तमिल राजनीति को उत्तर-भारत की राजनीति में घुल-मिल जाना चाहिए

punjabkesari.in Tuesday, Dec 30, 2025 - 05:39 AM (IST)

देश हित में उत्तर-दक्षिण की राजनीति का मेल होना चाहिए। आज के सन्दर्भ में दक्षिण-भारत और उत्तर-भारत की राजनीतिक संस्कृति को एक हो जाना चाहिए। आज की तमिल-राजनीति में यह अच्छा नहीं लगता कि दक्षिण-भारत के लोग कहें कि हमें ‘आर्य जाति’ के लोगों ने प्रताडि़त कर दक्षिणी-क्षेत्र में धकेल दिया। भारत वास्तव में हम द्रविड़ों का था। हम असली भारतीय-संस्कृति की वास्तविक धरोहर हैं। आज का हिन्दुस्तानी ऐसी विचारधारा को मान्यता नहीं देता। एक इतिहास था, जब द्रविड़ों और आर्यों में टकराव हुआ होगा? क्या हम इतिहास के उन्हीं पन्नों तक रुके रहें? दक्षिण-भारत के निवासी ही भारत के मूल निवासी थे, सभी मानते हैं लेकिन आज के समय में दक्षिण के लोगों को उत्तर भारत के लोगों को अछूत नहीं मानना चाहिए। आज तो भारत लेह-लद्दाख से लेकर दक्षिण में कन्या कुमारी तक एक है। हमारी वेष-भूषा, खान-पान, भाषा-बोली, रंग-रूप अलग हो सकते हैं, परन्तु हैं तो भारतवासी। 

संवैधानिक रूप में हम में कोई भेदभाव नहीं। राजनीति में उत्तर-दक्षिण का नारा बेशक लगा लो, परन्तु वास्तव में हम एक भारत के पुत्र-पुत्रियां हैं। दक्षिण भारत की द्रविड़ संस्कृति श्रेष्ठ होगी, परन्तु भारत उस दक्षिण संस्कृति से भी श्रेष्ठ है। यह तो दक्षिण भारतीय राज्यों को सोचना ही चाहिए। तमिल, मलयालम, तेलुगू और कन्नड़ भाषाएं संगठित, सुसंस्कृतिक और व्याकरण के माप-दण्डों पर खरी उतरी हैं, परन्तु हैं तो भारतीय भाषाएं ही न। तमिल भाषाओं का ङ्क्षहदी विरोध क्यों? देश के संविधान ने तो हिंदी को राष्ट्र भाषा का स्थान दिया है। भाषा का भाषा से विरोध नहीं हो सकता। भाषाएं तो एक-दूसरे की पूरक हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवेगौड़ा को उत्तर भारत के राजनेताओं ने ही प्रधानमंत्री बना दिया था। यद्यपि देवेगौड़ा थोड़े समय ही प्रधानमंत्री रहे। भारत की राजनीति लोकतंत्र पर आधारित है, स्वतंत्र है, विचित्र है। कभी भी, कोई भी नेता यहां प्रधानमंत्री बन सकता है। उत्तर दक्षिण की राजनीति में भेद ही नहीं।

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डी.एम.के.) तमिलनाडु का एक प्रादेशिक राजनीतिक दल है, जो केवल तमिलनाडु राज्य या केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी तक सीमित है। यह दल 1967 से 1976 तक तमिलनाडु में सत्तारूढ़ रहा। 1989 में यह दल पुन: तमिलनाडु में सत्ता में आ गया। 1972 में इस दल में फूट पड़ गई और एक नई पार्टी बनी ‘अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम’। 1973 के विधानसभा चुनाव में ‘अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम’ को विधानसभा में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। डी.एम.के. कोषाध्यक्ष सिने अभिनेता सी. रामचंद्रन नए दल के प्रधान बने। 25 दिसम्बर 1987 को सी. रामचंद्रन का देहांत हो गया। तब इस दल में भी फूट पड़ गई। एक गुट की नेता जानकी सी. रामचंद्रन बन गईं और दूसरे गुट का नेतृत्व सुश्री जयललिता के हाथ में आया। 10 फरवरी, 1989 को इन दोनों गुटों का आपस में विलय हो गया। सुश्री जयलिलता ‘अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम’ की महासचिव बन गईं। बाद में हुए विधानसभा चुनावों में भी कभी सुश्री जयललिता सिने अभिनेत्री तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनती रहीं तो कभी करुणानिधि बाजी मारते रहे।

द्रविड़ शब्द ‘द्रविड़ जाति’ का प्रतीक है। मुनेत्र शब्द का अर्थ है ‘प्रगतिशील’ और कषगम शब्द का अर्थ है ‘संगठन’। इन दोनों राजनीतिक दलों का उद्देश्य उत्तर भारत की बढ़ती राजनीति को रोकना, दक्षिण भारत के तमिल राज्यों में उत्तर भारत की राजनीति के प्रभाव और प्रसार को रोकना है। ब्राह्मणवाद का विरोध करना, तमिल भाषओं को अधिमान देना, चेन्नई (मद्रास), आंध्र प्रदेश, पुड्डुचेरी, कर्नाटक और केरल को मिलाकर एक अलग देश ‘द्रविड़स्तान’ बनाना, तमिल संस्कृति का उत्थान करना इन राजनीतिक दलों का मुक्य उद्देश्य है। यह तो तमिल नेताओं को पता भी था कि भारत में ‘द्रविड़स्तान’ नहीं बन सकता, बाकी मुख्य मुद्दों पर ये दोनों राजनीतिक दल चाहे जो करें सो करें, डी.एम.के. के वयोवृद्ध नेता करुणानिधि जीवन पर्यंत तमिल संस्कृति, तमिल भाषाओं के संरक्षक रहे। आज उनके सुपुत्र स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। वह भी अपने पिता करुणानिधि की भांति उन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के प्रयत्न कर रहे हैं। हिंदी, ब्राह्मणों और उत्तर भारत की राजनीति का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उन्होंने उत्तर भारत की राजनीति को दक्षिण की तरफ बढऩे से रोक रखा है।

उत्तर भारत के राजनेताओं का डी.एम.के. प्रमुख स्टालिन से कोई विरोध नहीं है। उत्तर भारत के राजनेता तो सभी दलों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। उत्तर भारत की राजनीति भी यह नहीं चाहती कि उत्तर-दक्षिण की राजनीति में टकराव हो। उत्तर भारत की राजनीति को भी तमिल संस्कृति पर नाज है। भारत के लोग इस बात के भी इच्छुक हैं कि तमिलनाडु के युवा मुख्यमंत्री स्टालिन ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की राष्ट्रीय यात्रा का आयोजन करें। लोग स्टालिन के पीछे-पीछे चलने को तैयार मिलेंगे। सर्वप्रथम यह शपथ जरूर खाएं कि वह भारत के संविधान के प्रति पूरी निष्ठा रखेंगे और इस भारत देश की ‘एकता और अखंडता’ का पूरा सम्मान करेंगे। यद्यपि स्टालिन परिवार के राजनेताओं ने भारत के प्रति अपनी आस्था और निष्ठा को सदा बनाए रखा है। प्रभु हम सब को एक रखें, नेक बना कर रखें। इस देश पर सबका एक जैसा अधिकार है। भारत की विकास यात्रा में हम सब एक हैं।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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