पैंशन योजना युक्तिसंगत बनाने की जरूरत

punjabkesari.in Thursday, Dec 08, 2022 - 04:19 AM (IST)

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के हाल के विधानसभा चुनावों ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पैंशन के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने पर पुरानी पैंशन योजना को लागू करने का वायदा किया है। कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने पहले ही पुरानी पैंशन योजना लागू कर दी है जबकि पंजाब में ‘आप’ सरकार ने भी पुरानी पैंशन योजना को वापस करने का फैसला किया है। उलटना एक खराब अर्थशास्त्र है और देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। 

पुरानी पैंशन योजना के तहत सरकारी कर्मचारी सरकारी अधिसूचना के अनुसार महंगाई भत्ते में बाद में और समय-समय पर होने वाली वृद्धि के साथ अंतिम पाए गए वेतन का 50 प्रतिशत पाने के हकदार थे। कोई अलग काप्र्स नहीं था जहां से पैंशन फंड आएगा। फंड के लिए कर्मचारियों से कोई योगदान नहीं था। नई पैंशन योजना ने 2004 में प्रणाली को समाप्त कर दिया और नई योजनाएं लाई गईं जहां कर्मचारियों और सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को विभिन्न विकल्पों के साथ एक पैंशन योजना में योगदान दिया। 

इस बात ने राज्य के खजाने पर बोझ को बहुत कम कर दिया क्योंकि सरकार ने पैंशन के लिए सिर्फ 10 से 14 प्रतिशत का योगदान दिया। जबकि सेवानिवृत्त लोगों के लिए पैंशन 50 प्रतिशत से घट कर 10 प्रतिशत से कम हो गई जो उनके द्वारा चुनी गई योजना पर निर्भर करती थी। नई पैंशन योजना पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थी और डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल के दौरान लागू की गई थी।

भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की नवीनतम रिपोर्ट द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़े बताते हैं कि पैंशन बिल का वर्तमान बोझ जिसमें पुरानी पैंशन योजना के लाभार्थी भी शामिल हैं-किस प्रकार देश की प्रगति और विकास की गति को धीमा कर रहा है। रिपोर्ट में पाया गया है कि 2019-20 के दौरान पैंशन पर खर्च केंद्र और गुजरात सहित 3 अन्य राज्यों के ‘वेतन और मजदूरी बिल’ से भी अधिक था। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि उस अवधि के दौरान केंद्र सरकार का कुल प्रतिबद्ध व्यय 9.78 लाख करोड़ रुपए था जिसमें ‘वेतन और मजदूरी’ पर 1.39 लाख करोड़ रुपए, पैंशन पर 1.83 लाख करोड़ और ब्याज भुगतान पर 6.55 लाख करोड़ रुपए का ऋण पर सर्वसिंग खर्च शामिल था। पिछले दशकों में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पैंशन का आऊट फ्लो कई गुणा बढ़ गया है। मिसाल के तौर पर 1990-91 में केंद्र का पैंशन बिल 3272 करोड़ रुपए था और सभी राज्यों का कुल मिलाकर 3131 करोड़ रुपए था। 2020-21 में 10 वर्षों के भीतर पैंशन पर केंद्र का खर्च 58 गुणा बढ़ कर 1,90,886 करोड़ रुपए हो गया था जबकि राज्य सरकारों का खर्च 125 गुणा बढ़ कर 3,86,001 रुपए हो गया था। 

इस प्रकार यह अर्थव्यवस्था के लिए देश में केवल लगभग 10 प्रतिशत कार्यबल को सुविधा प्रदान करने के लिए अस्थिर होता जा रहा था जो कई तरह से विशेषाधिकार प्राप्त है। यह देश के विकास को गंभीर रूप से धीमा कर रहा था। पैंशन बिल में जोड़ा गया वह ‘एक रैंक एक पैंशन’ योजना का कार्यान्वयन के बीच 10,795.4 करोड़ रुपए से बकाया के रूप में वितरित किया गया जिस पर वार्षिक आवर्ती खर्च करीब 7,123.38 करोड़ रुपए था। 

नई पैंशन योजना इसलिए शुरू की गई ताकि कर्मचारियों ने भी फंड में योगदान दिया और उन्होंने सरकारों पर बढ़ते बोझ को कम किया जिसके परिणामस्वरूप देश का विकास धीमा हो गया। कुछ राजनीतिक दलों के अदूरदर्शी और राजनीतिक रूप से उन्मुख दृष्टिकोण ने वाजपेयी और मनमोहन सिंह सरकारों के अच्छे काम को पलट दिया है। निश्चित रूप से एक रास्ता प्रदान किया जाना चाहिए ताकि देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद न करते हुए कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद खुद को बनाए रख सकें।-विपिन पब्बी 
 


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