देश का लोकतंत्र नहीं बल्कि विपक्ष की साख खतरे में

punjabkesari.in Tuesday, May 07, 2024 - 04:16 AM (IST)

2024 के लोकसभा चुनावों की सरगर्मियां शिखर पर हैं। 2 चरणों का मतदान सम्पन्न हो चुका है और कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष अपने पुराने गढ़ अमेठी से लेकर असम तक  न तो कहीं मुकाबले में नजर आ रहा, न ही मोदी सरकार को घेर पा रहा है इसलिए हर बार की तरह इस बार भी इन्होंने एक राग अलापना शुरू किया है- ‘‘लोकतंत्र, संविधान खतरे में है, देश में तानाशाही है।’’ जैसे अंग्रेजों ने आजादी के समय भारत के लोकतंत्र पर ये प्रश्नचिन्ह उठाया था कि यहां बैलेट नहीं बुलेट का राज चलेगा वैसे ही राहुल गांधी और उनके साथी भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठा रहे हैं। पर वास्तविकता यह है कि आज भारत अपने यशस्वी प्रधानमंत्री के चलते समूचे विश्व में सबसे मजबूत और जीवंत लोकतंत्र का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।

1947 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा था कि लोकतंत्र भारत के लिए उपयुक्त नहीं है और आज वही पश्चिम कह रहा है कि ‘‘भारत दुनिया में स्वतंत्र राजनीतिक इच्छाशक्ति की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है।’’ 94 करोड़ मतदाता, लगभग 10 लाख मतदान केन्द्र, 6 राष्ट्रीय, 56 क्षेत्रीय और करीब 2400 से अधिक अन्य पार्टियां। महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण। देश में पहली बार जनजातीय समुदाय से महिला राष्ट्रपति और एक चाय बेचने वाला हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी। मजबूत संविधान, स्वतंत्र चुनाव आयोग यह है भारत के लोकतंत्र की शक्ति, सुन्दरता और विविधता। 

2014 के बाद से मोदी सरकार की योजनाओं-उज्जवला, जन-धन, आयुष्मान योजना, पी.एम. किसान सम्मान निधि, खेलो इंडिया, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया से हिन्दुस्तान की तस्वीर और तकदीर दोनों में बदलाव दिखा है। एक मूल मंत्र है कि पहले तोलो फिर बोलो। ऐसा लगता है मानो विपक्ष यह मंत्र भूल गया। आज की तारीख में लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ स्वायत्त न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम कर रही हैं। यह इस बात का जीता-जागता सबूत है कि हिन्दुस्तान में न तो लोकतंत्र खतरे में है न संविधान।

अब कुछ सवाल हैं जो विपक्ष के खोखले आरोपों का सवालों से ही खंडन करेंगे: पहला-कौन-सी तानाशाही सरकार एक विपक्षी नेता को भारत तोड़ो यात्रा (एक और दो) की सुरक्षा के साथ अनुमति देती? वह यात्रा जिसका मूल लक्ष्य मोदी को गाली देना, भारत विरोधी लोगों को साथ लेना, सनातन का अपमान, हिन्दू धर्म का विरोध, चीन की प्रशंसा, भारतीय सेना से सॢजकल स्ट्राइक के सबूत मांगना है। दूसरा-जब हिमाचल, तेलंगाना, कर्नाटक में कांग्रेस जीती उस समय इनके लिए लोकतंत्र जीवित था और ई.वी.एम. भी ठीक था। पर वहीं जब कांग्रेस हारती है तो वही लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। विपक्ष का रवैया वैसा ही है जैसे परीक्षा में फेल होने पर शिक्षक पर दोषारोपण करना।

तीसरा-जब सुप्रीम कोर्ट विपक्ष के हक में कोई फैसला देती है तो लोकतंत्र और संविधान सुरक्षित परन्तु वही सुप्रीम कोर्ट जब विपक्ष के भ्रष्टाचारी नेताओं को राहत नहीं देती है तब लोकतंत्र और संविधान तुरन्त खतरे में आ जाता है। लोकतंत्र को लेकर विपक्ष का यह दोहरापन हिन्दी की एक कहावत ‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ पर सटीक बैठती है। सत्य तो यह है कि देश के मतदाताओं के मन में लोकतंत्र को लेकर कोई शंका नहीं है, बल्कि दो विचारधाराओं को लेकर पूरी स्पष्टता है।

एक तरफ नरेन्द्र मोदी सरकार जो ‘सबका हाथ सबका विकास वाली’ राजनीति कर जहां राम, रहीम, रूपिंद्र और रॉबर्ट सबको बिना किसी भेदभाव के लाभ पहुंचा रही वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की तुष्टीकरण वाली राजनीति जो आज जनता की 55 प्रतिशत सम्पत्ति छीनने की बात कर रही। स्वस्थ लोकतंत्र के हित के लिए यह अच्छा होगा कि विपक्ष लोकतंत्र पर लांछन लगाने की बजाय चिंतन और मंथन करे कि जनता के दरबार में उनकी साख और वोट दोनों ही क्यों खतरे में आ गई है? -जयवीर शेरगिल, सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा


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