हर भाषा में देश का नाम ‘भारत’ ही रहना चाहिए
punjabkesari.in Friday, Sep 15, 2023 - 04:41 AM (IST)

‘भारत’ अनादिकाल से एक समृद्ध सभ्यता के साथ पूरे भू-मंडल को प्रभावित करने वाली एक आध्यात्मिक संस्कृति के रूप में प्रसिद्ध रहा है। भारत प्रजा का भरण-पोषण करने वाला एक अमृतदायिनी ‘भारताग्नि’ का क्षेत्र रहा है। ऋग्वेद के 5/11/1 में उल्लेखित है कि जिस भारताग्नि के प्रभाव से 6 विविध ऋतुओं तथा विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होने वाली 3 सप्त सिंधुओं और नदियों के कारण इस भारत भूमि पर प्रजा का भरण-पोषण होता रहा है, प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इस भू-भाग को भारताग्नि के समानार्थी शब्द ‘भारत’ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
विष्णु पुराण में देश की क्षेत्रीय सीमाओं का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि ‘उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् , वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्तति:।’ इसका अर्थ है कि समुद्र के उत्तर में, हिमालय के दक्षिण में जो वर्ष (क्षेत्र) है, उसका नाम भारत है। यहां की प्रजा को भारतीय प्रजा कहते हैं। वहीं स्कंद पुराण में अध्याय 37 के अनुसार ऋषभदेव के पुत्र भरत हुए जिनके नाम पर इस भू भाग का नाम भारत पड़ा। इसके अलावा महाभारत के आदिपर्व में शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम से भारत नाम को बल मिलता है।
भरत के जन्म के बाद ऋषि कण्व उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि वह आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखंड का नाम भारत प्रसिद्घ होगा। भारत हमारे जनमानस का अभिन्न अंग है। भारत शब्द का अर्थ ही है लोकपाल और विश्वरक्षक। भारत नाम का पौराणिक महत्व हमारे भारतीय जनमानस में रचा बसा हुआ है। भारत केवल शब्द नहीं है, बल्कि ऐसा मंत्र है जिसके उच्चारण मात्र से, ‘भा +र+त’ से प्रकृति के तीनों गुण यानि ‘भा’ से सत्व (प्रकाश, ज्ञान ), ‘र’ से रजस और ‘त’ से तमस, यानि त्रयी शक्ति का आह्वान हो जाता है। हमारे राष्ट्रगान में भारत की महिमा का वर्णन गर्व के साथ किया गया है। ‘जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता’ इस पंक्ति में भारत की स्तुति एक परम दिव्य शक्ति के रूप में की गई है। इसमें भारत की सामाजिक और भौगोलिक विविधता के साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी चित्रण किया गया है।
अनेकता में एकता का संदेश देता हमारा भारत: इस तरह के अनेक उद्धरण हैं जिसमें हमें वैभवशाली भारतवर्ष का संदर्भ दिखाई पड़ता है। अनेकता में एकता का संदेश देने वाले भारत में विभिन्न प्रकार की संस्कृति, भाषा, पंथ और पहचान वाले लोगों को एक साथ एक ध्वज के नीचे एकता के सूत्र में पिरोया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों ने अपने देश के लिए ‘भारत’ नाम दिया। इस विषय में उल्लेखनीय है कि ‘इंडिया’ शब्द एक भौगोलिक संदर्भ में विदेशियों द्वारा लगभग अढ़ाई हजार वर्ष पहले प्रयोग किया गया शब्द है, जो अंग्रेजी शासन के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारत में प्रचलित किया गया। इंडिया शब्द गुलाम मानसिकता की याद दिलाता है, अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनमानस के शोषण की याद दिलाता है, जबकि ‘भारत’ शब्द इस देश की सांस्कृतिक विरासत है जिसके उच्चारण से हमारे मन-मस्तिष्क में वैदिक ऋषियों द्वारा दिया गया ज्ञान-विज्ञान और संस्कारों की धारा प्रवाहित होती है। हमारी अधिकांश भारतीय भाषाओं में भी भारत शब्द का ही उल्लेख किया गया है।
यहां यह उल्लेख करना भी समीचीन है कि भावनात्मक स्तर पर कई शब्दों के वास्तविक मर्म को समझने के लिए विदेशी भाषा नहीं, अपितु अपनी माटी से उपजी हुई भाषा का प्रयोग ही सर्वथा उपयुक्त रहता है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी का मदर शब्द कभी भी वह भाव अभिव्यक्त नहीं कर सकता जो ‘मां’ शब्द के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। किसी भी देश का नाम उसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतिबिंब है। इंडिया शब्द से हमारे देश की असल पहचान ही संभव नहीं है। हिंदू शब्द जब पश्चिम में गया तो ग्रीक भाषा में अपभ्रंश होकर इंदु बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य के समय ग्रीस का राजदूत मैगस्थनीज, पाटलीपुत्र आया था तब उसने भारत विषय पर किताब लिखी थी, जिसका नाम इंडिका था। तब से पश्चिम के देश इसे इंडिका या इंडिया नाम से ही संबोधन करते रहे हैं।
हमारे देश का नाम पुन: भारत किए जाने को लेकर कई प्रयास हो चुके हैं। वैसे भी देशों का नाम वास्तविक अर्थ के साथ बदलने की परंपरा नई नहीं है। हाल ही में टर्की का नाम बदलकर तुर्किए किया गया, वर्ष 1972 में सीलोन का नाम बदलकर श्रीलंका किया गया, बर्मा का नाम बदलकर म्यांमार किया गया। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां देशों ने औपनिवेशिक मानसिकता से निकलने के लिए अपने देश का नाम परिवर्तित किया। हमें भी अपनी भाषा और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाने और इसके गौरव को समृद्धि देने के लिए भारत नाम को भारत सहित संपूर्ण विश्व में स्थापित करने की आवश्यकता है। गुलामी की मानसिकता से हमें बाहर आने की आवश्यकता है। हाल ही में जी-20 के निमंत्रण पत्र पर ‘प्रैसिडैंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रैसिडैंट ऑफ भारत’ लिखा होना यह दर्शाता है कि यह भारत अपने मूल में गहराई से जुड़ा हुआ है, यह एक स्वागत योग्य कदम है। वर्तमान समय की यह आवश्यकता है कि हम विदेशी शब्द इंडिया का प्रयोग न करते हुए गुलामी की मानसिकता से बाहर निकल कर भारत शब्द का प्रयोग करें तथा भारत शब्द को आधिकारिक रूप से प्रयोग में लाने के लिए सभी उपयुक्त कदम उठाए जाएं।-प्रो. रमाशंकर दूबे (कुलपति, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय)