प्रचंड के बहाने नेपाल में भारत का विरोध

punjabkesari.in Wednesday, Jun 07, 2023 - 05:21 AM (IST)

नेपाल में प्रचंड सरकार को अस्थिर करने की शुरुआत विपक्षी दलों ने कर दी है। दरअसल प्रचंड के बहाने यह एमाले की नेपाल में भारत विरोधी मुहिम है। प्रचंड सरकार पर विपक्षी दल का प्रहार उनके भारत दौरे के बाद शुरू हुआ। विपक्षी दल का आरोप है कि प्रचंड भारत के समक्ष नेपाल के राष्ट्रीय हितों से जुड़े किसी मुद्दे को नहीं रख पाए। इधर प्रचंड जब भारत में थे, उसी बीच गैर-जरूरी मुद्दों को लेकर विरोधियों ने नेपाल में खूब बवाल काटा। जगह-जगह आगजनी कर प्रदर्शन किया। नेपाली प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पुतले फूंके। भारत के खिलाफ भी नारेबाजी हुई। 

नेपाल का जब कोई राष्ट्राध्यक्ष भारत आए और चीन टकटकी न लगाए, यह कैसे हो सकता है। प्रचंड की भारत यात्रा पर चीन टकटकी लगाए हुए था। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच क्या चल रहा है, चीन यह सब जानने को उतावला था। वह नहीं चाहता कि नेपाल में उसके अलावा अन्य किसी का दखल हो, जबकि नेपाल सिर्फ चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहता। उसकी नीति अपने पड़ोसी देशों के साथ समानांतर व्यवहार की है। 

नेपाल में नागरिकता विवाद बड़ा मुद्दा था। मधेशी दल संविधान में संशोधन कर इस मुद्दे का हल चाहते थे। ओली सरकार में राष्ट्रपति रहीं विद्या देवी भंडारी ने नागरिकता संबंधी संशोधित विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। मौजूदा राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने पिछले दिनों इस विधेयक को पारित कर दिया। विधेयक पारित हो जाने से अब दूसरे देशों की नेपाल में ब्याहता महिलाओं को तुरंत नागरिकता मिल जाएगी। पहले सात साल तक इंतजार करना पड़ता था। एमाले इस विधेयक के विरोध में उतर आया। कारण, इस विधेयक के पारित होने से नेपाल में ब्याही गई करीब एक लाख भारतीय महिलाएं भी नेपाली नागरिक होंगी। एमाले नहीं चाहता कि भारत-नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता बना रहे। 

प्रचंड के उज्जैन में महाकाल की पूजा और दर्शन को भी मुद्दा बनाकर उनके समर्थकों को  भड़काने की कोशिश की गई। कहा गया कि यह नेपाल को ङ्क्षहदू राष्ट्र बनाने का संकेत है। नेपाल और भारत के बीच तमाम मुद्दों को लेकर असहमति भी है, जिसमें उत्तराखंड का लिपुलेख व काला पानी विवाद भी है, जहां से भारत ने मानसरोवर के लिए सड़क मार्ग का निर्माण कर लिया है। नेपाल इस भू-क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है। प्रधानमंत्री रहते हुए चीन समर्थक के.पी. शर्मा ओली ने इसे लेकर भारत के खिलाफ खूब आग उगली और तब भी नेपालियों को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। 

प्रचंड जब सरकार में नहीं थे, तब उन्होंने इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की बात कही थी। बतौर प्रधानमंत्री अपने भारत आगमन पर प्रचंड की भारत के प्रधानमंत्री के साथ जिन तमाम मुद्दों पर बात हुई, उनमें लिपुलेख और कालापानी मुद्दा भी था। प्रचंड ने इस विवाद को खत्म करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से उसके बदले सिलीगुड़ी कारीडोर से बंगलादेश के लिए रास्ते की मांग की। भारत के लिए प्रचंड का यह प्रस्ताव मान लेना आसान नहीं है क्योंकि यहां चीन भी नजर गड़ाए हुए है। 

लेकिन प्रचंड की इस मामले में सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने विवादित जमीन को मुद्दा बनाए जाने के बजाय भूमि के बदले भूमि की नीति के तहत भारतीय प्रधानमंत्री के समक्ष यह मुद्दा रखा, जिसके समाधान की गुंजाइश है। वहीं प्रमुख विपक्षी दल के व्हिप चीफ पद्म गिरी का कहना है कि उनकी पार्टी प्रचंड से जमीन की अदला-बदली के प्रस्ताव पर जवाब मांगेगी। पद्म गिरी ने यह भी कहा कि भारत दौरे पर प्रचंड नेपाल के राष्ट्रीय हित से जुड़ा कोई विषय नहीं उठा सके। 

प्रचंड सरकार को परेशान और अस्थिर करने की प्रमुख विपक्षी दल एमाले की हद यह है कि उसने भारत के नए संसद भवन में लगे भारत के मानचित्र पर ही सवाल खड़ा कर दिया। बताने की जरूरत नहीं कि विशाल और अखंड भारत में तमाम देश शामिल रहे हैं, ऐसे में नेपाल कैसे अछूता रह जाता। भारत के नक्शे में नेपाल के लुंबिनी, कपिलवस्तु और विराटनगर शामिल हैं। नेपाल का विपक्षी दल इसे लेकर नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनाने की कोशिश में लग गया है। 

गैर-जरूरी मुद्दों को लेकर प्रचंड सरकार पर विपक्ष जिस तरह हमलावर है, उसके पीछे कोई न कोई तो है। विपक्षी दल एमाले के मुखिया ओली चीन के पक्के समर्थक हैं। प्रचंड का नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लेना और भारत से नजदीकियां बढ़ाना विपक्षी दल को रास नहीं आ रहा। ऐसे में उसने प्रचंड सरकार को अस्थिर करने का षड्यंत्र शुरू कर दिया है।-यशोदा श्रीवास्तव
 


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