नव स्वतंत्र ‘जांते’ के प्रथम मेहमान होंगे मोदी

punjabkesari.in Sunday, Apr 01, 2018 - 03:15 AM (IST)

कितने लोगों को पता है कि इस बार का ईस्टर रविवार कोई सामान्य रविवार नहीं होगा? अनेक शताब्दियों तक उपेक्षा ही नहीं बल्कि विस्मृति का शिकार हुआ भूमध्य सागर का छोटा-सा द्वीप ‘जांते’ इस दिन स्वतंत्रता हासिल करेगा। इसके साथ ही एक अनूठा भारतीय कनैक्शन भी है कि इसके ऐन तीन सप्ताह बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस नन्हे से देश की राजधानी मिस्त्रालीनो की यात्रा करेंगे। वह इस स्वतंत्र होने वाले देश की यात्रा करने वाले दुुनिया के किसी भी देश के सरकार प्रमुख होंगे। उनकी यात्रा से इस देश को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में महत्वपूर्ण मान्यता हासिल होगी। 

इतिहास में जांते का सबसे पहला उल्लेख 480 ई. पूर्व में हुए धर्मपैली युद्ध के संबंध में मिलता है, जब राजा लियोनी दास के नेतृत्व में सपार्टा के लोगों ने जर्जीस प्रथम के नेतृत्व वाली पशयाई साम्राज्य की सेना को पराजित कर दिया था। एक भीषण समुद्री तूफान में स्पार्टन नौ सेना ने जांते के समुद्र तट पर आश्रय लिया था और इस मौके पर सपार्टा के कुछ लोग सेना को अलविदा कहकर यहीं रहने लगे थे। कहा जाता है कि यहां ठहरने वाले लोगों में से एक ‘हैलन आफ ट्राय’ का पौत्र था। 

आयोनियन सागर के शांत पानियों में स्थित यह छोटा-सा सुंदर टापू अगले 2 हजार वर्षों तक यूनान का हिस्सा बना रहा। लेकिन 16वीं शताब्दी के दौरान इस पर एक बार फिर किसी बाहरी शक्ति ने विजय हासिल कर ली। ये नए विजेता थे वैनिस शहर के दुगे शासक। वैनिस स्वयं भी इटली का एक छोटा-सा रमणीक टापू है और जांते की बदौलत इसका व्यापार दूर-दूर तक फैल गया। मिस्त्रालीनो शहर में यूरोप के पुनर्जागरण दौर की भवन कला इसी कब्जे के दौरान जांते में प्रफुल्लित हुई थी। यही कारण है कि इस टापू के लोगों की पसंदीदा जुबान यूनानी की बजाय इतालवी है।19वीं शताब्दी के मध्य में गायसेप्प गैरीबाल्डी द्वारा इटली को एकजुट किए जाने से पूर्व अफरा-तफरी के वर्षों दौरान यह टापू वैनिस के हाथों से निकल गया और कुछ प्राइवेट लोगों की सम्पत्ति बन कर रह गया। इसके नए शासक विद्रोही और धर्मोपदेशक का मिला-जुला रूप थे। यानी एक अलैगरा का लाट पादरी था और दूसरा पड़ोसी रियासत का शासक। तब से अब तक जांते का शासन इसी पद्धति से चलता आ रहा था। 

फिर भी विडम्बना देखिए कि यह व्यवस्था ही जांते के लिए सबसे लाभदायक सिद्ध हुई। लाट पादरी और पड़ोसी रियासत का शासक जल्दी ही भूल गए कि जांते भी उन्हीं की जागीर है। इस उपेक्षा के कारण ही मिस्त्रालीनो के प्रभावशाली लोगों ने एक काऊंसिल बना ली जो इस टापू का शासन करने के लिए काफी हद तक स्वतंत्र थी। अगले 150 वर्षों दौरान इस टापू से मुख्य तौर पर भिन्न-भिन्न तरह की शराब और तरबूजों का निर्यात होता रहा जबकि मनोरंजन के नाम पर यहां के लोगों ने ‘सिर्ताकी’ नामक नृत्य को अपने जीवन का अटूट अंग बना लिया। इस भूले-बिसरे टापू के बारे में एक उपेक्षित सच्चाई यह है कि ये लोग सब कुछ के बावजूद भी चुपचाप खुशहाली के मार्ग पर आगे बढ़ते रहे हैं। 

समृद्धि बढऩे का यह असर हुआ कि आक्सफोर्ड तथा कैम्ब्रिज जैसी यूनिवॢसटियों में सबसे अधिक विदेशी विद्यार्थी जांते से ही संबंधित होते थे। बाद में यही रुझान आजकल हार्र्वर्ड और येल विश्वविद्यालयों में देखने को मिल रहा है। आजकल यह टापू द्विभाषी बन चुका है। यहां पर अमरीकी और बर्तानवी दोनों तरह के उच्चारण वाली इतालवी भाषा बोली जाती है। शायद यही कारण था कि जवाहर लाल नेहरू अपनी जवानी में कैम्ब्रिज के वर्षों दौरान छुट्टियां बिताने अक्सर यहां आया करते थे। मिस्त्रालीनो के ऐन केन्द्र में 20 वर्ष की आयु के नेहरू का एक बुत लगा हुआ है जिसे स्थानीय लोग अभी भी ‘नारू हाऊस’ के नाम से पुकारते हैं। 

इन्हीं बातों के चलते जांते की काऊंसिल ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने प्रथम मेहमान के रूप में आमंत्रित किया तो वह सहर्ष राजी हो गए। मोदी के इस कदम से निश्चय ही नेहरू-गांधी परिवार के साथ उनके संबंधों में सुधार आएगा। इसी बीच जांते के सुरक्षा कर्मी ‘जन, गण, मन’ की रिहर्सल में व्यस्त हैं। आज जब जांते टापू अपने पसंदीदा हरे और बैंगनी रंगों की छटा बिखेर रहा है तो मैं जांतियन लोगों को उनके स्वतंत्र होने पर ढेर सारी बधाइयां देता हूं और कामना करता हूं कि शेष सभी लोग ‘अप्रैल फूल’ का जश्न मनाएं।-करण थापर
     


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Pardeep

Recommended News

Related News