सैकुलरों के रोम-रोम में मोदी के प्रति ‘घृणा’

punjabkesari.in Sunday, Feb 14, 2016 - 01:24 AM (IST)

(वीरेन्द्र कपूर): पाकिस्तान मूल के अमरीकी नागरिक और आतंकवादी डेविड हैडली ने अमरीकी और भारतीय न्यायिक अधिकारियों की चौकसी भरी निगरानी में जो बयान हल्फिया दिया है उसकी सत्यता पर यदि हमारे सैकुलरवादियों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं, तो इसकी व्याख्या केवल यह कहकर ही की जा सकती है कि उनके रोम-रोम में नरेन्द्र मोदी के प्रति घृणा भरी हुई है। यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि अपनी गतिविधियों का वास्तविक बखान करके हैडली ने यह बताया है कि उसने स्वयं इन सभी कुकृत्यों को अंजाम दिया था। ऐसा करके हैडली ने केवल अपना ही भला किया है। उसे अमरीकी अदालत में यह कसम दिलाई गई थी कि वह लश्कर-ए-तोयबा के कार्यकत्र्ता के रूप में की गई अपनी गतिविधियों के बारे में बिल्कुल सच्चाई बयान करेगा। 

 
यदि वह अदालत को गुमराह करने का प्रयास करता तो इसका परिणाम उसके लिए बहुत ही बुरा होता। मुम्बई में 26/11 को हुए आतंकी हमले में अपनी भूमिका के लिए उसे 35 वर्ष के कारागार की सजा हुई है। इस हमले में 4 अमरीकी भी मारे गए थे। यदि हैडली अदालत के साथ सहयोग न करता तो इस 55 वर्षीय लश्कर आतंकी को और भी कड़ी सजा मिल सकती थी। कुछ भी हो अब 35 वर्ष तो उसे जेल में बिताने ही हैं, ऐसे में अमरीकी अधिकारियों के साथ किसी प्रकार की चालाकी खेलकर वह अपने लिए नई परेशानी ही खड़ी कर सकता था। इसीलिए उसने अपनी गतिविधियों के बारे में पूरी-पूरी सच्चाई बयान कर दी। 
 
फिर भी कारण या अकारण मोदी और संघ परिवार को गालियां देने वाले लोगों के लिए यह बात माननी बहुत मुश्किल हो रही है कि 2004 में गुजरात पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारी गई इशरत जहां लश्कर-ए-तोयबा की आतंकी थी। उसके अन्य साथी भी इसी पुलिस मुकाबले में मारे गए थे। पुलिस की यह कार्रवाई केन्द्रीय गुप्तचर एजैंसियों की इन भरोसेमंद सूचनाओं के बाद हुई थी कि वह लश्कर-ए-तोयबा की आत्मघाती हमलावर है और वह मोदी को निशाना बना सकती है। 
 
लेकिन ये सब बातें अब अतीत का हिस्सा हैं। आज जिस बात की प्रासंगिकता है, वह है कथित सैकुलरवादियों द्वारा इन हकीकतों से इन्कार करना। इनमें से कुछ एक ने तो हैडली के बयान हल्फिया के बाद भी रात्रि टैलीविजन चैनलों पर अपनी हिमाकत दिखाने से परहेज नहीं किया और बिल्कुल वही बातें कर रहे हैं जो पाकिस्तान करता है-यानी कि हैडली के बयानों पर विश्वास नहीं किया जा सकता और उसकी मंशा संदिग्ध है तथा वह ‘डबल एजैंट’ था, इत्यादि। उनके विचार उनको मुबारक। 
 
लेकिन जब तक वह अमरीकी जेल और न्यायिक अधिकारियों की लगातार निगरानी में रहते हुए कसम खाकर बयान देता है और जिनकी 26/11 हमले तथा इशरत जहां मामले में हमारी अपनी एजैंसियों की जांच से भी पुष्टि होती है, तो ऐसे में उसके बयान को मानने से इन्कार करने वाले देश के किस हित की सेवा कर रहे हैं? 
 
हैडली के बयानों में केवल इस आधार पर त्रुटियां ढूंढना क्या सही हो सकता है कि यह गुजरात सरकार के स्टैंड की पुष्टि करते हैं? स्पष्ट है कि मोदी को गालियां देने की प्रवृत्ति को राष्ट्र हित पर प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में हम यह भली-भांति कल्पना कर सकते हैं कि मीर जाफर और जयचंद जैसे लोगों ने जब देश के साथ गद्दारी की थी तो उनकी मानसिकता कैसी रही होगी। 
 
एक के बाद एक सरकारों ने (खास तौर पर 80 के दशक के प्रारंभ से लेकर) यह अघोषित और व्यावहारिक सूत्र  अपनाए रखा था कि खतरनाक अपराधियों को कैदी न बनाया जाए। जामिया मिलिया में हुए बाटला  हाऊस  एनकाऊंटर  के  बारे में भी बात न करें और न ही इस तरह की अन्य सैंकड़ों पुलिस मुठभेड़ों के बारे में। इंदिरा गांधी के हत्यारों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने 1, सफदरजंग रोड पर सशस्त्र गार्डों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और अपने हथियार सौंप दिए थे, फिर भी बेअंत सिंह की नृशंसता से हत्या कर दी गई थी। यह हत्या इस तथ्य के बावजूद हुई थी कि उसका फांसी पर चढऩा पूरी तरह सुनिश्चित था। यदि आपने पुलिस मुठभेड़ों की आलोचना ही करनी है तो यह मामला  भी ‘झूठे पुलिस मुकाबले’ का ही था। 
 
बात सीधी-सी है। पुलिस मुकाबले सही हों या गलत, झूठे हों या असली, इनका हैडली के बयानों से क्या लेना-देना? वह लश्कर-ए-तोयबा का एजैंट था, जिसने 160 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले 26/11 के हमले की साजिश तैयार की थी। इसके अलावा उसने पता नहीं कितने लोगों की जिन्दगी में जहर घोला था। यदि अब खुद की चमड़ी बचाने के लिए वह सच्चाई उगलने को मजबूर हुआ है तो पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा करने के प्रयास होने चाहिएं क्योंकि हमारे देश के विरुद्ध  आतंकवाद का सदाबहार स्रोत वही है। 
 
ऐसा करने की बजाय सैकुलरवादियों का जमघट पाकिस्तान की दलीलों की ही प्रौढ़ता कर रहा है और इस तरह इन तोता-रटंत दलीलों से पाकिस्तान का पक्ष मजबूत कर रहा है कि 26/11 के हमले, पठानकोट प्रकरण और ऐसी ही कई अन्य जघन्य वारदातों के साथ उसका कोई लेना-देना नहीं। यह जानने के लिए आपको कोई अंतरिक्ष वैज्ञानिक होने की जरूरत नहीं कि सैकुलरवादी किस खेमे के पक्ष में भुगत रहे हैं। 

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