भारत में ई-न्यायालयों का कार्यान्वयन

punjabkesari.in Friday, Oct 15, 2021 - 05:21 AM (IST)

कोरोना महामारी के दौरान हाई स्पीड इंटरनैट ने भारत की विशाल न्यायिक प्रणाली सहित विभिन्न क्षेत्रों को संचालित करने में मदद की। देश भर की अदालतों में लगभग 4.40 करोड़ मामले लंबित हैं। यह बैकलॉग न्याय के लिए बहुत लंबे इंतजार का कारण बनता है, जिससे न्यायिक प्रणाली अप्रचलित और अक्षम हो जाती है। एन.जे.डी.जी. के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में 30 प्रतिशत से अधिक मामले 5 वर्षों से अधिक पुराने हैं और विधि आयोग की 2009 की रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी लंबित मामलों को निपटाने में 464 वर्षों से अधिक का समय लगेगा। 

ई-कोर्ट क्या हैं : इलैक्ट्रॉनिक कोर्ट का मतलब किसी भी स्थान से है जहां योग्य न्यायाधीशों की उपस्थिति में कानून के मामलों पर आनलाइन फैसला सुनाया जाता है। फाइल हैंडलिंग से लेकर निर्णय देने तक सब कुछ एक ई-कोर्ट में ऑनलाइन वातावरण में किया जाता है। हैदराबाद उच्च न्यायालय पहला ई-न्यायालय था, जो जुलाई, 2016 में भारत में खुला। ई-न्यायालय परियोजना 2005 में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह एक अखिल भारतीय परियोजना है, जिसकी निगरानी ई-समिति द्वारा की जाती है और सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।

ई-समिति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा गठित एक निकाय है और इसे तब बनाया गया था जब भारत के मुख्य न्यायाधीश को भारतीय न्यायपालिका प्रणाली के कम्प्यूटरीकरण के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने में सहायता की आवश्यकता थी। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय की  ई-समिति  का नेतृत्व न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना (भारत के मुख्य न्यायाधीश) और अध्यक्षता न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश) कर रहे हैं। 

भारत में कार्यान्वयन : सरकार ने इस परियोजना को कई चरणों में विभाजित किया है, प्रत्येक चरण का एक निश्चित लक्ष्य और समयसीमा है। फिलहाल, द्वितीय चरण का कार्य प्रगति पर है। पहला चरण 2007 के प्रारंभ में शुरू हुआ। कोर्ट कॉम्प्लैक्स, कम्प्यूटर सर्वर रूम और न्यायिक सेवा केंद्र स्थापित और कम्प्यूटरीकृत किए गए। इस चरण का उद्देश्य देश के सभी न्यायालयों को डिजिटलीकरण के लिए तैयार करना था और यह 30 मार्च, 2015 को संपन्न हुआ।

दूसरा चरण 2015 के मध्य में केंद्रीयकृत फाइलिंग सिस्टम, दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली और एक राष्ट्रव्यापी डाटाबेस स्थापित करके ई-कोर्ट के स्तर को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू हुआ। इसका उद्देश्य न्यायाधीशों और न्यायिक प्रक्रिया में शामिल अन्य सभी को प्रशिक्षण देना भी है। इस चरण के दौरान राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एन.जे.डी.जी.) बनाया गया, जो एक केंद्रीयकृत डाटाबेस है, जिसका उपयोग देश भर की विभिन्न अदालतों में न्यायिक प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए किया जाता है। अदालतों और जनता के लिए अधिक गुणात्मक जानकारी की सुविधा के लिए एन.जे.डी.जी. में सुधार करने की योजना है। एन.जे.डी.जी. वैबसाइट के माध्यम से ई-फाइलिंग, ई-हस्ताक्षर और भुगतान के लिए जगह बनाने की भी योजना है।  

ई-कोर्ट का उद्देश्य 
1. भारतीय न्यायिक प्रणाली को अधिक कुशल बनाना।   
2. कानूनी प्रक्रिया में सुधार और पारदॢशता को बढ़ावा देने में मदद करना। क्योंकि सभी अदालती काम डिजिटल रूप से किए जाते हैं और सभी जानकारी एक डाटाबेस में संग्रहित की जाती है।           
3. ई-कोर्ट वकीलों, न्यायाधीशों और वादियों का समय बचाते हैं। भौतिक अदालतों के साथ एक समस्या यह है कि लोगों को अदालत में आने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। कभी-कभी, अप्रत्याशित परिस्थितियों के  कारण ये लोग समय पर अदालत नहीं पहुंच पाते और मामले के  फैसले के  लिए एक और तारीख सुना दी जाती है। यह न्याय की प्रक्रिया में देरी और बैकलॉग का एक बड़ा कारण है।   
4. ई-कोर्ट गवाहों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते हैं। गवाहों को अब अदालत आने और अपनी गवाही देने की आवश्यकता नहीं है, जो परिणाम के डर से प्रभावित हो सकते हैं। 

निष्कर्ष : ई-न्यायालय परियोजना से सभी हितधारकों की लागत और समय की बचत करने में एक काफी मदद मिलेगी और साथ ही भारतीय न्यायिक प्रणाली की दक्षता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक न्यायालय में ऑनलाइन अदालतों के  लिए बुनियादी ढांचा हो और भारत के प्रत्येक नागरिक की ई-कोर्ट तक पहुंच हो। ई-कोर्ट न्यायिक प्रणाली को लाभान्वित करते हैं क्योंकि यह सूचना की आसान पुन:प्राप्ति की अनुमति देता है, जिससे न्यायाधीशों को एक बटन के क्लिक से महत्वपूर्ण दस्तावेजों के  साथ चल रहे मामले की कार्रवाई देखने की अनुमति मिलती है।-जय शर्मा


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