इतिहास की बेजोड़ घटना होगी ‘हाउडी मोदी’

punjabkesari.in Sunday, Sep 22, 2019 - 03:29 AM (IST)

इतिहास जब बनता है तो कुछ इस तरह अचानक और अप्रत्याशित रूप से कि विश्व स्तब्ध होकर देखता रह जाता है। अमरीका के प्रसिद्ध नगर ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ यानी ‘आप कैसे हैं मोदी जी’ का कार्यक्रम अमरीका के इतिहास ही नहीं, बल्कि विश्व इतिहास की ऐसी बेजोड़ घटना होगी, जिस पर आने वाले लम्बे समय तक चर्चा होगी। 

50 हजार लोगों की भीड़ को एक साथ सम्बोधित करना, यह कभी किसी पश्चिमी देश का बड़े से बड़ा नेता भी सोच नहीं सकता। वहां इस प्रकार की विशाल विराट जनसभाओं का कोई विचार ही नहीं है, 100-500 की सभा बहुत अच्छी मानी जाती है और संख्या यदि 1000-2000 के ऊपर चली गई तो उसको ऐतिहासिक कह दिया जाता है। 

अमरीका में रहने वाले, अधिकतर वहां के निवासी भारतीयों की संख्या 25 लाख से अधिक है। उनमें से अधिकांश वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर, सॉफ्टवेयर और इंटरनैट के शिखर प्रमुख हैं। आज अमरीका में सर्वाधिक आय और सर्वोच्च तकनीकी एवं अन्य सर्वाधिक वेतन वाले पद भारतीय मूल के अमरीकियों के पास हैं। उनके पास इसी कारण राजनीतिक और संसदीय निर्णयों को प्रभावित करने की भी क्षमता होनी चाहिए, जो धीरे-धीरे वे प्राप्त कर रहे हैं। उनकी तुलना केवल यहूदी समाज से की जा सकती है जिनकी संख्या 60 से 80 लाख तक बताई जाती है लेकिन मीडिया और राजनीति पर उनका अपनी संख्या से भी कई गुना ज्यादा प्रभाव है। 

गहरे कूटनीतिक व सामरिक अर्थ
मोदी की ह्यूस्टन सभा में राष्ट्रपति ट्रम्प की सहभागिता न तो अचानक है और न ही केवल सौजन्यता। इसके बहुत गहरे कूटनीतिक और सामरिक अर्थ हैं। यह विराट और विश्वव्यापी प्रसिद्धि वाला अभूतपूर्व कार्यक्रम उस समय हो रहा है जब भारत ने मोदी-शाह के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को नया रूप, नया स्वर और नया वैधानिक दर्जा दिया है। इस पर पाकिस्तान केवल खिसियानी बिल्ली की तरह होकर रह गया है। ट्रम्प और मोदी की जोड़ी जब ह्यूस्टन में 50 हजार से ज्यादा भारतीयों के सामने और विश्व में करोड़ों दर्शकों  द्वारा देखे जाते हुए दोस्ती की अभिव्यक्ति करेगी और मोदी-मोदी-मोदी के उद्घोष से सारा अमरीका गूंजेगा तो इसका असर क्या होगा, यह सोच कर दुश्मन परेशान और मित्र बाग-बाग हैं। 

पूरे मुस्लिम जगत में इस सभा का बहुत गहराअसर होने वाला है तथा पाकिस्तान मुस्लिम देशों तथा पश्चिमी देशों के बीच पहले से ज्यादा अलग-थलग हो जाएगा। केवल चीन के भरोसे कब तक पाकिस्तान चलेगा? लेकिन सबसे बड़ी बात होगी कि  विश्वव्यापी भारतीय समाज का सम्मान और अभिमान ही नहीं, उनका मनोबल  भी असीम आकाश तक पहुंचेगा।  हर भारतीय, चाहे वह चीन में है  या अफ्रीका और पूर्वी एशिया में, ह्यूस्टन की सभा से प्रभावित और रोमांचित है और ऐसा ही उनके मेजबान देश पर असर होगा। विदेश स्थित भारतीयों का कद अपने-अपने देश में बढऩे का सीधा असर न केवल उनकी अपनी आॢथक स्थिति में नए अवसरों की उपस्थिति में होगा बल्कि भारत के सामरिक संबंधों पर भी उस सबका सकारात्मक परिणाम होगा। 

चीन के साथ हमारे संबंध 
यह बात अचानक महसूस नहीं होती कि भारत-अमरीका दोस्ती का ह्यूस्टन अध्याय उस समय रचा जा रहा है जब सिर्फ 15 दिन बाद चीन के राष्ट्रपति शी  जिनपिंग भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। उनकी यात्रा से ठीक पहले भारत और अमरीका के मध्य अभूतपूर्व मित्रता का यह अध्याय सामरिक महत्व से भी बढ़ कर है। चीन ने न केवल कश्मीर के मामले में अनावश्यक रूप से प्रकटतया पाकिस्तान का साथ दिया, बल्कि इस मामले को राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भी ले गया, जहां चीन के अलावा सब देशों ने भारत का साथ दिया और चीन के अर्थहीन प्रस्ताव को वीटो कर दिया। चीन के अखबार भी भारत के विरुद्ध लिखते आ रहे हैं। ये सब बातें और मसूद अजहर के मामले में पहले आनाकानी तथा बड़ी देर  के बाद उसको आतंकवादी घोषित करने की एक औपचारिक घोषणा के लिए समर्थन भी सबको याद है। इस परिदृश्य में ह्यूस्टन की सभा वास्तव में विश्वव्यापी भारतीय प्रभाव के विस्तार तथा चीन की परेशानियों के बढ़ते जाने का ही पैमाना है। 

चीन के साथ न केवल हमारे सीमा सम्बन्धी विवाद हैं बल्कि आयात-निर्यात में भी अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनसे भारत को बहुत आर्थिक क्षति होती है। चीन के साथ भारत का 60 अरब डालर से ज्यादा व्यापार असंतुलन है अर्थात भारत के साथ लगभग अस्सी अरब डालर के वार्षिक आयात -निर्यात में 60 अरब डालर का सामान हम चीन से ले  रहे हैं और केवल बीस अरब डॉलर का भारतीय सामान वहां जा रहाहै। इस असंतुलन और कूटनीतिक तौर पर प्रच्छन्न पाकिस्तान समर्थन हमें चीन के प्रति आशंकित रखता है। ऐसी कूटनीतिक परिस्थिति में ह्यूस्टन सभा केवल मोदी-मोदी के नारों और भारत के भक्त समुदाय की प्रसन्नता का ही इजहार नहीं बल्कि उसकी वैश्विक सामरिक मजबूती के बढ़ते जाने का भी परिचायक है। चीन सामरिक चुनौती के रूप में जब सामने हो तो ह्यूस्टन का महत्व और बढ़ जाता है। 

वह नरेन्द्र और यह नरेन्द्र
एक नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) वह थे जो 100 साल से भी पहले 1893 में शिकागो गए थे और जिन्होंने अमरीका में दिए अपने सम्बोधन के माध्यम से विश्व में भारत के धर्म और अध्यात्म का डंका बजाया था, जिसकी अनुगूंज अभी तक सुनाई देती है। एक नरेन्द्र यह हैं जो ह्यूस्टन में भारत की शक्ति और सामथ्र्य के साथ भारत के सवा अरब लोगों के नए सपनों और नए ङ्क्षहदुस्तान  की गूंज से विश्व को अचंभित करेंगे। नियति के संकेत समझने में देर भले ही हो परन्तु भूल नहीं होनी चाहिए।-तरुण विजय
 


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