सुरक्षा का कानून बन रहा हथियार
punjabkesari.in Monday, May 13, 2024 - 05:34 AM (IST)

सदियों से प्रचलित दहेज प्रथा कानूनन निषेध होने के बावजूद आज भी देश के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, वहीं दहेज निषेध अधिनियम का दुरुपयोग एक अन्य चिंताजनक मुद्दा बनकर उभरने लगा है। एक तरफ वे लोग हैं जो वैवाहिक बंधन के नाम पर सरेआम सौदेबाजी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते, तो दूसरी ओर समाज में एक ऐसा स्वार्थी वर्ग पनप रहा है, जो कानून का दुरुपयोग करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाता। गत माह ही एक महिला पुलिस अधिकारी ने पति के विरुद्घ एक राज्य से दूसरे राज्य में दहेज उत्पीडऩ का झूठा मुकद्दमा दर्ज कराया। इस प्रवृत्ति पर कड़ाईपूर्वक संज्ञान लेते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने महिला पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया, जिसमें से अढ़ाई लाख रुपए बतौर हर्जाना पति को देने का निर्देश दिया। जनवरी माह के दौरान, पंजाब के कपूरथला में पुलिस ने ससुराल पक्ष को दहेज के झूठे मामले में फंसाने पर लड़की के पिता को पकड़ा। मां-बेटी सहित चार पर केस दर्ज किया गया।
झूठे मुकद्दमों की अनवरत बढ़ती संख्या पर गहन चिंता प्रकटाते हुए हाल ही में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 तथा 86 (पूर्व धारा 498-ए) में आवश्यक बदलाव लाने पर विचार करने को कहा, चूंकि बहुतेरी शिकायतें घटना के अतिरंजित बयानों से युक्त होती हैं। उक्त टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने पति के विरुद्घ दायर झूठे दहेज उत्पीडऩ मामले को रद्द करते समय की गई। महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, पति एवं उसके पारिवारिक सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की तथा उसे मानसिक व शारीरिक आघात पहुंचाया। पीठ के मुताबिक, एफ.आई.आर. तथा आरोप पत्र पढऩे पर महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य तथा व्यापक लगे, जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया था।
दरअसल, दहेज उन्मूलन कानून का दुष्प्रयोग विगत कुछ वर्षों से विद्रूपतम स्तर पर जा पहुंचा है। ऐसे मामले भी देखने में आए, जहां संपत्ति विवाद अथवा अन्य पारिवारिक कारणों के चलते ससुराल पक्ष से संबद्ध किसी व्यक्ति पर दुष्कर्म के मिथ्यारोप जड़ दिए गए। विगत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा ससुराल पक्ष पर लगाए गए झूठे दहेज उत्पीडऩ एवं दुष्कर्म आरोपों को ‘घोर क्रूरता’ बताते हुए अक्षम्य करार दिया था।
निश्चय ही, दहेज प्रथा समूचे समाज के लिए अभिशाप है। इसके कारण अनेक बेटियों को मानसिक, शारीरिक अथवा सामाजिक उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। आई.पी.सी.-1860 के सामान्य प्रावधान को सशक्त बनाने के उद्देश्य से ही सन् 1983 को इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जोड़ी गई, जिसे धारा 85-86 के तहत अधिक विस्तृत बनाने का प्रयास किया गया। भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 के अंतर्गत, किसी महिला के पति अथवा पति के संबंधी द्वारा महिला के प्रति क्रूरता बरतने पर तीन वर्ष की कैद की सजा तथा जुर्माना लगाने का प्रावधान है। धारा 86 में क्रूरता को परिभाषित किया गया है, जिसमें महिला का मानसिक-शारीरिक उत्पीडऩ, दोनों शामिल हैं।
कानून दुरुपयोग के संदर्भ में न्यायिक संस्थानों की चिंता कतई निराधार नहीं, वर पक्ष के लिए यह गले की फांस बन सकता है। कानपुर से संबद्घ एक झूठे दहेज हत्या मुकद्दमे में विवेचक की लापरवाही के चलते पति व सास-ससुर के विरुद्घ चार्जशीट कोर्ट भेज दी गई। विवेचना संबंधी खामियां उजागर होने पर अपर जिला जज ने पति व सास-ससुर को दोषमुक्त करार दिया। फैसला आने तक पति 2 वर्ष का कारावास काट चुका है। मुकद्दमेबाजी से लेकर बरी होने तक की कानूनी प्रक्रिया के दौरान न केवल पूरे परिवार को आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है, अपितु शारीरिक-मानसिक स्थिति के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कथित तौर पर, पत्नी द्वारा दहेज उत्पीडऩ मुकद्दमा दर्ज करवाने पर गत वर्ष राजधानी के नाका हिंडोला निवासी 45 वर्षीय राजेश जायसवाल ने मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या कर ली थी। बाराबंकी के विकास ने भी आई.पी.सी. की धारा 498-ए का मुकद्दमा लिखे जाने तथा ससुरालजनों द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर मौत को गले लगा लिया।
संवेदनात्मक स्तर पर आहत व्यक्ति आत्मघात की ओर उन्मुख होने लगे तो समूचे समाज व व्यवस्था के लिए एक विचारणीय प्रश्न बन जाता है। किसी भी प्रकार का संत्रास झेलना यद्यपि सरल नहीं, तथापि विषम परिस्थितियों से हारकर जीवन का अंत करना क्या उचित है? कदापि नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का सामना करना ही पड़े तो पत्नी द्वारा झूठे केस में फंसाने संबंधी दी गई धमकी को चैटिंग, ऑडियो रिकॉर्डिंग अथवा मैसेज आदि के रूप में सुरक्षित रखना मतिपूर्ण होगा। ठोस प्रमाण होने के नाते ये त्वरित जमानत दिलाने में सहाई बन सकते हैं। पत्नी द्वारा दहेज मामले में फंसाने की धमकी देकर घर छोडऩे पर वैवाहिक अधिकारों की प्रतिस्थापन धारा-9 के तहत, उसे अपने पास बुलाने हेतु न्यायालय में याचिका दाखिल की जा सकती है। पति के पक्ष में यह पुख्ता सबूत होगा कि पत्नी अपनी इच्छानुसार घर छोड़कर गई है।
नि:संदेह, महिलाओं का सम्मान-सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु दहेज उन्मूलन कानून का कठोरतापूर्वक लागू होना अत्यावश्यक है, किंतु निहित स्वार्थवश अथवा विद्वेष के चलते कानूनी प्रावधान को प्रहार के रूप में प्रयुक्त करना पूर्णत: अनैतिक है। कानून का ध्येय यदि अपराधियों को दंडित करना है तो निर्दोषों का सम्मान बरकरार रखना भी उसके दायित्व के अंतर्गत आता है। कानून किसी अपराधी को समुचित दंड न दे पाए अथवा कानूून की आड़ में किसी निरपराध को दंड भोगना पड़े, दोनों ही स्थितियां सामाजिक विकास में बाधक हैं। कानून की धारा, जिसका इस्तेमाल एक वर्ग की रक्षार्थ किया जाना हो, यदि हथियार बनकर दूसरे वर्ग पर वार करने लगे, तो ऐसे में समग्र सामाजिक उत्थान की संकल्पना भला कैसे संभव है?-दीपिका अरोड़ा