मोदी सरकार के ‘दावे-वायदे’ सब हुए ठुस्स

punjabkesari.in Friday, Mar 13, 2020 - 02:07 AM (IST)

तथ्य सब कुछ बयां करते हैं जो सभी पर्दों को चीर कर उजागर हो जाते हैं। यह सत्य भाजपा के सत्ता में आने के समय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से चुनाव प्रचार दौरान दिए गए भाषणों में किए गए वायदों की इस समय के हालातों से तुलना करते स्पष्ट रूप में सामने आ जाता है। विदेशी बैंकों में छिपा कर रखे धन कुबेरों के काले धन को उजागर कर लोगों के सुपुर्द किए जाने का वायदा, प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ नवयुवकों को नौकरी देने का भरोसा, किसानों तथा खेत कर्मियों की आत्महत्याएं रोकने के लिए प्रभावी नीति तैयार करने की घोषणा तथा सबसे ज्यादा देश के आर्थिक विकास को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने का दिलासा इत्यादि अब एक टूटे हुए सपने के जैसा बन कर रह गया है। इसके विपरीत नोटबंदी के माध्यम से काले धन को सफेद में बदल कर रख दिया गया। 

जी.एस.टी. जैसे आपराधिक कदम, आॢथक मंदी को वैज्ञानिक विधि से काबू करने की जगह लोगों के करों के साथ भरे सरकारी खजाने में से कार्पोरेट घरानों को दिए जाने वाली बड़ी राशियों तथा वरिष्ठ लोगों के काले कारनामों से उपजे बैंक घोटालों ने आॢथक विकास के दावों पर विराम चिन्ह लगा दिया। नए रोजगार पैदा करने की बात तो दूर रही, मोदी सरकार की नीतियों ने पुराने रोजगार को भी हड़पना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी पिछले 45 सालों के दौरान सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंच गई है। 

लोगों के बड़े हिस्से का बैंकिंग प्रणाली से भरोसा ही खत्म कर दिया
जन-धन योजना, प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना इत्यादि स्कीमों के प्रचार पर लोगों को मिलने वाले वित्तीय लाभ से कहीं ज्यादा सरकारी पैसा खर्च हो चुका है, जिस तरह बड़े-बड़े धन कुबेर भारतीय बैंकों का पैसा लूट कर विदेशों को प्रवास कर गए या देश के भीतर ही कानून संग आंख-मिचौली का खेल खेल रहे हैं, उसने लोगों के बड़े हिस्से का बैंकिंग प्रणाली से भरोसा ही खत्म कर दिया है। जिस भ्रष्टाचार को खत्म करने का भाषण मोदी देते थकते नहीं थे उसी भ्रष्टाचार का खामियाजा समस्त देश भुगत रहा है। वित्तीय घाटे तथा बजट में घोषित स्कीमों को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड से पहले 1.76 लाख करोड़ रुपए तथा बाद में और 46 हजार करोड़ रुपए निकालना मोदी सरकार की आर्थिक व्यवस्था की दयनीय स्थिति को दर्शाने के लिए काफी है। 

सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में आर.एस.एस. की साम्प्रदायिक विचारधारा के अनुसार अमल करने वाली मोदी सरकार की अनेकों कार्रवाइयों ने देश के लोकतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्षता वाले मूल ढांचों को हिला कर रख दिया है। विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भावना, भाईचारा तथा अमन-शांति के रिश्तों की जगह साम्प्रदायिक नफरत, सहिष्णुता, धार्मिक कट्टरवाद ने समस्त समाज को अपनी चपेट में ले लिया है। नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के विरोध में देश के सभी भागों में जन आंदोलन और तीव्र हो रहा है। सी.ए.ए. विरोधी लहर में लोग धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्रों की दीवार तोड़ कर इसमें शामिल हो रहे हैं। सबका साथ सबका विकास का धोखे वाला नारा प्रधानमंत्री मोदी जितनी मर्जी जोर से लगाते रहें, उनकी सरकार के मंत्री तथा भाजपा नेताओं की नफरत भरी बयानबाजी इस नारे का समर्थन नहीं करती। ऐसी सब बातों का असर देश की स्वतंत्रता तथा एकता व अखंडता पर जरूर पड़ेगा। 

मोदी विदेशों में देश की छवि बढऩे के बड़े-बड़े वायदे करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस प्रचार का सरकार समॢथत मीडिया विशेष तौर पर इलैक्ट्रानिक मीडिया पूरा-पूरा साथ दे रहा है। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के लिए वहां के लोगों के प्रतिनिधियों तथा विपक्षी दलों की सहमति लिए बिना तेजी से एकतरफा कार्रवाई की है तथा अब पूरी सख्ती से नागरिकता संशोधन कानून तथा एन.पी.आर. लागू करने की घोषणाएं की जा रही हैं। पूरे विश्व में भारत के धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक ढांचे की छवि को चोट पहुंच रही है। 1955 से अलग नए आधार पर जनगणना शुरू किए जाने की तैयारियों ने मोदी सरकार के धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक कार्यों के खिलाफ इरादों को जगजाहिर कर दिया है। इन कार्रवाइयों के अगले खतरनाक नतीजों की अभी प्रतीक्षा की जानी चाहिए। 

वायदे और दावे संघ परिवार तथा मोदी सरकार जो मर्जी करती रही। उनके द्वारा परोसी जा रही साम्प्रदायिक विचारधारा, सहिष्णुता, धार्मिक अल्पसंख्यक को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की कार्रवाइयां देश को मजबूत नहीं कर सकतीं तथा न ही उन सपनों को साकार कर सकती हैं, जिनमें शहीद-ए-आजम भगत सिंह तथा अन्य स्वतंत्रता संग्रामियों ने एकता, समानता, भाव वाले समाज की कल्पना की थी। यहां यह भी बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि किसी भी पड़ोसी देशों के धार्मिक तौर पर पीड़ित व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता देने का कोई विरोध नहीं हो सकता परंतु इसका आधार धर्म को बनाए जाने को देश के लोग स्वीकार नहीं कर रहे। ऐसी बात विश्व के किसी भी देश में नहीं। देखना यह है कि गैर-भाजपा राजनीतिक पार्टियां मोदी सरकार की तबाहकुन आर्थिक नीतियों तथा संघ के साम्प्रदायिक फासीवाद एजैंडे को रोकने के लिए किस हद तक जनतक विरोध को प्रेरित करने में समर्थ हो सकेंगी।-मंगत राम पासला


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