दूसरी बार सत्ता में आने के लिए मोदी को अभी बहुत कुछ करना होगा

punjabkesari.in Wednesday, Feb 15, 2017 - 12:30 AM (IST)

19 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कार्यकाल के एक हजार दिन पूरे कर लेंगे। यह सचमुच ही ऐसा अवसर होगा जब बीती अवधि पर पाश्र्व दृष्टि डालने के साथ-साथ भविष्य का जायजा लेना भी न्यायसंगत होगा। सवाल पैदा होता है कि मोदी की ‘प्रोग्रैस रिपोर्ट’ क्या है? क्या जैसा भाजपा कहती है उन अर्थों में मोदी ने बहुत उत्कृष्ट कारगुजारी दिखाई है या फिर (जैसा कि कांग्रेस का आरोप है) वह विफल रहे हैं? सच्चाई यह है कि मोदी ने बहुत उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन यदि वह 2019 में दूसरी बार सत्तासीन होने की दावेदारी ठोंकना चाहते हैं तो उन्हें अभी बहुत कुछ करना होगा।

भाजपा ने अपना संख्या बल बढ़ाते हुए आठ रा’यों में अपने बूते पर और 5 रा’यों में गठबंधन सरकारें बनाकर खुद को सत्तासीन किया हुआ है। दिल्ली और बिहार को छोड़कर गत 3 वर्षों दौरान जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं सभी में पार्टी की कारगुजारी काफी बढिय़ा रही है। कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए भाजपा सबसे बड़ी सदस्य संख्या वाला संगठन बनकर उभरी है। इस वर्ष हुए 5 विधानसभा चुनावों के नतीजे 11 मार्च तक सामने आ जाएंगे।मोदी के कार्यकाल के शेष 2 वर्ष  शायद बहुत उपलब्धियों भरे होंगे। भाजपा के रणनीतिकारों ने पहले से ही 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। चाहे पाकिस्तान के विरुद्ध सिर्जिकल स्ट्राइक का मामला हो या नोटबंदी का अथवा  इस वर्ष के विधानसभा के चुनावों की तैयारी के साथ-साथ अगले वर्ष होने वाले 8 रा’यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी का-हर मामले में हर कदम मोदी को दूसरी बार सत्तासीन करने की दृष्टि से उठाया गया है।

प्रत्येक कदम से मोदी अपने मुख्य समर्थक आधार को बनाए रखने के साथ-साथ इसे विस्तार देने की उम्मीद लगाए हुए हैं। क्या अपने वर्तमान पद के लिए उन्होंने 2012 से ही तैयारियां नहीं शुरू कर दी थीं? विदेश नीति के क्षेत्र में की गई पेशकदमियों के मामले में मोदी की सफलता अधिक स्पष्ट रूप में दिखाई देती है क्योंकि उन्होंने न केवल विदेशों में भारत के प्रोफाइल को ऊंचा उठाया है बल्कि विदेशों में बसे हुए भारतीयों के साथ भी प्रगाढ़ और बहुमुखी  रिश्ते विकसित किए हैं। भूटान, बंगलादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान के साथ-साथ अमरीका-भारत संबंधों में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लेकिन उनकी पाकिस्तानी नीति डावांडोल ही रही है। गत वर्ष भारत में आयोजित अफ्रीकी देशों के सम्मेलन में 54 अफ्रीकी देशों के साथ आदान-प्रदान में वृद्धि की है। लातिन अमरीका और जापान में भी काफी सुधार हुआ है लेकिन भारत-अमरीका के बीच बढ़ती घनिष्ठता से रूस कुछ ङ्क्षचतित है।

फिर भी सबसे महत्वपूर्ण बात तो है मोदी के कार्यकाल की शेष बची अवधि। अगले 2 वर्षों में चुनावी सक्रियता कुछ अधिक ही होगी। गुजरात, नागालैंड, कर्नाटक, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मिजोरम में 2018 में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जबकि 2019 में लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में विधानसभा चुनाव होंगे। यदि भाजपा की कारगुजारी बढिय़ा रहती है तो मोदी और अधिक राजनीतिक तथा आर्थिक सुधारों का प्रयास करने की स्थिति में आ जाएंगे। दूसरी बात जो मार्च 11 को चुनावों के नतीजों से तय हो जाएगी वह यह है कि क्या मोदी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए अपनी पसंद का व्यक्ति खड़ा कर पाएंगे। इन दोनों पदों के चुनाव जुलाई 2017 में होने जा रहे हैं। मोदी चूंकि अभियान के ‘मोड’ में हैं और संसद में टकराव की मुद्रा धारण किए हुए हैं इसलिए विपक्ष के साथ कोई भी समझौता करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।

कांग्रेस के साथ भाजपा का टकराव तो गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर निश्चय ही अधिक प्रचंड हो जाएगा क्योंकि इन रा’यों में इन्हीं दोनों दलों के बीच सीधी टक्कर होती है। जब हम घरेलू मोर्चे पर मोदी की कारगुजारी की विवेचना करते हैं तो पाते हैं कि अर्थव्यवस्था काफी अ‘छी हालत में है तथा जी.डी.पी. की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है जो हर लिहाज से बढिय़ा कही जा सकती है। मुद्रास्फीति का आंकड़ा भी कुछ वर्ष पूर्व की तुलना में लगभग आधा हो गया है। भारत का बजट घाटा भी जी.डी.पी. के 4.4 प्रतिशत से सिकुड़ कर 3.9 प्रतिशत पर आ गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। अब चूंकि बहुत अधिक जोखिम भरे आर्थिक फैसले लेने की ’यादा गुंजाइश नहीं बची इसलिए मोदी को अपनी मौजूदा उपलब्धियों को ही अधिक सुदृढ़ करना होगा और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आधारभूत ढांचे में भारी धनराशि खर्च करनी होगी।

रोजगार सृजन के मामले में सरकार की कारगुजारी संतोषजनक नहीं और न ही यह संसद में अभी तक सुधारात्मक प्रस्ताव पारित करवा सकी है। नोटबंदी के लाभ और हानियों के बारे में अभी भी अंतिम रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे एक बात तो तय है कि आर्थिक की बजाय यदि इसे राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो नोटबंदी के माध्यम से मोदी ने सचमुच ही बहुत कमाल का दाव खेला है। उन्होंने ब्राह्मण, बनिया और अन्य पिछड़े वर्गों जैसे भाजपा के परम्परागत समर्थकों में बढ़ौतरी करने और गरीब मतदाताओं को अपने साथ जोडऩे का लक्ष्य अपनाया हुआ है। कालेधनके मुद्दे पर क्या अब मोदी  आगे कदम बढ़ाते हुए बेनामी सम्पत्ति धारकों को लक्ष्य बनाएंगे और चुनावी सुधारों का प्रयास करेंगे? यह काम दोधारी तलवार जैसा है।दूसरा पहलू है कृषि क्षेत्र का। इस क्षेत्र में बहुत अधिक पैसा झोंके जाने की जरूरत है।

चालू वित्त वर्ष में मानसून अच्छा रहना सरकार के लिए शुभ समाचार है लेकिन आगामी 2 वर्षों के बारे में निश्चय से कुछ नहीं कहा  जा सकता क्योंकि मानसून कभी भी आंख-मिचौली कर सकता है। किसानों की आत्महत्याओं के लगातार बढ़ते मामलों का मुद्दा शीघ्र ध्यान की मांग करता है। बिना कोई समय बर्बाद किए कृषि क्षेत्र की समस्याएं सुलझाने की जरूरत है क्योंकि किसान ही भारत की रीढ़ हैं। तीसरा पहलू यह है कि भारत ने तेल कीमतों की गिरावट का बहुत लाभ उठाया है। लेकिन आगामी वर्ष में यह स्थिति जारी रहने के बारे में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि तेल कीमतों में बढ़ौतरी होती है तो इससे आम आदमी बुरी तरह प्रभावित होगा क्योंकि इससे आवाजाही और परिवहन लागतें बढ़ जाएंगी।

चौथे नम्बर पर मोदी को मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्व‘छ भारत अभियान और जन धन योजना जैसी अनेक स्कीमों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना होगा ताकि अंतिम व्यक्ति तक इनके लाभ पहुंच सकें। संक्षेप में मोदी को आर्थिक, राजनीतिक और विदेश नीति तीनों ही क्षेत्रों में आगामी 2 वर्षों में भी अपनी वर्तमान गति हर हालत में बरकरार रखनी होगी तभी वह अगली बार सत्ता में आने का सपना देख सकते हैं।                 


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