भारत में भी ब्रिटेन जैसी मुफ्त नैशनल हैल्थ सर्विस हो

punjabkesari.in Monday, Jan 09, 2017 - 12:52 AM (IST)

ये शब्द मैं हर्टफोर्डशायर इंगलैंड से लिख रहा हूं। मेरा पांव टूटा हुआ है। मैं बोलिंग कर रहा था। तभी मेरा पैर अंदर की ओर मुड़ गया और मैं गिर पड़ा जिससे मेरे टखने की हड्डी टूट गई। मैं तत्काल भांप गया कि कोई गंभीर बात हो गई है। फिर भी मैंने समझा कि पांव में मोच आई होगी और मैंने इसकी अनदेखी कर दी, यह सोचते हुए कि खुद ही ठीक हो जाएगी। कुछ दिन बाद पांव सूज कर गुब्बारे जैसा हो गया तो मैंने डाक्टर को दिखाने का फैसला लिया।

लंदन की हार्ले स्ट्रीट पर स्थित जिस डाक्टर को मैंने फोन किया तो उसने मुझे बताया कि मुझे वह दोपहर के समय देख सकता है लेकिन एक्स-रे के परिणाम अगले दिन ही उपलब्ध होंगे। मैं इंतजार नहीं कर सकता था इसलिए करीबी अस्पताल के दुर्घटना एवं आपातकालीन वार्ड में गया।

वहां मैंने बताया कि मैं बेंगलूर से आया हूं और अगले कुछ दिनों में मैंने वापसी की उड़ान पकडऩी है। परिचायक ने मेरा पंजीकरण किया और लगभग दर्जन भर अन्य लोगों के साथ मुझे इंतजार करने को कहा। उनमें से कुछ लोगों की हालत तो मेरे जैसी ही बदतर थी।

लगभग आधे घंटे के बाद मुझे एक नर्स के पास भेजा गया। उसने मेरा सूजा हुआ पैर देखा और मुझे एक्स-रे के लिए भेज दिया। वहां रेडियोलोजिस्ट ने मेरे कुछ एक्स-रे लिए और मुझे बताया कि पांव की हड्डी टूटी हुई है।

उसने मुझे पूछा कि क्या मैं इसी हालत में चलता-फिरता रहा हूं तो मैंने कहा हां। उसने व्हीलचेयर मंगवाई और उसमें बैठाकर मुझे एक अन्य भवन में डाक्टर के पास भेजा गया। आधे घंटे के इंतजार के बाद उस डाक्टर ने मुझे स्कैनिंग दिखाई। यह एक गोलाकार दरार थी जो मेरे टखने के चारों ओर फैली हुई थी। (इंगलैंड में अधिकतर डाक्टर भारतीय ही हैं।)

फिर डाक्टर ने मुझे कहा कि मेरे पांव पर प्लस्तर चढ़ाना होगा और इसे तैयार करने में आधा घंटा लग जाएगा तब तक मुझे इंतजार करना होगा। कुछ मिनटों बाद एक महिला ने मेरा नाम पुकारा और मेरे जूते का साइज पूछा। मैंने बताया कि 11 नम्बर है और फिर वह पांव का सांचा लेने चली गई। यह  एक बड़ा-सा प्लास्टिक का बूट था जो बाहर से बिल्कुल सख्त और अंदर से नरम था। नरम भाग में हवा भी भरी जा सकती थी, ताकि पांव इसमें अच्छी तरह फिट हो जाए।

इस उपकरण के साथ दो बड़ी जुराबें भी भेजी गई थीं और परिचायिका अथवा नर्स ने मुझे इसका डैमो देकर बताया कि इसे सावधानी और धैर्य से कैसे पहनना है। फिर उसने मुझे पूछा कि क्या मुझे एक्स-रे की सी.डी. मिल गई है। मैंने कहा कि मुझे ऐसी कोई सी.डी. नहीं मिली है। तो वह मुझे व्हीलचेयर में बैठाकर फिर से पहली बिल्डिंग में गई और सी.डी. निकलवाई। तब उसने मुझे बताया कि सी.डी. हासिल करने के बाद बिल्डिंग के बाहर कैसे जाना है। इस तरह मुझे 5 मिनट का समय और लग गया।

मुझे किसी भी काम के लिए कोई पैसा नहीं देना पड़ा और पंजीकरण से लेकर परामर्श, एक्स-रे एवं पांव का सांचा तक पूरी तरह मुफ्त था। लगभग 2 घंटों के बाद मैं अस्पताल से बाहर निकला।

मैं ऐसी बातें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि ब्रिटेन के समाचार पत्र सदा ही वहां की नैशनल हैल्थ सर्विस के बारे में रिपोर्टों से भरे होते हैं जिनमें बताया गया होता है कि किस तरह लोगों को सर्जरी इत्यादि के लिए समय देने से पूर्व कई घंटों तक इंतजार करवाया जाता है।

नैशनल हैल्थ सर्विस ब्रिटेन के सभी नागरिकों के लिए नि:शुल्क है और मेरे मामले में तो यह भी स्पष्ट हो गया कि आपात और दुर्घटना सेवाओं के मामले में भी कोई पैसा नहीं लिया जाता। यहां तक कि विदेशी पर्यटकों के लिए यह सेवा मुफ्त है। ऐसे में मेरा मानना है कि यह बहुत ही सभ्य व्यवहार है।

मैं यह भी स्वीकार करता हूं कि मेरा अनुभव शायद ब्रिटेन के अन्य लोगों जैसा नहीं और आपात सेवा विभाग शायद ऐसी जगह नहीं जिसके आधार पर वहां की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के परिचालन पर कोई फतवा दिया जा सके। लेकिन जितनी सेवा-संभाल और दक्षता मुझे अपने मामले में देखने को मिली वह किसी ऐसी प्रणाली की ही पैदावार है जो बहुत बढिय़ा ढंग से काम करती है।

मुझे मुफ्त में इलाज करवाने पर कुछ अपराधबोध-सा महसूस हुआ लेकिन मुझे इस बात का भी पता है कि मेरे जैसे लोगों के टैक्स में से ही उन हजारों भारतीय डाक्टरों को सबसिडी पर पढ़ाई करवाई जाती रही है जो कोर्स करने के बाद ब्रिटेन जैसे देशों में चले गए।

ब्रिटेन हर वर्ष अपनी नैशनल हैल्थ सर्विस पर 9.3 लाख करोड़ रुपए खर्च करता है यानी प्रत्येक नागरिक पर लगभग 1.5 लाख रुपए। दूसरी ओर भारत का केन्द्रीय स्वास्थ्य बजट 33 हजार करोड़ प्रति वर्ष है जिसका तात्पर्य है कि प्रत्येक भारतीय पर सरकार का स्वास्थ्य बजट केवल 260 रुपए है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हम एक गरीब देश हैं। लेकिन इसी गरीब देश ने गत वर्ष 36 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 59 हजार करोड़ रुपया खर्च किया था और इस वर्ष बुलेट ट्रेन पर 99 हजार करोड़ रुपए खर्च किया जाएगा।

मैं तो यह परिकल्पना भी नहीं कर सकता कि ब्रिटेन के नागरिक अपनी सरकार को नागरिकों के स्वास्थ्य की कीमत पर इस प्रकार के बेवकूफी भरे खिलौनों पर इतना पैसा बर्बाद करने की अनुमति देंगे। मीडिया में होने वाली चर्चाओं और बहसों में भारतीय मध्यम वर्ग के लोग ही छाए होते हैं और वे ही करोड़ों गरीब लोगों पर अपनी वरीयताएं थोप रहे हैं।

हम ऐसा मान रहे हैं कि महाशक्ति बनने का तात्पर्य है कि हम युद्ध लडऩे के काबिल होंगे और इसी लिए हम जापानी टैक्नोलॉजी का फूहड़तापूर्ण प्रदर्शन करते हैं और दैत्याकार मूर्तियां बना रहे हैं। ब्रिटेन में सभ्य राष्ट्र होने का अर्थ यह होता है कि सरकारी तंत्र इस तरह का हो जो दक्ष होने के साथ-साथ इंसानों की सेवा-संभाल और पोषण भी करे, बेशक वे उनके अपने नागरिक न भी हों। 


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