ऐसा न था हमारी परिकल्पना का भारत

punjabkesari.in Tuesday, May 18, 2021 - 04:02 AM (IST)

यदि हम पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान हुई घटनाओं पर अपनी नजर दौड़ाएंगे तो हम महसूस करेंगे कि कोविड संकट के कुप्रबंधन ने हमारे समाज के ढांचे को तहस-नहस कर दिया है। निरंतर 14 महीनों के लिए हम अस्पतालों में बैडों, ऑक्सीजन, दवाइयों तथा वैंटीलेटरों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। वह सब ऐसा नहीं है। मरने वालों की अनगिनत सं या, अस्पतालों में शवों का इधर-उधर पड़े रहना, श्मशानघाटों में जलती लाशें और कब्रिस्तानों पर उ मीद की कमी देखी जा रही है। हालांकि पूरे विश्व भर से हम तक मदद पहुंच रही है मगर जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया अब उन्हें अन्यों के मारे जाने का डर सता रहा है। 

लॉकडाऊन के साथ एक प्रवासी संकट भी खड़ा हो गया। कर्मचारी अपने शहरों को छोड़ सैंकड़ों मील की यात्रा कर अपने गांवों में पहुंचे। जहां पर स्थिति और भी बद्दतर थी क्योंकि वहां पर किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपस्थिति थी। प्रवासियों के लिए कोई ट्रेनें नहीं थीं। पैसे के लिए उन्होंने खून बहाया। उनके लिए ये अनिवार्य था कि वे टिकट खरीदें। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप का खेल रेलवे और राज्य सरकारों के मध्य शुरू हो गया। हम इस बात को आसानी से भुला नहीं सकते। हालांकि ट्रेनों को देरी से शुरू किया गया मगर कुंभ मेले के लिए ट्रेनें आसानी से उपलब्ध थीं। 

कुंभ मेला एक बहुत भारी भूल थी जिसे अपने समय से पूर्व एक वर्ष पहले आयोजित किया गया जिसमें करोड़ों की गिनती में लोग उपस्थित हुए। पिछले वर्ष यह तबलीगी जमात थी जिस पर लोगों के एक वर्ग ने इसलिए हमला किया क्योंकि उनका मानना था कि वह कोरोना के प्रसार के लिए जि मेदार हैं। वहीं कुंभ मेले में लोगों के एक अंश को शामिल होने की अनुमति दी गई। क्या यह स्वीकार्य  आंकड़ों के साथ एक संतुलित समाज है? समान रूप से पश्चिम बंगाल के लिए भारत का ‘मिशन 200’ महामारी से निपटने से ज्यादा एक बड़ा उद्देश्य बन गया। इसमें ‘अहंकार’ और शब्दों का युद्ध हर ओर देखा गया। राजनीतिक दिग्गजों की सारी ऊर्जा और नीति राज्य की मु यमंत्री ममता बनर्जी को हराने पर लगी हुई थी मगर यह नीति असफल रही। 

अगले वर्ष हम और ज्यादा राज्य के विधानसभा चुनाव देखेंगे जिसमें यू.पी. भी शामिल है और अब लक्ष्य ‘मिशन 300’ का होगा जबकि लोग बैडों तथा ऑक्सीजन के लिए मारामारी कर रहे होंगे तथा मरते हुए लोगों को स मानजनक संस्कार भी प्राप्त नहीं होगा। अन्य भारी भूलें भी हुई हैं। विश्व भर में लोगों ने महसूस किया कि वैक्सीनेशन ही मात्र खेल बदल सकती है। भारत देखता रहा, विचार करता रहा और राय देता रहा जबकि अन्य देशों ने वैक्सीन को बड़े स्तर पर खरीद लिया। हम इस बात पर गर्व कर रहे थे कि भारत विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है मगर हम इस दौर से बाहर थे। 

अब हम विदेशी निर्माताओं से वैक्सीन को भारत भेजने की भीख मांग रहे हैं। यह एक प्राथमिक तथा गैर हिसाब था। हम जानते थे कि हमें एक बिलियन लोगों से ज्यादा को-वैक्सीन देनी है फिर भी हम उलझे रहे। जब सरकार ने यह भांप लिया कि देश में वैक्सीन की भारी किल्लत है तो उसने लोगों को दूसरी खुराक देना स्थगित कर दिया तथा घोषणा की कि 18 वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग की वैक्सीनेशन की जाएगी। वैश्विक वैक्सीनेशन कार्यक्रम हालांकि रेगिस्तान में एक मृगतृष्णा जैसा है। 

स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं होगी। हालांकि यह स्पष्ट है कि इस बयान में कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि यहां पर कोई स्टॉक नहीं है। कई राज्यों ने सरकार को वैक्सीन की कमी के लिए कहा है मगर इसका कोई फायदा नहीं हो रहा। पहली खुराक लेने वालों को निरंतरता की जरूरत है और लोग जब तक वैक्सीनेशन हो नहीं जाती तब तक भगवान के आगे दुआ कर रहे हैं। आयुष्मान भारत स्कीम को 2018 में लांच किया गया। अस्पतालों को टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्थापित किया जा रहा है। किसी एक को जवाब देना होगा कि कितने अस्पताल वास्तव में बने हैं। यदि राजधानी सहित मैट्रोपॉलिटन शहर स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे हैं तो छोटे कस्बों व गांवों में हालातों का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। 

आपदा के इस समय में जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए क्या यहां पर कोई किसी की सुन रहा है? महामारी के बढ़ते प्रसार को भी समझा नहीं गया, क्या यह सरकार का कत्र्तव्य नहीं था कि वह आगे आकर यह उल्लेख करे कि कहां गलती हुई और इस अनुप्रासंगिक क्षति की जि मेदारी ले? जवाब देने की बजाय हमने भाजपा की ओर से प्रैस वार्ता सुनी जिसमें कहा गया कि कुछ भी गलत नहीं हुआ। सरकार के साइंटिफिक एडवाइजर ने हमें बताया कि  तीसरी  लहर  को  रोका नहीं जा सकता और अगले दिन कहा गया कि तीसरी लहर को रोका जा सकता है। 

गोल-मोल बातें बंद होनी चाहिएं और हमें एक निश्चित अगली लहर के लिए स्टॉक तैयार रखना चाहिए। मेरे पिता दिवंगत कुलदीप नैयर ने विभाजन के दौरान वाघा बार्डर को पार किया। वह निश्चित ही स्वर्ग से हमें नम आंखों से गंभीरतापूर्वक पीड़ित और व्यथित दिखाई दे रहे होंगे कि हमने अपने आपको क्या कर डाला।-राजीव नैैयर(सीनियर एडवोकेट दिल्ली हाइकोर्ट)


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