हो चुकी थी। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो चुनाव अभियान के दौरान एक मजबूत विकल्प की आवाज हो सकते थे, को मनगढ़ंत आरोपों के तहत गिरफ्तार करना भी सच्चे लोकतंत्र के लिए कोई अच्छी बात नहीं है। उन्हें एक आरोपी के कथित बयान पर गिरफ्तार किया गया है, जिसके करीबी रिश्तेदारों को अब लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए भाजपा का टिकट दिया गया है। कोई अवैध धन बरामद नहीं हुआ है या कोई सुराग स्थापित नहीं हुआ है, भले ही केजरीवाल के डिप्टी एक साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे हैं। हमारे लोकतंत्र में क्या-क्या गड़बडिय़ां हैं, यह बताने के लिए इस कॉलम में पर्याप्त जगह नहीं है। 

संक्षेप में, यहां कुछ बिंदू दिए गए हैं। योगी आदित्य नाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने त्वरित न्याय की एक नई अवधारणा पेश की है जिसे बुल्डोजर न्याय कहा जाता है। जिसके तहत मामला लंबित होने के बावजूद विरोध-प्रदर्शन में कथित भागीदारी के लिए एक विशेष समुदाय के सदस्यों के घरों को ध्वस्त कर दिया जाता है। राजनीतिक विरोधियों या आलोचकों को इस संदेह में कड़े कानूनों के तहत गिरफ्तार किया जाता है कि वे विवादास्पद भाषण न दे सकते हैं और न ही स्टैंडअप कॉमेडियन के रूप में राजनेताओं का मजाक उड़ा सकते हैं। यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री लोकतंत्र में अपनी निरंतर आस्था का आश्वासन देते रहे हैं और यह बात अंतर्राष्ट्रीय मंच के साथ-साथ देश में अपने भाषणों के दौरान भी कहते रहे हैं। हालांकि कार्यों को शब्दों से मेल खाना चाहिए और हम सभी को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि कहा जाता है कि शाश्वत सतर्कता ही स्वतंत्रता की कीमत है।-विपिन पब्बी
 


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