शी के चीन से निपटने के लिए भारत को नई रणनीति की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Jul 09, 2021 - 06:57 AM (IST)

चीनी कर्णधार माओ कहा करते थे कि ‘इशारा दाईं तरफ करो और बाईं तरफ मुड़ जाओ’। अपने मित्रों तथा आलोचकों को भ्रमित करने के लिए यह एक विशिष्ट चीनी गुण है। माओ का बहुत पहले निधन हो चुका है। अब उन्हें पेइङ्क्षचग में बहुत जोर-शोर से नहीं लिया जाता। फिर भी उनके ‘इशारा दाईं तरफ करो और बाईं तरफ मुड़ जाओ’ के निर्देश को सफलतापूर्वक चीनी नेताओं द्वारा अमल में लाया जा रहा है जिनमें चीन के वर्तमान नेता तथा उसके भाग्य विधाता राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल हैं। 

नेहरू का भारत 1962 में नेफा में हुए घटनाक्रम के दौरान माओ तथा चाऊ की चेहरे पर मुस्कान रख कर पीठ में छुरा घोंपने की कूटनीति से वाकिफ हो गया था। मुझे विश्वास है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गोपनीय व्यवहार के बारे में भली-भांति परिचित होंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने किसी समय चीनी नेता का अहमदाबाद में एक राजा की तरह स्वागत किया था।

संभवत: उस समय उन्हें राष्ट्रपति शी के छुपे हुए चेहरे के बारे में कोई अनुमान नहीं था जो बाद में गत वर्ष लद्दाख में हुए हमले के बाद सामने आ गया। मुझे लगता है कि इस घटनाक्रम ने प्रधानमंत्री मोदी को एक बड़ा झटका दिया है। 

राष्ट्रपति शी जिनपिंग पेइचिंग में एक सर्वोच्च नेता के तौर पर उभरे हैं।  पीछे नजर डालें तो उन्होंने चीनी क युनिस्ट पार्टी (सी.सी.पी.) की कमान 2012 में तथा चीन के राष्ट्रपति के तौर पर 2013 में पदभार संभाला था। अब उन्होंने सी.सी.पी. तथा राज्य के सभी कार्यकारी अंगों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। एक अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति, उनका मु य उद्देश्य राजनीतिक, आॢथक के साथ-साथ सैन्य तौर पर चीन को एक सुपर पावर बनाने के मद्देनजर देश के आधुनिकीकरण अभियान को आगे ले जाना है। उनकी इच्छा चीन को एक मजबूत तथा समृद्ध सा यवादी देश बनाना है। चीन को एक सफल राष्ट्र बनाने का उनका अति आत्मविश्वास तथा दृढ़ निश्चय 1 जुलाई को सत्ताधारी क युनिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में दिए गए भाषण से झलकता है। यह पेइचिंग में एक बहुत बड़ा कार्यक्रम था। 

तिनानमिन चौक पर हजारों लोगों की उपस्थिति में दिए गए एक घंटा लंबे भाषण में राष्ट्रपति शी ने चीन के ‘राष्ट्रीय जीर्णोद्धार’ की प्रशंसा की, जो एक ऐसा दृष्टांत है जिस पर वह 2012 में सार्वजनिक रूप से उभरने के बाद से आमतौर पर जोर देते आए हैं। मंच पर उनके साथ पूर्व राष्ट्रपति हू जिनताओ सहित पोलित ब्यूरो के तथा अतीत के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। इस समारोह में माओ त्से तुंग के काल की सभी अनुभूतियां शामिल थीं। 3000 से अधिक विद्यार्थियों ने पार्टी की प्रशंसा में एक कॉयर गाया। तिनानमिन के ऊपर उड़ते हैलीकाप्टरों पर पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे दिखाई दे रहे थे, जिनके पीछे जे-20 फाइटर जैट थे। 

राष्ट्रपति शी माओ स्टाइल का गहरे हरे रंग का सूूट पहने हुए थे। अपने भाषण में उन्होंने अपने पसंदीदा शब्द ‘राष्ट्रीय जीर्णोद्धार’ कम से कम 24 बार दोहराया। उन्होंने स्पष्ट किया कि चीन की सफलता पार्टी के नेतृत्व पर निर्भर है। उनके भाषण का सर्वाधिक जोरदार हिस्सा था जब उन्होंने चेतावनी दी कि ‘जो कोई भी चीन को धमकाने की कोशिश करेगा उसे टूटे सिरों तथा रक्तपात का सामना करना पड़ेगा।’ यह वास्तव में हास्यास्पद है कि चीनी नेता चीन को धमकाने के बारे में बात कर रहा है।

उनका यह दावा कि चीन अन्य देशों को नहीं धमकाता, खोखला दिखाई देता है। हालिया घटनाक्रम हमें बताते हैं कि चीन भारत सहित पड़ोसी देशों को धमकाता रहता है। 1962 में जमीन हड़पने से लेकर हालिया लद्दाख घटनाक्रम तक नई दिल्ली को विभिन्न अवसरों पर सीमा पर चीन की धमकियों तथा हिंसा का सामना करना पड़ा है। 

शी वैश्विक स्तर पर चीन को ऊपर उठाने में साम्यवादियों की भूमिका को रेखांकित करते हैं तथा गर्व से एक पार्टी के शासन की बात कहते हैं। उन्होंने अमरीका तथा अन्य पर पलटवार किया जो आमतौर पर चीन की व्यापार तथा तकनीकी नीतियों, सैन्य विस्तार तथा मानवाधिकारों के रिकार्ड की आलोचना करते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि शी माओ त्से तुंग के कदमों पर चल रहे हैं और उनका स्टाइल तथा विषय वस्तु दोनों एक हैं। 2002 में कमान संभालने के बाद उन्होंने पार्टी में अपना कद माओ के बराबर कर लिया।

उन्होंने निर्णय निर्माण के हर क्षेत्र में पार्टी की सीधी भूमिका अपनाई। यहां तक कि उन्होंने खुद को एकमात्र नेता के रूप में पेश किया जिसके साथ ही एक नई विचारधारा बनाई जिसे नए युग में शी जिनपिंग विचारधारा कहा जा सकता है। मेरा मानना है कि यह कुछ ही समय की बात है जब शी जिनपिंग के विचार माओ की विचारधारा को पृष्ठभूमि में धकेल देंगे। 

स्वाभाविक है कि शी जिनपिंग सांझे नेतृत्व के दृष्टांत से दूर होकर एक केंद्रीय नेता की सत्ता की ओर बढ़ रहे हैं और वह केंद्रीय नेता फिलहाल शी जिनपिंग हैं। वह कहते हैं कि ‘हमें आवश्यक तौर पर पार्टी की केंद्रीय समिति तथा पार्टी में महासचिव की केंद्रीय भूमिका को बनाए रखना है।’ शी के तौर पर जाने जाते, वह सी.सी.पी. के महासचिव, देश के राष्ट्रपति तथा सेना के प्रमुख हैं अर्थात वह आज चीन में सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति हैं। 

आगे नजर डालें तो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महान सत्ता रणनीति को पश्चिमी जगत तथा भारत सहित पड़ोसी देशों को गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत है। चीन पहले ही विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है। इसे 2036 तक अमरीका से आगे निकलने की आशा है, यहां तक कि उच्च तकनीक के कई क्षेत्रों में। इसकी आॢथक सफलता के साथ राष्ट्रपति शी का मानना है कि चीन पहले से ही एक वैध बड़ी ताकत है। एक तरह से वह सही हैं। आर्थिक शक्ति राजनीतिक तथा सैन्य ताकत का आधार है। संयोग से राष्ट्रपति बाइडेन पहले ही सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने उच्च तकनीक तथा सैन्य ताकत के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अमरीकी सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति की घोषणा की है। 

राष्ट्रपति शी का विश्व नेताओं को संदेश तीखा तथा स्पष्ट है। उन्हें भारत जैसे विकासशील लोकतांत्रिक देशों द्वारा गंभीरतापूर्वक लिया जाना चाहिए। मुझे आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनका भाषण अच्छी तरह से पढ़ा है। अब उन्हें लोकतांत्रिक भारत की आर्थिक तथा सैन्य ताकत को तीव्र गति से बनाने के लिए मुकाबले की रणनीति पर विचार करना है। एक राष्ट्र के तौर पर हमें बिना राजनीति के एक मजबूत भारत के लिए विचार करना चाहिए।-हरि जयसिंह


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