2024 में मुसलमानों को भाजपा की ओर फिर से देखना होगा

punjabkesari.in Friday, Feb 02, 2024 - 05:22 AM (IST)

2024 के आम चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। भारतीय चुनाव विज्ञान में, ‘मुस्लिम वोट’ का विचार आम तौर पर दिलचस्पी पैदा करता है, खासकर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में। ऐसा कई कारणों से है। पहला, मुसलमानों के साथ भाजपा का रिश्ता ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद रहा है। दूसरा, मुसलमान शायद एकमात्र सामाजिक समूह है जो अब तक भाजपा की राजनीतिक पहुंच से परे रहा है। 

इसके अलावा, विपक्ष की ‘मुस्लिम’ राजनीति भाजपा का डर पैदा करने पर आधारित है। हालांकि, 2024 के चुनाव के बारे में अलग होने की संभावना बन रही है। मैं उन 6 कारकों का विश्लेषण करता हूं जो भाजपा और पी.एम. मोदी के साथ मुसलमानों के संबंधों में निर्णायक मोड़ लाने की क्षमता रखते हैं। 

एक, भाजपा और मोदी मुस्लिम समुदाय के भीतर विसंगतियों को दूर करने के लिए बार-बार सामाजिक न्याय के मुद्दों का जिक्र करते रहे हैं। पसमांदा - एक सामाजिक उप-समूह जो सबसे पिछड़े मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारतीय मुस्लिम आबादी का लगभग 80 प्रतिशत है, इस रणनीति का मूल है। पसमांदाओं को शामिल करने की पार्टी की इच्छा मुस्लिम राजनीति में कुलीन वर्ग के वर्चस्व को खत्म करने का वादा करती है। मुस्लिम राजनीति में व्यापक लोकतंत्रीकरण और समावेशिता का आह्वान करके, भाजपा प्रमुख पसमांदा मांग को संबोधित करना चाहती है-मुसलमानों को एक अखंड के रूप में नहीं देखना। यह न केवल मुसलमानों को अपने साथ लाने का भाजपा का पहला आधिकारिक प्रयास है, बल्कि यह पहली बार है कि पसमांदा राजनीतिक सुर्खियों में हैं। 

दूसरा, मोदी सरकार ने कुछ सामुदायिक व्यक्तिगत कानूनों में लैंगिक  न्याय के मुद्दों को भी प्राथमिकता दी है। तत्काल 3 तलाक की पुरातन प्रथा को खत्म करने, जो संयोग से इस्लामी देशों में भी प्रचलित नहीं है, को 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओं के बीच जबरदस्त समर्थन मिला है। 

तीसरा, पी.एम. मोदी ने मानव आवश्यकताओं जैसे भोजन, आवास, स्वच्छता, गैस, पानी, स्वास्थ्य इत्यादि के व्यापक स्पैक्ट्रम को कवर करते हुए कल्याणवाद को एक राजनीतिक कत्र्तव्य के रूप में फिर से पारिभाषित करने की मांग की है। गरीब कल्याण अन्न योजना ने अस्तित्व के संकट के दौरान 810 मिलियन भारतीयों को खाना खिलाया है। मोदी सरकार ने आॢथक रूप से हाशिए पर पड़े पसमांदाओं के भीतर लाभार्थियों की एक विशिष्ट श्रेणी बनाई है। कुछ मामलों में, मुस्लिम मजदूरों को उनकी आबादी से अधिक अनुपात में लाभ हुआ है। उदाहरण के लिए, जबकि उत्तर प्रदेश में 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, पी.एम. आवास योजना, उज्ज्वला योजना और मुद्रा योजना के तहत लाभार्थी 24-30 प्रतिशत तक हैं। इससे मुसलमानों के बीच प्रधानमंत्री के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ और अंत्योदय (भेदभाव के बिना विकास) के वायदे को बल मिला है। 

पी.एम. विश्वकर्मा योजना की शुरूआत सामाजिक रूप से वंचित समूह के नेतृत्व वाले उद्यमों और कारीगरों जैसे दर्जी, नाई, बुनकर आदि के लिए एक प्रोत्साहन है। योजना के तहत सूचीबद्ध 18 शिल्प बड़ी संख्या में पिछड़ी जाति के मुसलमानों की व्यावसायिक प्रोफाइल को दर्शाते हैं। चौथा, इस्लामिक दुनिया के साथ भारत के रिश्ते यकीनन अपने सबसे अच्छे दौर से गुजर रहे हैं। मोदी ने संबंधों को सार्थकता प्रदान करने के लिए विदेश नीति पर अपनी व्यक्तिगत छाप का इस्तेमाल किया है। 

संबंधों का परिवर्तन - सरल ‘व्यापार भागीदार’ से ‘रणनीतिक भागीदार’ तक बढ़ते अभिसरण को दर्शाता है। प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे में भारत की केंद्रीय भूमिका इस नई सांझेदारी की अभिव्यक्ति है। संबंधों को मजबूत करने के पी.एम. मोदी के प्रयासों की मान्यता में, कई इस्लामी देशों  जैसे संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, बहरीन, फिलिस्तीन, अफगानिस्तान, मालदीव और मिस्र ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया है। ये लाभ संभव नहीं होता अगर मुस्लिम दुनिया को लगता कि भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। 

पांचवां, 2014 के बाद से कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। 1970 के दशक से दर्ज दंगा मामलों के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत 50 वर्षों में सबसे शांतिपूर्ण स्थिति में है, क्योंकि दंगों में कमी आई है।‘फाइनांशियल टाइम्स’ को दिए एक हालिया साक्षात्कार में, मोदी ने भारत में रहने वाले धार्मिक सूक्ष्म अल्पसंख्यक पारसियों की सफलता का जिक्र किया और कहा कि भारतीय समाज किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक के खिलाफ भेदभाव नहीं करता है। 

अंत में, और सबसे महत्वपूर्ण, राष्ट्रीय हित और सुरक्षा का मुद्दा है। मुस्लिम समुदाय को इस बात से अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए कि कई वैश्विक संघर्षों जैसे कि यूक्रेन और रूस, इसराईल और फिलिस्तीन के बीच, आतंकवाद और भारत, वियतनाम, फिलीपींस आदि सहित अपने पड़ोसियों के प्रति चीन के विस्तारवादी रवैये को देखते हुए भारत को एक मजबूत और स्थिर सरकार की आवश्यकता है। मोदी ने इन चुनौतियों से निपटने में साहस और राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया है। इसके विपरीत, विपक्षी खेमा, बिना कप्तान के जहाज के रूप में, इस महत्वपूर्ण मोड़ पर कोई विकल्प नहीं देता है। 1990 के दशक में अल्पकालिक गठबंधन सरकारों के साथ भारत के प्रयोगों को भारी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और रणनीतिक लागत का सामना करना पड़ा। 

ये मुद्दे दिखाते हैं कि मुसलमानों को 2024 के चुनावों में मोदी और भाजपा को चुनने पर विचार क्यों करना चाहिए। वे जानते हैं कि भाजपा ने पिछले 2 आम चुनाव बिना किसी महत्वपूर्ण मुस्लिम वोट के जीते हैं। 2023 के यू.पी. शहरी स्थानीय निकाय चुनाव और यू.पी. में मुस्लिम बहुल रामपुर लोकसभा और सुअर विधानसभा तथा त्रिपुरा के बॉक्सानगर में उप-चुनाव इन व्यस्तताओं से भाजपा के लिए एक आशाजनक रुझान दिखाते हैं। 2024 मुसलमानों के लिए विपक्ष की राजनीति की नकारात्मकता से आगे बढऩे और प्रगति तथा राष्ट्रीय हित का व्यावहारिक रास्ता चुनने का अवसर दर्शाता है। इसके लिए मोदी उनकी सबसे अच्छी पसंद हैं।(लेखक, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)(साभार एक्सप्रेस) -तारिक मंसूर  


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