भारत में खेल स्पर्धाओं को लेकर कोई ठोस नीति नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Aug 31, 2021 - 04:23 AM (IST)

भारत में खेल स्पर्धाओं को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है। खेलों पर राष्ट्रीय नीति घोषित करनी चाहिए। हालांकि ‘टोक्यो ओलिम्पिक’ के बाद खेलों में देश की नई छवि उभर कर सामने आई है, भारत अब खेलना चाहता है और खूब खेलना चाहता है लेकिन उसके लिए माहौल होना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को मिल कर खेलों पर नीतिगत फैसले लेने चाहिएं। खेलों के लिए बेहतर क्या किया जा सकता है, इसके लिए केंद्र स्तर पर एक स्वतंत्र खेल आयोग का गठन होना चाहिए। खिलाडिय़ों के लिए सुविधाएं आवश्यक हैं। किन-किन खेलों के लिए क्या बेहतर होना चाहिए, उस पर विचार करना चाहिए। 

खेलों को बढ़ावा देने के लिए धन की कितनी आवश्यकता होगी, खिलाड़ियों को प्राथमिक स्तर पर कितनी बेहतर सुविधाएं मिल सकती हैं, ग्रामीण स्तर पर खेलों के मैदान की उपलब्धता क्या होनी चाहिए, इस तरह की सुविधाओं का विकास देश में होना आवश्यक है। हमारे यहां खिलाडिय़ों की कमी नहीं है लेकिन नीतियों का अभाव है। खेलों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद देश उन पर खुले दिल से धन की वर्षा करता है, अगर यही सुविधाएं खिलाडिय़ों को पहले ही मुहैया करा दी जाएं तो भारत सिर्फ पदक तालिका में ही ऊंचा स्थान हासिल नहीं करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपना बेहतर प्रदर्शन करेगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलाडिय़ों से सीधी बात कर उनका मनोबल बढ़ाने का काम किया लेकिन इस काम के लिए भी उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी।

खेलों में ‘ग्लोबल रैंकिंग’ की बात करें तो भारत की स्थिति आज भी बहुत बेहतर नहीं है। यह दीगर बात है कि टोक्यो ओलिम्पिक में हमने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन हमें नीरज चोपड़ा से आगे भी निकलना होगा। ग्लोबल रैंकिंग में आज भी चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, जापान जैसे देशों का दबदबा है। भारत से कई गुना छोटे मुल्क बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। टोक्यो ओलिम्पिक में भारत का 48वां स्थान रहा। हमें अमरीका, चीन, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस की कतार में खड़ा होना होगा। यह तभी संभव होगा जब खेलों पर सरकार अच्छी नीति लेकर आएगी। जीत के बाद खिलाडिय़ों पर खजाना लुटाने की नीति से हमें बचना होगा। 

देश के खिलाडिय़ों का सर्वांगीण विकास जरूरी है। सारा पैसा एक खिलाड़ी के व्यक्तिगत मद में चला जाता है, जिससे दूसरे खिलाड़ी, जो बेहतर प्रदर्शन के बाद जीत हासिल नहीं कर पाते, उन्हें निराशा हाथ लगती है। हम यह भी नहीं कहते कि खिलाडिय़ों का सम्मान नहीं होना चाहिए लेकिन प्रतिभागी दूसरे खिलाडिय़ों का भी मनोबल नहीं गिरना चाहिए। उनके लिए भी बेहतर सुविधाएं और खेलों का माहौल होना आवश्यक है। खेलों को हमें राष्ट्रीय नीति में शामिल करना होगा। टोक्यो ओलिम्पिक के बाद पैरालिम्पिक में भी सुखद खबर आई है। पैरालिम्पिक में भी हमारी ग्लोबल रैंकिंग 35वीं है। अब तक हमारे खिलाडिय़ों ने एक गोल्ड के साथ 7 मैडल जीते हैं। यहां भी चीन, अमरीका और ब्रिटेन अपनी स्थिति को मजबूत किए हुए हैं। फिलहाल भारत का संघर्ष जारी है। 

देश के मीडिया और दूसरे क्षेत्रों में पैरालिम्पिक को लेकर वह उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है जो ओलिम्पिक को लेकर रहा। ओलिम्पिक में खिलाडिय़ों के प्रदर्शन पर जिस तरह देश जश्न मना रहा था, वह स्थिति पैरालिम्पिक में नहीं दिख रही। इसे हम अच्छा संकेत नहीं कह सकते, जबकि हमारे लिहाज से यह गर्व का विषय है कि पैरालिम्पिक में हमारे खिलाडिय़ों ने ओलिम्पिक से बेहतर प्रदर्शन किया है, उम्मीद है कि वे और अच्छा प्रदर्शन करके स्वदेश लौटेंगे। खिलाडिय़ों की हौसला अफजाई के लिए सरकार और दूसरी संस्थाओं को भी व्यक्तिगत रूप से आगे आना चाहिए। 

टोक्यो पैरालिम्पिक में भारत की अवनि लेखरा ने एयर राइफल स्टैंडिंग में स्वर्ण पदक जीता है। पूरे भारत के लिए यह गर्व की बात है। इसके अलावा देवेंद्र झाझरिया, योगेश कथुनिया और सुंदर सिंह ने रजत, कांस्य पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लेखरा को बधाई दी है लेकिन जिस तरह का जश्न नीरज चोपड़ा की जीत पर दिखा था वैसा लेखरा की जीत पर नहीं दिख रहा। मीडिया और देश को यह खाई पाटनी होगी। भारत खेलना चाहता है और खेल में सबसे अधिक मौके ग्रामीण इलाकों में हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए सरकार को खेलों पर एक ठोस नीति बनानी चाहिए। केंद्र सरकार को राज्यों के सहयोग से ग्रामीण इलाकों में खेलों के मैदानों का विकास, बेहतर सुविधाएं और वित्तीय व्यवस्था उपलब्ध करानी चाहिए। अगर हमारी तैयारी जमीनी स्तर पर रहेगी तो निश्चित तौर पर भारत आने वाले दिनों में ग्लोबल रैंकिंग में चैंपियन बनकर उभरेगा। 

भारत के युवाओं में असीमित ऊर्जा है। इस मिट्टी से हजारों ध्यानचंद, मिल्खा सिंह, नीरज चोपड़ा, अवनि लेखरा,पी.टी. ऊषा, मीराबाई चानू और पी.वी. सिंधु की फौज तैयार होगी। अब वक्त आ गया है जब खेलों पर सरकारों को विशेष ध्यान देना चाहिए। खेलों को स्कूली पाठ्यक्रमों में भी शामिल कर खेल शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए। उम्मीद है कि सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी।-प्रभुनाथ शुक्ल
 


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