भारत को बनाना होगा ‘कुष्ठ रोग मुक्त’ राष्ट्र

punjabkesari.in Tuesday, Jan 30, 2024 - 06:07 AM (IST)

प्रतिवर्ष 30 जनवरी को भारत में सत्य एवं अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर ‘कुष्ठ रोग दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल गांधी जी के मन में रोगियों के प्रति बहुत प्यार और  दुलार था और वे छुआछूत के भी सख्त खिलाफ थे। उन्होंने कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए सफल प्रयास किए। इसीलिए भारत में उनकी पुण्यतिथि पर ही कुष्ठ रोग दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। 

कुष्ठ रोग दिवस की शुरूआत फ्रांस के समाजसेवी और लेखक राऊल फोलेरो द्वारा 1954 में महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में की गई थी। उन्होंने गांधी जी के कुष्ठ रोगियों के प्रति दया और स्नेह को देखते हुए ही यह दिवस गांधी जी को समॢपत किया था। कुष्ठ रोगियों के प्रति गलत धारणाओं के कारण समाज में उनके साथ आज भी भेदभाव किया जाता है और इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरूक करना ही है। 

हालांकि वैश्विक स्तर पर ‘विश्व कुष्ठ रोग दिवस’ प्रतिवर्ष जनवरी माह के अंतिम रविवार को मनाया जाता है और इसके लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। विश्व कुष्ठ रोग दिवस 2024 का विषय था ‘बीट लेप्रोसी’, जिसका उद्देश्य है कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को मिटाना और रोग से प्रभावित लोगों की गरिमा को बढ़ावा देना। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ‘बीट लेप्रोसी’ विषय इस बीमारी को खत्म करने के लिए चिकित्सा प्रयासों के साथ-साथ कुष्ठ रोग के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को संबोधित करने की आवश्यकता का एक शक्तिशाली अनुस्मारक है। यह एक ऐसी दुनिया का आह्वान करता है, जहां कुष्ठ रोग अब कलंक का स्रोत नहीं है बल्कि सभी व्यक्तियों के लिए करुणा और सम्मान प्रदॢशत करने का अवसर है। वर्ष 2023 में विश्व कुष्ठ रोग दिवस की थीम थी ‘एक्ट नाऊ एंड लेप्रोसी’ जबकि 2022 में यह दिवस ‘यूनाइटिड फॉर डिग्निटी’ अर्थात् ‘गरिमा के लिए एकजुट’ थीम के साथ मनाया गया था। 2021 की थीम थी ‘कुष्ठ रोग को हराएं, कलंक को समाप्त करें और मानसिक भलाई के लिए वकालत करें’ जबकि 2020 की थीम थी ‘कुष्ठ रोग वैसा नहीं है, जैसा आप सोचते हैं। 

कुष्ठ रोग (कोढ़) जीवनशैली तथा पोषण की कमी से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है, जो ऐसे लोगों को अपना आसान शिकार बनाती है, जिनके शरीर में पोषण की काफी कमी होती है।’ यह मुख्यत: ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म तथा बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा संबंधी बीमारी है। त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। ‘लेप्रोसी’ तथा ‘हैनसेन रोग’ नाम से भी जानी जाने वाली यह बीमारी धीमी गति से बढऩे वाले  जीवाणुओं माइकोबैक्टेरियम लेप्री तथा माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। 

कुष्ठ रोग को लेकर अधिकांश लोगों में यह धारणा रहती है कि जिन लोगों को कुष्ठ रोग है, उन्हें स्वस्थ लोगों से अलग रहना चाहिए लेकिन वास्तव में यह सोच पूरी तरह गलत है। जिन लोगों के कुष्ठ रोग का एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जा रहा हो, वे अपने परिवार और मित्रों के बीच सामान्य जीवन जी सकते हैं तथा काम या स्कूल-कालेज में अपनी गतिविधि जारी रख सकते हैं। किसी कुष्ठ रोगी से हाथ मिलाने या ऐसे किसी व्यक्ति से बात करने से यह रोग नहीं हो सकता। 

हर साल वैश्विक स्तर पर कुष्ठ रोग के करीब डेढ़ लाख मामले सामने आते हैं और इसमें सर्वाधिक चिंता की बात यही है कि एक ओर जहां दुनिया के अनेक देश इस बीमारी से छुटकारा पा चुके हैं, वहीं दुनिया में सामने आने वाले कुल मामलों में से आधे से भी अधिक मामले भारत में ही सामने आते हैं। भारत के अलावा दक्षिण अमरीका और अफ्रीका में कुष्ठ रोग के अधिकांश मामले सामने आते हैं।-योगेश कुमार गोयल
    


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