देश के मतदाता अब ‘पहले जैसे’ नहीं रहे

punjabkesari.in Saturday, Jan 07, 2017 - 12:46 AM (IST)

अब 5 राज्यों में चुनाव की घोषणा हो गई है तो हर कोई इस विषय में राय देगा कि सरकार किसकी बनेगी लेकिन आज के मतदाता पहले जैसे नहीं रहे। कोई भी उनके मन को नहीं पढ़ सकता और न ही सही भविष्यवाणी कर सकता है क्योंकि मतदाता अधिक ही चुस्त-चालाक हो गए हैं। उम्मीदवारों से ‘खा-पीकर भी’ वे आपको अपने मन की बात नहीं बताएंगे।

भारतवासियों को गुस्सा क्यों आता है? ऐसा वे तब करते हैं जब उन्हें यह महसूस होता है कि राजनीतिज्ञ उन्हें बुद्धू बनाते हैं। हम चुनावी वायदों के अब तक आदी हो चुके हैं। इसलिए हम इन पर पहले की तरह इतराते नहीं हैं।

हम आज ऐसे उम्मीदवारों के लिए मतदान करते हैं जिनके बारे में हमें लगता है कि वर्तमान में वे हमारा भविष्य बेहतर बना सकते हैं या उस व्यक्ति को जिसने अपने पिछले वायदे पूरे किए हैं। लेकिन आम आदमी आजकल  बेहद परेशान है क्योंकि उसे अपने ही पैसे निकलवाने के लिए घंटों बैंकों के बाहर कतारों में खड़ा होने के बाद भी खाली हाथ लौटना पड़ा है क्योंकि बैंकों में पैसा ही नहीं था।

गत सप्ताह मेरी एक सहेली ने मुझे बताया कि कश्मीरी शाल बेचने वाले  पुराने नोट स्वीकार कर रहे हैं क्योंकि अभी भी इन्हें खुल कर प्रयुक्त किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि अधिकतर काला धन या तो सोने में निवेश कर दिया गया है या फिर किसी भी उस व्यक्ति को दे दिया गया है जो इसे स्वीकार करने को तैयार था। टैक्स विभाग के अधिकारी रात-दिन एक कर रहे हैं। बैंक अधिकारियों को भी कई-कई घंटे काम करना पड़ रहा है। इन सब बातों के बावजूद लोग अव्यवस्था से तंग आ चुके हैं।

यदि भारत एक ‘कैशलैस’ देश बन जाता है तो मैं अब की तुलना में अधिक प्रसन्न हूंगी। यदि हर कोई चैक अथवा डैबिट व क्रैडिट कार्ड द्वारा भुगतान करे तो कितना  बढिय़ा रहेगा? लेकिन मेरी एक सहेली की नौकरानी दार्जीङ्क्षलग से आई है। उसका कोई बैंक खाता नहीं है। वह कई दिन तक खाता खुलवाने के लिए बैंक जाती रही।

90 वर्ष के एक बुजुर्ग ने मुझे चैक थमाया और परेशान हालत में मुझे कहने लगा कि क्या मैं उसे पैसे दे सकती हूं। मैंने उससे पूछा  कि ताऊ जी आपके घर के  सामने दूसरी ओर ही तो बैंक स्थित है। आप किसी को यह चैक देकर वहां क्यों नहीं भेजते।

बुजुर्ग ने आंसू भरी आंखों से मुझे बताया कि वह एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी है। वह दो बार बैंक गया पर वहां पर कोई  पैसा ही नहीं था इसलिए अब उसे बार-बार वहां जाने पर ऐसा लगता है कि जैसे वह कोई भिखारी हो जिसे अपने ही खून-पसीने से कमाया हुआ पैसा  हासिल करने के लिए हाथ फैलाना पड़ता है।

इसी पैसे से उसने अपने रोजमर्रा के खर्च चलाने होते हैं और  दवाइयां खरीदनी होती हैं जबकि  हालत यह है कि बैंक पहुंचने पर बैंक के कर्मचारी भी उसकी ओर देख कर कहते हैं, ‘‘आप फिर आ गए अंकल!’’

अस्पतालों में कहीं-कहीं ए.टी.एम. मशीन होती है लेकिन वहां से भी मुश्किल से नकदी उपलब्ध होती है। जब भी इसमें पैसा आता है अस्पताल के कर्मचारी ही इसे निकलवाने के लिए टूट पड़ते हैं। गरीब आदमी तो कतार में लगा रहता है लेकिन उसकी बारी आने से पहले ही नकदी समाप्त हो जाती है।

हर रोज आप टी.वी. पर देखते हैं कि अवैध रूप में धन छिपाने वाले  कितने जखीरेबाज पकड़े जाते हैं। देशभर में करोड़ों रुपए के नए करंसी नोट पकड़े गए हैं। हैरानी होती है कि   गरीब आदमी हर जगह दो जून की रोटी का खर्च चलाने के लिए परेशान है तो भ्रष्ट लोग कैसे पैसा हासिल कर रहे हैं?

मेरी कालोनी में ढेर सारे रेहड़ी वाले हैं और मैं देखती हूं कि मेरे ड्राइवरों और गार्डों के साथ वे भी कतारों में लगे होते हैं। मोबाइल स्मार्ट फोनों के बारे में सूचना जुटाते हुए मैंने उनमें से एक को पूछा कि क्या अब वे पैसे के लेन-देन के लिए इन्हें  प्रयुक्त किया करेंगे? उसने कहा, ‘मैडम हमारे गांव में मुश्किलसे ही फोन का कनैक्शन जुड़ता है।

ऐसे में मैं इसे कैसे प्रयुक्त कर सकता हूं? मेरी पत्नी  का तो बैंक खाता भी नहीं है। हममें से अधिकतर लोग अनपढ़हैं। अब तो हमें यह ङ्क्षचता लगी हुई है कि ऐसी स्थिति में हम जिंदा कैसे रहेंगे? फिलहाल तो हम उधार में ही सामान बेच कर प्रसन्न हैं और ग्राहकों को कह रहे हैं कि जब उनके पास पैसे आ जाएं तो अदायगी कर दें लेकिन हमें यह पता नहीं चल रहा कि पैसा  कब आएगा।’’

बुद्धिजीवियों का मानना है कि प्रधानमंत्री ने गरीब लोगों के लिए ‘फील गुड’  की व्यवस्था कर दी है। वंचित लोग ऐसा महसूस कर रहे हैं कि अब गरीब और अमीर के बीच की खाई कम हो जाएगी लेकिन किसी अमीर को कतार में तो खड़ा होना नहीं पड़ता। उनके पास अपना काम निकलवाने के कई जुगाड़ मौजूद हैं।

उनके दफ्तरों के कर्मचारी उनके स्थान पर लाइनों में लगते हैं और इन सभी के पास डैबिट व क्रैडिट कार्ड हैं। वे बहुत दक्षता से इनका प्रयोग करना जानते हैं। उनके फोनों और कम्प्यूटरों में अनेक एप मौजूद हैं जिनकी बदौलत वे पैसे का ऑनलाइन लेन-देन कर सकते हैं। वे लोग  काफी पढ़े-लिखे हैं। जिन लोगों को कष्ट उठाने पड़ रहे हैं वे गरीब और निम्र मध्य वर्ग से संबंधित हैं।

ये लोग दिहाड़ीदार हैं यानी कि रोज कमाई करते हैं और  यदि उन्हें बैंकों के बाहर कतारों में लगना पड़े तो उनकी दिहाड़ी टूट जाती है। किसी के अंदर भी इतनी हिम्मत नहीं कि खुले रूप में सरकार के विरुद्ध कोई नकारात्मक बातें कर सके। लोग डरे हुए हैं। विपक्षी पाॢटयों के नेता भी भयभीत हैं कि कहीं उनके विरुद्ध  झूठे मुकद्दमे दर्ज न हो जाएं।

लेकिन यदि आप बेदाग हैं, आपने कोई गलत काम नहीं किया तो आप डरे हुए क्यों हैं? प्रधानमंत्री स्वयं यही बात कह रहे हैं कि यदि आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं तो आपको डर किस  बात का है? वह कहते हैं, ‘‘मैं तो सत्ता में आया ही इसलिए हूं कि बदलाव ला सकूं।’’
 

उन्हें कुछ भी खोने का भय नहीं है क्योंकि उनका कोई परिवार नहीं और न ही आसपास मंडराने वाले चापलूस। उन्हें किसी प्रकार का कोई लालच नहीं। इसलिए  उन्हें जो बात देश के हित में महसूस होती है उस पर वह दाव खेलते हैं और दृढ़ता से आगे बढ़ते हैं। उनके पास सम्पूर्ण बहुमत और ढेर सारी शक्ति है। जिस प्रधानमंत्री को कई प्रकार के लालचों और सामाजिक संबंधों का बोझ ढोना पड़ता है वह किसी पेशेवर नाट्यकर्मी की तरह बातें करता है।

लेकिन नरेन्द्र मोदी के मुंह से ‘‘मित्रो’’ अथवा ‘‘भाइयो और बहनो’’ जैसा शब्द निकलते ही हम टिकटिकी लगाकर उन्हें सुनते हैं कि वे आगे पता नहीं क्या कह देंगे? उनको दृढ़ विश्वास है कि उनके फैसले बहुत महान हैं और वह इतने दिलेर भी हैं कि अपने गलत या ठीक फैसलों की जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते। वह दूसरों को दोष भी नहीं देते। बस सीधे उन्हें काम से निकाल देते हैं।

यही कारण है कि पूरा देश बहुत उत्सुकता से 5 राज्यों के चुनावों की प्रतीक्षा कर रहा है। निश्चय ही आने वाला समय बहुत दिलचस्पी भरा होगा।   अब भाजपा के आधे कार्यकाल की कारगुजारी की भी परीक्षा होगी।  


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