‘सिर्फ विरोध’ की नीति छोड़कर एक अच्छी शुरूआत कर सकते हैं राहुल

punjabkesari.in Sunday, Dec 17, 2017 - 01:33 AM (IST)

उधार के 13 रुपए की बजाय नकद 9 रुपए को प्राथमिकता देना सदा से ही बुद्धिमानी की निशानी समझा जाता रहा है। ऐसे में गुजरात के एग्जिट पोल में एक बार फिर भाजपा के विजयी होने की भविष्यवाणियों के बावजूद हम 18 दिसम्बर को आने वाले चुनावी नतीजों का इंतजार करने में ही समझदारी मानते हैं। 

लेकिन एक भी नामांकन दायर होने से पहले जिस चुनाव के नतीजे पूर्वानुमानित थे और जिसका निर्विवाद विजेता सिंहासन पर आसीन हो गया वह था कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव। ए.ओ. ह्यूम द्वारा संस्थापित 132 वर्ष पुरानी इस पार्टी की कमान 47 वर्षीय राहुल को सौंपने से पहले 19 वर्ष तक सोनिया गांधी के हाथों में रही है। अब परिवार के भले-बुरे की चिंता राहुल के हाथों में है।

पार्टी के नए अध्यक्ष के औपचारिक चुनाव ने यह सिद्ध कर दिया है कि नेहरू-गांधी परिवार के सभी सदस्य पार्टी पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए एकजुट हैं। नेहरू-गांधी खानदान की 5वीं पीढ़ी के प्रतिनिधित्व को पार्टी प्रमुख के रूप में आसीन करने के मौके पर प्रियंका और उनके पति राबर्ट वाड्रा भी उपस्थित थे। इन दोनों के पास बेशक इस पारिवारिक फर्म में कोई औपचारिक पद न भी हो तो भी इस महान पार्टी के छुटभैये नेताओं को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पार्टी का सत्तातंत्र किस तरह काम करता है? 

अपनी पुरानी बॉस के साथ-साथ नए बॉस के भी दिलो-दिमाग की खूबियों का यशोगान दरबारी नं. 1 यानी मनमोहन सिंह ने मुक्तकंठ से किया। 70 के दशक के प्रथम वर्षों में दिल्ली स्कूल आफ इकनामिक्स में सहायक प्रोफैसर से लेकर लगातार 10 वर्ष प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने तक वह अपने सम्पूर्ण करियर दौरान अपने लिए असाधारण पदोन्नति सुनिश्चित करने से कभी नहीं चूके। आपको भली-भांति याद होगा कि जो व्यक्ति अब कांग्रेस का औपचारिक रूप में अध्यक्ष बना है उसी ने जब सार्वजनिक रूप में मनमोहन सिंह को अपमानित किया था तो वह कितने ‘मर्यादित’ ढंग से अपमान का घूंट पी गए थे और ऐसे काम करना जारी रखा जैसे कुछ हुआ ही न हो। जब मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे तो राजीव गांधी ने उन्हें और उनके साथी सदस्यों को ‘जोकरों की मंडली’ करार दिया था। तब भी सिंह ऐसे व्यवहार करते रहे जैसे कुछ हुआ ही न हो। 

लेकिन यह स्तम्भ मनमोहन सिंह के बारे में नहीं है। उनका उल्लेख तो केवल यह सिद्ध करने के लिए किया गया है कि पारिवारिक जायदाद बन चुकी कांग्रेस के जी-हजूरिए किस तरह मां और बेेटे के सामने चाटुकारिता दिखा रहे थे। मतदाताओं के साथ संबंध स्थापित करने की राहुल की क्षमताओं के बारे में आशंकाएं होने के बावजूद एक के बाद एक प्रवक्ता ने एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर चापलूसी दिखाई। अब यह तो प्रमाणित हो ही चुका है कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का अभ्युदय अब नेहरू-गांधी परिवार की ‘चमचागिरी’ पर ही निर्भर है न कि किसी मैरिट पर, तो ऐसे में नए पार्टी अध्यक्ष का यशोगान करना सभी कांग्रेसियों की मजबूरी है। 

बेशक आधिकारिक रूप में गुजरात और हिमाचल चुनावों के परिणामों की घोषणा 18 दिसम्बर को होगी लेकिन यदि ये परिणाम काफी हद तक एग्जिट पोल के अनुसार ही आते हैं तो इससे नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष की स्थिति ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़े’ जैसी हो जाएगी। राहुल ने बेशक कुछ चुस्त-चालाक ट्वीट लेखकों की सेवाएं लेकर सोशल मीडिया में अपनी छवि में सुधार किया है लेकिन यह मानना गलत होगा कि केवल इतने मात्र से ही वह अपनी पुरानी ‘पप्पू’ मार्का छवि से एक परिपक्व और गम्भीर राजनीतिज्ञ के रूप में कायाकल्प कर सकते हैं। 

फिर भी संसद के काम में अड़ंगा लगाने तथा केवल विरोध करने की नीति छोड़कर वह एक अच्छी शुरूआत कर सकते हैं। सरकार को मुद्दों पर आधारित रचनात्मक सहयोग प्रस्तुत कर सकते हैं। सामाजिक, राजनीतिक तथा आॢथक मुद्दों पर घटिया स्तर की पंगेबाजी की बजाय पार्टी की पोजीशन  स्पष्ट करके वह अपनी छवि सुधारने के साथ-साथ उपलब्धियों में भी बढ़ौतरी कर सकते हैं। तिहरे तलाक एवं राम मंदिर जैसे मुद्दे बेशक राहुल के लिए युद्ध के किसी खतरनाक मैदान से कम नहीं होंगे तो भी यदि वह दिलेरी दिखाते हुए इन पर कोई स्पष्ट स्टैंड लेते हैं तो इससे वह सशक्त नेता बनने की ओर अग्रसर होंगे। 

यदि उन्हें लगता है कि अमुक रास्ता सही है और देश को इसी पर चलना चाहिए तो जनअवधारणाओं के विरुद्ध जाकर भी उन्हें अपनी प्रतिबद्धता दिलेरी से प्रदर्शित करनी चाहिए। उन्हें उस तरह की अवसरवादिता से परहेज करना होगा जिसने पहले शाहबानो के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तारपीडो किया और फिर अयोध्या के राम मंदिर के दरवाजे भी खोल दिए तथा विवादित स्थल पर शिलान्यास की अनुमति दे दी। फिर से कांग्रेस को प्रासंगिक बनाना एक भागीरथ प्रयास होगा। ऐसा मानने वाले लोग बहुत ही थोड़े हैं जो समझते हैं कि राहुल तेजी से मृत्यु की ओर बढ़ रही इस पार्टी को नवजीवन प्रदान कर सकते हैं।

फिर भी राहुल अपनी यह जिम्मेदारी किस तरीके से अदा करते हैं, यह आने वाले सप्ताहों और महीनों में पता चल जाएगा। वह अपनी अंतरंग टोली का गठन कैसे करते हैं, किन लोगों को कांग्रेस के पदाधिकारी नियुक्त करते हैं, पार्टी के ऊपरी स्तरों पर जमे बैठे नकारा नेताओं से कैसे पिंड छुड़ाते हैं-इसी से राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के भविष्य की दिशा तय होगी। लोगों को न तो उनसे और न कांग्रेस से कोई बहुत बड़ी उम्मीदें हैं। राहुल गांधी के सामने चुनौती यह है कि वह लोगों की इन अवधारणाओं को गलत सिद्ध करें।-वीरेन्द्र कपूर


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