पाक और चीन के मामले में इसराईल से सबक सीखे भारत

punjabkesari.in Friday, Jul 14, 2017 - 10:18 PM (IST)

यरूशलम में 11 वर्षीय लड़के हैल्ट्जबर्ग मोशे को गले लगाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर प्रतीकात्मक रूप में इसराईल के साथ भारत के नए रणनीतिक संबंधों को रूपमान करती है जो मानवीय संवेदना से भी भरे हुए हैं। मोशे के यहूदी अभिभावक  मुम्बई में 26/11 के पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले में मारे गए थे। लेकिन मोशे चमत्कारिक रूप में बच गया। उस समय उसकी आयु मात्र 2 वर्ष की थी। बाद में वह अपने दादी-दादा के साथ इसराईल चला गया जहां आजकल वे आफुला नगर में रहते हैं। 

हमारे प्रधानमंत्री पर इसराईली नेताओं और लोगों ने जिस सान्निध्य और स्नेह की बारिश की उससे भी बढ़कर किशोर मोशे भारतीय इतिहास के 26/11 के खूनी कांड का दर्पण और इनसे संबंधित पाकिस्तान और चीन की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का दुखद प्रमाण है। स्वतंत्रता बाद के भारत के घटनाक्रम हमें यह कड़वी सच्चाई याद करवाते हैं कि हम एक राष्ट्र के रूप में इतिहास से कोई खास सबक नहीं सीखते। ऐसे में यह कोई हैरानी की बात नहीं कि अक्तूबर 1947-48 में कश्मीर में पाकिस्तानी कबायलियों के हमले से लेकर 1962 में चीन द्वारा पंचशील के सिद्धांतों से विश्वासघात करते हुए पूर्वोत्तर भारत पर हमले तक तथा पेइचिंग द्वारा तिब्बतियों के दमन व हमारे देश की ओर उनके समूह पलायन से लेकर मुम्बई में पाक प्रायोजित आतंकी हमले तथा इससे आगे की कई घटनाओं तक भारत त्रासद घटनाओं का एक दीर्घकालिक भुक्तभोगी है। ‘साफ्ट स्टेट’ होने का हमने बहुत भारी मोल चुकाया है। 

अभी भी समय है कि यदि हम भारत को सही अर्थों में आगे ले जाना चाहते हैं तो अपने देश को हर किसी के हाथों में खिलौने की तरह समझने की मानसिकता का परित्याग करें। नरेन्द्र मोदी ने अपने तीन वर्षीय प्रधानमंत्रित्वकाल दौरान 60 देशों की यात्रा की है लेकिन इसराईल दौरे दौरान उन्होंने विदेश नीति के पुराने मानसिक बंधनों को तोड़ते हुए भारतीय कूटनीति के परिचालन को दृढ़ता से नया झटका दिया है और अब यह हमारे राष्ट्रहित से एक-सुर हो गई है। तेल अवीव की ओर हाथ बढ़ाने की प्रक्रिया में उन्होंने एक नए मार्ग पर कदम रखा है, जिस पर भारतीय राजनीति के पुराने दिग्गज चलने का साहस ही नहीं कर पाए थे। इसराईल यात्रा प्रधानमंत्री की व्यावहारिक विदेश नीति का बेहतरीन उदाहरण है। उनकी इस यात्रा की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि भारत के इसराईल के साथ रिश्ते भारत-फिलस्तीन समीकरणों के बंधक नहीं रह गए। 

भारत में उनकी यह कहकर आलोचना की गई है कि उन्होंने फिलस्तीनी हितों से पल्ला झाड़ लिया है लेकिन जमीनी हकीकतें इस आरोप को प्रमाणित नहीं करतीं। फिलस्तीन आंदोलन के प्रति भारत की परम्परागत प्रतिबद्धता यथावत कायम है। वैसे भी पीढिय़ों से चली आ रही इस प्रतिबद्धता को हर हालत में पूरा करना भारत के लिए सही होगा। अपने आस-पड़ोस तथा बदलती वैश्विक वास्तविकताओं पर नजर दौड़ाएं तो हम विश्व के बदलते रुझानों के सुरक्षा परिणामों की अनदेखी नहीं कर सकते। आज केवल इस बात का महत्व है कि हम देश को दरपेश आंतरिक और बाहरी चुनौतियों के सभी पहलुओं का संज्ञान लेने वाला सही परिप्रेक्ष्य अपनाएं ताकि देश अपनी रणनीतिक और आॢथक नीतियों को आगे बढ़ाते हुए अपने उद्देश्यों और गंतव्यों का विश्वसनीय मध्यकालिक व दीर्घकालिक दृष्टिकोण विकसित कर सके। 

नरेन्द्र मोदी की तीन दिवसीय तेल अवीव यात्रा गत 70 वर्षों से भारत द्वारा अपनाई जा रही यथास्थितिवादी विदेश नीति से काफी हट कर उठाया गया कदम है। वैसे 25 वर्ष पूर्व इसराईल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने का श्रेय पी.वी. नरसिम्हा राव को जाता है। लेकिन उनकी इस पहल के बावजूद साऊथ ब्लाक नियमित रूप में इसराईल और अरब जगत के बीच विशेष रूप में फिलस्तीन के मुद्दे पर संतुलन बनाए रखने के प्रति अति सतर्कता प्रयुक्त करता रहा है। नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने मोटे रूप में भारत की पूर्व राजनीति पर पहरा देते हुए फिलस्तीन की यात्रा किए बिना तेल अवीव जाने की हिम्मत दिखाई है। ऐसा करके उन्होंने वैश्विक भाईचारे को यह सशक्त संकेत दिया है कि पैट्रोलियम तेलों की बदौलत समृद्धि में पेल रहे पश्चिमी एशियाई देशों के दुश्मनी भरे रवैये के बीच अपना प्रभावशाली अस्तित्व बनाए रखने वाले यहूदी राष्ट्र के साथ भारत का विशेष रिश्ता है। 

भारतीय सत्ता अधिष्ठान के अंदर और बाहर विचारशील भारतीय अक्सर इस जिज्ञासा से भरे रहते हैं कि इसराईल इतने दुश्मनी भरे वातावरण में आखिर किस तरह खुद को जिंदा रख सका है? यहूदी लोग अपने तकनीकी और वैज्ञानिक कौशल्य तथा नवोन्मेषी दृष्टिकोण के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। उन्होंने नई जल तकनीकों से एक ऐसे भूखंड को लहलहाते खेतों और फलों से लदे बगीचों में बदल दिया है जहां पीने के लिए भी पानी नहीं मिला करता था। उन्होंने नमकहरण तकनीकों से समुद्र के जल को पीने लायक बनाकर अपनी आबादी के बहुत बड़े हिस्से को पेयजल उपलब्ध करवाया है। इसके साथ ही उन्होंने एक अनूठी सैन्य युद्ध नीति विकसित कर ली है जिसे भूमि, सागर और वायु में प्रभावशीलता दिखाने वाली सशक्त शस्त्र प्रणाली का समर्थन हासिल है। ऐसे में यह कोई हैरानी की बात नहीं कि चारों ओर से उसे घेरे बैठे दुश्मन देशों में से कोई भी उससे पंगा लेने की हिम्मत नहीं करता चाहे उस देश के पास कितनी भी दौलत और हथियार क्यों न हों। 

देश की सुरक्षा के साथ-साथ जल और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई दशकों से चली आ रही आधारभूत कमजोरियों को दुरुस्त करने पर ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपना फोकस बनाया हुआ है। उन्होंने इसराईली सरकार के साथ बहुत दूरगामी वाले 17 एम.ओ.यू. हस्ताक्षरित किए हैं। इनमें  पेयजल, सैनीटेशन, जल संरक्षण, ऊर्जा, कृषि, अंतरिक्ष एवं नाभकीय सहयोग, जीयो-लीयो आप्टीकल लिंक्स जैसे औद्योगिक शोध एवं विकास तथा तकनीकी नवोन्मेष के मुद्दे शामिल हैं। आगामी 5 वर्षों दौरान दोनों देशों के परस्पर व्यापार को 5 अरब डालर से बढ़ाकर 20 अरब डालर तक लाने के लिए इसराईली और भारतीय कम्पनियों ने 4.3 अरब डालर मूल्य के रणनीतिक समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं। यहां तक कि जिन क्षेत्रों में भारत फिसड्डी है, उनके लिए अलग से चार करोड़ डालर से एक नवोन्मेष कोष स्थापित किया गया है। वास्तव में भारत की स्थानीयप्रतिभा को बेहतरीन ढंग से आगे लाने के लिए हमें एक दोस्ताना प्रोफैशनल वातावरण सृजित करना होगा।

भारत में सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में बहुत अधिक राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। प्रधानमंत्री मोदी यदि इसराईल और पश्चिमी देशों की सफलता की कहानियों से सीख लेना चाहते हैं तो क्या वे इस मुद्दे की ओर गम्भीरता से ध्यान देंगे? मेरा नुक्ता एकदम सरल है: यदि भारतीय विदेशों में जाकर बड़ी-बड़ी उपलब्धियां दर्ज कर सकते हैं तो वे अपने देश में सफलता क्यों नहीं हासिल कर सकते। इसका केवल एक ही स्पष्टीकरण है कि देश राजनीतिक-नौकरशाह नियंत्रण तंत्र से परेशान है क्योंकि यह तंत्र आम जनता द्वारा की जाने वाली पेशकदमियों और नवोन्मेषी क्षमताओं का गला घोंट देता है। मोदी सरकार संरक्षा और सुरक्षा मामले में भारत की कमजोरियों को दुरुस्त करने के मद्देनजर चुपचाप भारतीय कूटनीति को नए रूप प्रदान करने का काम करती आ रही है। चूंकि भारत एक पाश्विक पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियां प्रायोजित किए जाने से परेशान है इसलिए उसे इन सवालों के नए उत्तर तलाश करने होंगे। 

इसराईल के पास ऐसी दक्षता और टैक्नोलॉजी है जो सीमा पार से भारत में की जा रही आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के मामले में चमत्कार दिखा सकती है। चीन और पाकिस्तान दोनों के मामले में हमें अपने रणनीतिक चौखटे में बहुत बड़ा बदलाव लाना होगा। एक दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य का तकाजा है कि हमारी कूटनीति के पीछे मजबूत अर्थव्यवस्था, कुशल प्रशासकीय तंत्र तथा मुस्लिमों सहित समाज के सभी वर्गों की वफादारी हासिल करने वाली राजनीतिक प्रक्रिया मौजूद हो। इसराईल एक ऐसे राष्ट्र का रोशन उदाहरण है जो शक्तिशाली दुश्मनों से घिरा होने के बावजूद गर्व से अपना मस्तक और ध्वज ऊंचा उठाए हुए है। हमें भी पाकिस्तान और चीन के मामले में बिल्कुल ऐसे ही वातावरण का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में इसराईल को भारत से जो अपेक्षाएं हैं उनसे कहीं अधिक अपेक्षाएं भारत को इसराईल से हैं। 


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