‘भारत स्वतंत्र नहीं है लेकिन आंशिक रूप से मुक्त है’

punjabkesari.in Monday, Mar 08, 2021 - 03:09 AM (IST)

2020 में मोदी सरकार ने शासन में गिरावट दिखाने वाले विभिन्न सूचकांकों पर भारत के रुख को सुधारने का फैसला किया। यह सूचकांक जो दिल्ली को परेशान कर रहे थे विशेष क्षेत्र में काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा उत्पादित किए गए जोकि संयुक्त राष्ट्र, वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम, द इकोनॉमिस्ट जैसे बहुपक्षीय निकायों तथा सरकार के स्वयं के डाटा द्वारा प्राप्त हुए थे। सरकार इसकी गिरावट के बारे में चिन्ता में थी। हमें यह पता है क्योंकि इसमें 10 जुलाई को एक प्रैस विज्ञप्ति एक शीर्षक ‘‘’नीति आयोग 29 चुनिन्दा ग्लोबल सूचकांक के प्रदर्शन के निगरानी के लिए एक आभासी कार्यशाला आयोजित करता है’’ के तहत जारी की। 

इस कार्यशाला में यह निर्णय लिया गया कि सरकार सभी 29 ग्लोबल सूचकांकों के लिए एक एकल सूचनात्मक ‘डैशबोर्ड’ तैयार करेगी जो प्रकाशन एजैंसियों द्वारा इस्तेमाल में लाए जा रहे डाटा स्रोत के साथ-साथ आधिकारिक डाटा के अनुरूप पैरामीटरों की निगरानी करने की अनुमति देगा। निगरानी प्रक्रिया न केवल रैंकिंग में सुधार करने के लिए बल्कि सिस्टम को बेहतर और निवेश को आकर्षित करने के लिए विश्वस्तर पर भारत की धारणा को आकार देने हेतु कार्य करेगी। 

सरकार यह मानती है कि यह मुद्दा वास्तविकता की बजाय छवि से संबंधित था। अगले महीने की एक रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार 29 वैश्विक सूचकांकों पर भारत की रैंकिंग में सुधार करने के लिए काम कर रही थी और यह संदेश सभी को जोर से और स्पष्ट रूप में पहुंचाना चाहती थी। जिस तरह से यह किया गया यह एक विशाल प्रचार अभियान था जिसने विज्ञापन और मंत्रालयों के सूक्ष्म स्थलों के माध्यम से भारत की धारणा को आकार दिया। यह वैश्विक सूचकांकों की समस्याओं, मापदंडों तथा डाटा स्रोत का प्रचार भी करेगा। 

क्या इससे समस्या का समाधान होगा? यह नहीं होगा। मुद्दा धारणा या पूर्वाग्रह का नहीं था बल्कि यह तो तथ्य का था। दुनिया हमें खराब रोशनी में दिखाने की साजिश नहीं कर रही थी। समाधान यह स्वीकार करने के लिए था कि भारत 2014 से कई क्षेत्रों में गिरावट पर है जिन्हें सुधारने के लिए कोशिश की जा रही थी। मीडिया अभियान पर पैसा खर्च करने से संख्या में बदलाव नहीं होगा। भारत इन सभी एजैंसियों तथा संस्थानों के डाटा को बदनाम कर रहा था। तथ्यों को देखने और समझने वालों के विचारों को उलटने की सम्भावना नहीं थी। 

मोदी सरकार के तहत भारत की रैंकिंग तीन संकेतकों (वल्र्ड बैंक की डूइंग बिजनैस इंडैक्स सहित) पर बढ़ी। यह दो पर समान रही मगर 41 पर गिर गई। यह गिरावट इतनी व्यापक तथा स्पष्ट थी कि संगठनों ने विभिन्न पद्धतियों के माध्यम से समान परिणाम हासिल किए। 2014 के बाद से भारत ने 6 सूचकांकों में बेहद घटिया प्रदर्शन किया जिन्होंने नागरिक स्वतंत्रता और बहुलवाद को ट्रैक किया, 5 ने स्वास्थ्य तथा साक्षरता को ट्रैक किया, 2 ने धार्मिक स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों को ट्रैक किया, 2 ने इंटरनैट इंकार, 6 ने विभिन्न किस्मों की राष्ट्रीय शक्ति, 4 ने कानून तथा भ्रष्टाचार के नियम को ट्रैक किया, 4 ने स्थिरता और पर्यावरण, 4 ने ङ्क्षलग मुद्दों तथा उनकी सुरक्षा, 4 ने भारतीयों की आॢथक स्वतंत्रता तथा 4 ने ही शहरी स्थानों को ट्रैक किया। 

रिकार्ड बहस और विवाद के लिए बहुत कम जगह छोड़ते हैं। शासन में गिरावट का पैमाना और दृढ़ता प्रकट करता है। यह अजीब लग सकता है कि मोदी सरकार को यह सोचना चाहिए था कि इस प्रदर्शन को एक विशाल प्रचार अभियान की आवश्यकता है जो विज्ञापन और अधिक वैबसाइटों के माध्यम से भारत की धारणा को आकार देगा। 

नवीनतम रिपोर्ट इस सप्ताह ‘फ्रीडम हाऊस’ से आई है जिसमें कहा गया है कि भारत स्वतंत्र नहीं है लेकिन आंशिक रूप से मुक्त है। यह एक राय नहीं है यह तो संकेतकों के एक सैट पर आधारित है। वहीं भारत का कहना है कि वह लोकतांत्रिक है। ‘फ्रीडम हाऊस’ सहमत है। यह भारत को राजनीतिक अधिकारों पर 40 में से 34 अंक देता है। स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों के लिए पूरे अंक। चुनाव आयोग निष्पक्षता, राजनीतिक दलों को शुरू करने की स्वतंत्रता, विपक्ष को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर दिया, हिंसा और साम्प्रदायिक तनाव से मतदान में बाधा है या नहीं इस पर पूर्ण अंक नहीं दिया। 

यह बातें हम पहले से जानते हैं। तथ्य यह है कि हम राजनीतिक अधिकारों पर बहुत बेहतर करते हैं और तथ्य यह भी है कि सरकार को पारदर्शिता जोकि शायद ही सही है पर 4 में से 3 अंक मिलते हैं। समस्या यह है कि राजनीतिक अधिकार ‘फ्रीडम हाऊस’ के स्कोर का 40 प्रतिशत है अन्य 60 प्रतिशत नागरिक स्वतंत्रता है।

यहां पर हम खराब प्रदर्शन करते हैं (60 में से 33 अंक)। अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक, शैक्षणिक स्वतंत्रता, एकत्रित होने की स्वतंत्रता, गैर-सरकारी संगठनों को काम करने की स्वतंत्रता (मेरे पूर्व संगठन एमनैस्टी इंडिया पर हमले का विशेष रूप से), कानून का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पुलिस द्वारा उचित प्रक्रिया के मुद्दे पर हमारी रेटिंग बेहद खराब है। क्या हम इससे सहमत हो सकते हैं? कभी नहीं।-आकार पटेल


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