गुजरात के नए मुख्यमंत्री के लिए मोदी की पहली पसंद वजुभाई वाला

punjabkesari.in Sunday, Dec 17, 2017 - 02:00 AM (IST)

मोदी व शाह की जोड़ी टी.वी. चैनलों के एग्जिट पोल के नतीजों से बम-बम है। अब इन दोनों के दरम्यान यह मंथन जारी है कि गुजरात की गद्दी किसको सौंपी जाए। एक नाम तो अमित शाह का भी उभर कर सामने आया, पर शाह इस मौके को लपकना नहीं चाहते। सूत्र बताते हैं कि अपने करीबियों के समक्ष शाह ने तर्क दिया कि अगर इन्होंने गुजरात जाना स्वीकार किया तो राहुल गांधी के नेतृत्व वाला विपक्ष इसे उनके बेटे जय शाह के प्रकरण से जोड़ कर देखेगा। 

विश्वस्त सूत्रों की मानें तो कर्नाटक के मौजूदा गवर्नर वजुभाई रूदाभाई वाला को फोन कर कहा गया है कि वह 18 दिसम्बर से पहले अपनी तमाम जरूरी फाइलों का निपटारा कर लें क्योंकि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। मोदी भक्ति के आकंठ उपासक रहे वजुभाई के लिए दिल्ली से गया यह फोन किसी सदमे से कम न था। फिर उन्हें समझाया गया कि उन्हें गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाने पर विचार हो रहा है। 78 वर्षीय वजुभाई के लिए यह खबर भी किंचित विस्मयपूर्ण थी क्योंकि मोदी राज में तो 75 की उम्र में रिटायरमैंट देकर बड़े नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिया जाता है। आनंदी बेन से गद्दी वापस लेने में भी उनकी उम्र को ही सबसे बड़ा बाधक ठहराया गया था। 

वजुभाई जमीन से जुड़े नेता हैं, वह राज्य की पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं। वह एक ईमानदार नेता के तौर पर जाने जाते हैं और गुजरात के राजकोट वैस्ट से 7 बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। 2002 के उप चुनाव में उन्होंने अपनी सीट नरेंद्र मोदी के लिए छोड़ दी थी। वह न सिर्फ मोदी की आंखों का तारा रहे बल्कि 2012 से लेकर 2014 तक गुजरात विधानसभा के स्पीकर भी रहे। 2014 में ही उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वजुभाई का चुनाव कर मोदी राज्य की पिछड़ी जातियों में यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि उनकी चिंता बैकवर्ड कम्युनिटी को लेकर हमेशा से रही है, चुनांचे वे कांग्रेस के झांसे में न आएं।

वरुण भक्त स्वामी
गांधी परिवार के चिरंतन विरोधियों में शुमार होने वाले डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी एक अलग किस्म की राजनीतिक धारा के प्रवत्र्तक रहे हैं। पार्टी लाइन से इतर वह अपने विचारों को खुलकर सामने रखने के लिए जाने जाते हैं, चुनांचे अपने हर्ष व विशाद की रागात्मक अभिव्यक्तियों को जाहिर करने के लिए ट्विटर हैंडल हमेशा से उनका पसंदीदा शगल रहा है। सो, पिछले दिनों जैसे ही गांधी परिवार के एक और जाज्वल्यमान चिराग वरुण गांधी को लेकर उनका एक ट्वीट सामने आया और जब यह ट्वीट तेजी से सोशल मीडिया में वायरल हो गया तो भाजपा शीर्ष की आंखें खुली की खुली रह गईं। 

स्वामी ने ट्वीट किया, ‘एक भाजपा सांसद जो बगैर अपनी पार्टी की मदद के अपनी जनसभाओं में खूब भीड़ जुटा रहे हैं, वह वरुण गांधी हैं जिनका एक शानदार भविष्य है।’ इस ट्वीट के आते ही स्वामी ट्रोल होने शुरू हो गए, मोदी ब्रिगेड के कई अनन्य भक्तों ने एक स्वर में स्वामी से पूछा,‘क्या वरुण गांधी हिन्दू हैं, वह क्या हैं पहले यह क्लीयर कर दो, आपका जवाब हम सेव कर लेंगे?’ स्वामी ने आनन-फानन में इसका जवाब देते हुए ट्वीट किया, ‘मैं वरुण को हनुमान भक्त के तौर पर जानता हूं जो हर सुबह नियम से एक घंटा बजरंगबली की आराधना करता है।’ आज की भाजपा में भले ही वरुण गांधी जैसे युवाओं की नई राजनीति से भगवा शीर्ष को बगावत की बू आ रही हो, पर कम से कम वरुण इस बात का खास ख्याल रख रहे हैं कि उनकी नई सियासत के चेहरे पर बागी तेवरों की कोई सिलवट न दिखे। 

वेंकैया के राज में राज्यसभा टी.वी. 
राज्यसभा टी.वी., उप राष्ट्रपति सैक्रेटेरिएट और प्रसार भारती के सी.ई.ओ. के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। प्रसार भारती के सी.ई.ओ. शशि शेखर वेम्पति के पास राज्यसभा टी.वी. के एडीटर इन चीफ का भी जिम्मा है। गैर आई.ए.एस. शशि शेखर दूरदर्शन और आर.एस. टी.वी. का पूरा चेहरा-मोहरा बदलना चाहते हैं, पर उप राष्ट्रपति सचिवालय शशि शेखर के इस रवैये से किंचित नाखुश नजर आ रहा है। 

सूत्र बताते हैं कि दरअसल वेंकैया नायडू अपने अधीनस्थ आने वाले राज्यसभा टी.वी. के एडीटर-इन-चीफ के पद पर अपने खासम खास रहे रिटायर्ड आई.ए.एस. ऑफिसर डॉ. आई.वी. सुब्बा राव को बिठाना चाहते हैं। वह वर्तमान में उप राष्ट्रपति के सचिव भी हैं। वहीं इस पूरे मामले में नया पेंचोखम पी.एम.ओ. ने डाल दिया है। सूत्रों की मानें तो स्वयं पी.एम.ओ. अब आर.एस. टी.वी. पर अपना पूरा नियंत्रण चाहता है। इसी आपसी खींचातानी में आर.एस. टी.वी. गुजरात चुनाव को कवर करने के लिए अपनी टीम वहां नहीं भेज पाया, जबकि पहले यह तय हुआ था कि आर.एस. टी.वी. की कम से कम 3 से 4 कैमरा टीमें गुजरात चुनाव को कवर करेंगी और मैदाने जंग से सीधी रिपोर्ट भेजेंगी, पर शशि शेेखर बनाम डॉ. राव की लड़ाई में यह हो न सका और अब यह आलम है कि दो बिल्लियों की लड़ाई में पी.एम.ओ. एक जज की भूमिका में अवतरित हो गया है और शिकार पर उसकी उतनी ही नजर है। 

गुजराती व्यंजनों के दीवाने राहुल
कांग्रेस के नव-नवेले अध्यक्ष राहुल गांधी गुजराती द्वय मोदी-शाह से चाहे जितनी रार ठान लें पर एक बात तो तय है कि गुजराती व्यंजनों ने युवा राहुल को अपना दीवाना बना दिया है। पूरे गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने घूम-घूमकर गुजराती व्यंजनों का लुत्फ उठाया। जब वह आणंद के तारापुर में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे तो उन्होंने वहां की फेमस भाजी पाव का मजा लिया वह भी सड़क किनारे नुक्कड़ की एक दुकान पर। जब अहमदाबाद में उन्होंने अपने 3 महीने के गुजरात चुनाव प्रचार का समापन किया तो उस प्रैस कांफ्रैंस में खासतौर पर शहर के मशहूर खान-पान की दुकान स्वाति स्नैक्स से लंच के प्रबंधन को कहा गया।

गुजराती पत्रकारों से बात करते हुए राहुल ने स्वयं स्वीकार किया कि पूरे कच्छ के चुनावी दौरे में उनका पसंदीदा व्यंजन खाकड़ा, अचार और मूंगफली रहा, जो उनके साथ-साथ ट्रैवल करता रहा। सबको मालूम है कि राहुल और उनकी मां सोनिया को मीठे का बहुत शौक है, चुनांचे जब अहमदाबाद की एक फेमस मिठाई की दुकान में राहुल वहां के मशहूर श्रीखंड का स्वाद चख रहे थे तब उन्होंने अपनी मां और बहन के लिए भी श्रीखंड के डिब्बे पैक करवाए। लिहाजा गुजरात चुनाव के नतीजे चाहे कितने भी तीखे रहें, राहुल के मुंह के जायके में गुजराती व्यंजनों के स्वाद जैसे अब भी घुले हुए हैं। 

अज्ञातवास के साये से बाहर आती माया
राजनीतिक निर्वासन की पीड़ा झेल रही बसपा सुप्रीमो मायावती को यू.पी. के हालिया निकाय चुनावों के नतीजों से एक नई संजीवनी मिली है। पिछले दिनों बहन जी ने लखनऊ में अपने घर पर पार्टी के क्षेत्रीय को-आर्डीनेटरों की एक अहम बैठक बुलाई। इस बैठक में इतने दिनों बाद बहन जी प्रसन्नचित दिख रही थीं। बहन जी ने सबसे पहले दिल खोलकर अपने को-आर्डीनेटर्स की तारीफों के पुल बांधे और इसके बाद उनसे भविष्य की रणनीति यानी 2019 के लोकसभा चुनावों की बाबत सुझाव मांगे गए। ऐसे आम सहमति से एक सुझाव उभर कर सामने आया कि पार्टी ने जहां-जहां मुस्लिम प्यार के राग को हवा दी वहां उसको मुंह की खानी पड़ी है, सो बहन जी ने तय किया है कि अब क्या खाक मुसलमान होंगे, सो मुस्लिम उम्मीदवार थोक भाव में सिर्फ पश्चिमी यू.पी. में उतारे जाएंगे। बुंदेलखंड, सैंट्रल यू.पी. और पूर्वांचल में एकबारगी पुन: अगड़ी जातियों को बसपा के साथ लाने का उपक्रम साधा जाएगा। 

सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में मायावती ने साफ कर दिया कि 2019 के आम चुनाव में बसपा किसी महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। इसके बजाय वह अकेले अपने दम पर यू.पी. की सभी लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। हालांकि बहन जी ने अपने पार्टी नेताओं के समक्ष स्वीकार किया कि बसपा को इस महागठबंधन का हिस्सा बनाने के लिए अखिलेश उनसे कई-कई दफे बात कर चुके हैं, पर उन्होंने अपनी ओर से इस गठबंधन में शामिल होने का कोई वायदा नहीं किया है। बहन जी ने एक और पते की बात बताई कि जिन नेताओं और कार्यकत्र्ताओं का भाजपा में दम घुट रहा है, बसपा के दरवाजे उनके लिए खुले हुए हैं।

मोदी करेंगे बेरोजगारों की चिंता
गुजरात विधानसभा चुनाव में भगवा सिरमौर मोदी-शाह द्वय को कई नए सबक सीखने को मिले हैं। मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में महसूस किया कि राज्य के युवा किसी न किसी प्रकार भाजपा से नाराज हैं। चूंकि राहुल, हाॢदक, अल्पेश व जिग्नेश की चुनावी सभाओं में युवाओं की अभूतपूर्व भागीदारी थी। सो, चुनावी सियासत के माहिर बाजीगर मोदी 2019 के आम चुनावों में ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। चुनांचे देश के युवाओं खासकर बेरोजगार युवाओं को लुभाने के लिए मोदी सरकार कई नई योजनाओं को परवान चढ़ा सकती है। चुनांचे अगले बजट में नैशनल एम्प्लायमैंट पॉलिसी (एन.ई.पी.) को लेकर बड़ी घोषणाएं मुमकिन हैं। 

सनद रहे कि राष्ट्रीय रोजगार नीति युवाओं के लिए नौकरियों की चिंता करती है। इसके तहत संगठित व असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों की आर्थिक व सामाजिक बेहतरी के लिए नई लेबर पॉलिसी को भी सामने लाया जा सकता है। नए रोजगार सृजन के लिए लघु व मध्यम उद्योगों को कई प्रकार की रियायतें दी जा सकती हैं, वित्तीय संस्थानों से उनको कर्ज मिलने का मार्ग भी पहले से सुगम किया जा सकता है। जैसा कि नीति आयोग ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में चिंता जताई है कि भारत में 15-30 साल आयु वर्ग के 30 प्रतिशत से ज्यादा युवाओं को सही व सटीक ट्रेनिंग व शिक्षा का अभाव है जो उन्हें कम वेतन की नौकरी के लिए बाध्य कर रहा है। इस मामले में चीन जैसे देश भी हमसे कहीं आगे हैं सो, अगला बजट न सिर्फ चुनावी होगा बल्कि युवा हितों की ङ्क्षचता भी उसमें से झलकने वाली है। 

..और अंत में
मोदी-शाह द्वय को हर वक्त इलैक्शन मोड में रहना पसंद है। जैसे दिल की मद्धम-मद्धम हलचल में दो रूहें तैर रही हों, जैसे अपने विकराल पंखों से सियासी आकाश की गहराइयों को तौल रही हों। गुजरात चुनाव की टंकार बस अभी होकर गुजरी है और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने खास मंत्रियों की टीम को कर्नाटक की यात्रा पर रवाना होने के लिए कह दिया है। सूत्र बताते हैं कि संसद के मौजूदा सत्र की समाप्ति के बाद मोदी-शाह के दुलारे मंत्रियों के दिल्ली में दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे, ये सप्ताह में कम से कम 5 दिन कर्नाटक में गुजारेंगे। पीयूष गोयल व निर्मला सीतारमण जैसे मंत्रियों ने अपने अधिकारियों की बैठक में इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में वे अपने संबंधित मंत्रालयों को बेहद कम समय दे पाएंगे।-त्रिदीब रमण 


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