भारत-जापान सांझेदारी में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने वाले नहीं रहे

punjabkesari.in Saturday, Jul 09, 2022 - 04:42 AM (IST)

शिंजो आबे-जापान के एक उत्कृष्ट राजनेता, एक महान वैश्विक राजनेता, और भारत-जापान मित्रता के प्रबल हिमायती-अब हमारे बीच नहीं हैं। जापान और पूरी दुनिया ने एक महान दूरदर्शी राजनेता को और मैंने अपने एक अत्यंत प्रिय मित्र को खो दिया है। मैं वर्ष 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में जापान की अपनी यात्रा के दौरान पहली बार उनसे मिला था। उस पहली मुलाकात के बाद से ही हमारी दोस्ती कार्यालय की समस्त औपचारिकता और आधिकारिक प्रोटोकॉल के बंधनों से कहीं आगे निकल गई थी। 

क्योटो में तोजी मंदिर का दर्शन करना,शिंकानसेन पर हमारी ट्रेन यात्रा, अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की हमारी यात्रा, काशी में गंगा आरती, टोक्यो में विस्तृत चाय समारोह, हमारी यादगार मुलाकातों की सूची वास्तव में बेहद लंबी है। वहीं, माऊंट फूजी की तलहटी में बसे यमनाशी प्रांत में उनके पारिवारिक घर में आमंत्रित किए जाने के विलक्षण सम्मान को मैं सदैव संजो कर रखूंगा। 

यहां तक कि जब वह वर्ष 2007 और वर्ष 2012 के बीच, और हाल ही में वर्ष 2020 के बाद जापान के प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी हमारा व्यक्तिगत जुड़ाव हमेशा की ही तरह अत्यंत मजबूत बना रहा। आबे सान के साथ हर मुलाकात बौद्धिक रूप से अत्यंत प्रेरणादायक होती थी। वह शासन, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, विदेश नीति और विभिन्न अन्य विषयों पर नए विचारों और बहुमूल्य जानकारियों से सदैव अवगत रहते थे।  उनके सलाहकार ने मुझे गुजरात के आर्थिक विकल्पों के लिए प्रेरित किया। उनके समर्थन ने जापान के साथ गुजरात की जीवंत सांझेदारी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

बाद में, भारत और जापान के बीच रणनीतिक सांझेदारी में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के लिए उनके साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। काफी हद तक संकीर्ण व द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों से, आबे सान ने इसे एक विस्तृत व व्यापक संबंध के रूप में विकसित करने में मदद की, जिसने न केवल राष्ट्रीय प्रयास के हर क्षेत्र को कवर किया, बल्कि यह दोनों देशों के साथ पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बन गया। 

उनके लिए, यह दोनों देशों और दुनिया के लोगों के लिए परिणाम के आधार पर बनने वाले सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में से एक था। वे भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने के प्रति दृढ़ थे, यह निर्णय उनके देश के सबसे कठिन निर्णयों में एक था और वे भारत में हाई स्पीड रेल के लिए सबसे उदार शर्तों की पेशकश करने में निर्णायक रहे। स्वतंत्र भारत की यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक के रूप में, उन्होंने सुनिश्चित किया कि यदि न्यू इंडिया अपने विकास की गति तेज करता है, तो जापान इसके साथ हरदम मौजूद रहेगा। भारत-जापान संबंधों में उनके योगदान के लिए, 2021 में उन्हें प्रतिष्ठित पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 

आबे सान को दुनिया में हो रहे जटिल और विभिन्न बदलावों की गहरी जानकारी थी, राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर इसके प्रभाव को देखने के लिए अपने समय से आगे होने की दृष्टि, उन विकल्पों को जानने का ज्ञान, जिन्हें पेश किया जाना था, परम्पराओं के बावजूद स्पष्ट और साहसिक निर्णय लेने की क्षमता और अपने देशवासियों तथा दुनिया के लोगों को अपने साथ ले चलने की दुर्लभ क्षमता। 

उनकी दूरगामी नीतियों (एबेनॉमिक्स) ने जापानी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत किया और अपने लोगों के नवाचार व उद्यमिता की भावना को फिर से प्रज्ज्वलित किया।  उनके द्वारा हमें दिया गया सबसे बहुमूल्य उपहार और उनकी सबसे स्थायी विरासत, जिसके लिए दुनिया हमेशा उनकी ऋणी रहेगी, है-हमारे वर्तमान समय में बदलते ज्वार और उठते तूफानों को पहचानने की उनकी दूरदर्शिता और इनसे निपटने की उनकी नेतृत्वकारी क्षमता। दूसरों की तुलना में बहुत ही पहले, उन्होंने 2007 में भारतीय संसद में दिए गए अपने एक मौलिक भाषण के जरिए एक समकालीन राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक वास्तविकता के रूप में हिंद -प्रशांत क्षेत्र, एक ऐसा क्षेत्र जो इस सदी में दुनिया को भी नया आकार देगा, के उद्भव का आधार तैयार किया था। 

क्वाड, आसियान के नेतृत्व वाले मंच, इंडो पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफास्ट्रक्चर इन सभी को उनके योगदान से लाभ हुआ। चुपचाप और बिना किसी शोरगुल के और घरेलू झिझक और विदेशों में होने वाले संदेह पर काबू पाते हुए उन्होंने पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रक्षा, कनैक्टिविटी, बुनियादी ढांचे और स्थिरता सहित विभिन्न क्षेत्रों में जापान की रणनीतिक भागीदारी को बदल दिया। 

इस वजह से, यह क्षेत्र अपने नियति के प्रति अधिक आशावादी है और यह दुनिया अपने भविष्य के बारे में अधिक आश्वस्त है। इस साल मई में अपनी जापान यात्रा के दौरान मुझे शिंजो आबे सान से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। उन्होंने तब जापान-भारत संघ के अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण ही किया था। मैं उनकी गर्मजोशी और बुद्धिमत्ता, गरिमा व उदारता, दोस्ती और मार्गदर्शन के लिए हमेशा ऋणी रहूंगा, और मुझे उनकी बहुत याद आएगी। 

हम भारत में ठीक उसी तरह से अपने एक प्रियजन के रूप में उनके निधन पर बेहद दुखी हैं, जिस तरह से उन्होंने हमें खुले दिल से गले लगाया था। उन्हें लोगों को प्रेरित करना सबसे प्रिय था और लोगों को प्रेरित करते हुए ही वह चले गए। उनका जीवन भले ही दु:खद रूप से असमय खत्म हो गया, लेकिन उनकी विरासत सदैव कायम रहेगी। मैं भारत के लोगों की ओर से और अपनी ओर से जापान के लोगों, विशेष रूप से श्रीमती अकी आबे और उनके परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। ओम शांति।-नरेन्द्र मोदी(प्रधानमंत्री, भारत)


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