हिमाचल कांग्रेस बिखराव की ओर

punjabkesari.in Thursday, Sep 29, 2016 - 02:09 AM (IST)

(डा. राजीव पत्थरिया): हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी में इन दिनों खूब घमासान चल रहा है। सरकार की ओर से खुद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आए दिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यशैली पर सवाल उठाते फिर रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री के इन हमलों से आहत प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कई पदाधिकारियों ने भी खुलकर सरकार की कार्यशैली पर उंगली उठाई है। अगले वर्ष हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले कांग्रेस बिखरनी शुरू हो गई है। 

इसी माह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और अब नए अध्यक्ष के लिए लॉङ्क्षबग शुरू हो गई है। हालांकि सुखविंद्र सिंह सुक्खू अपनी अगली पारी खेलने के लिए कांग्रेस हाईकमान के बड़े नेताओं से लगातार सम्पर्क साध रहे हैं परन्तु मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इस चुनावी बेला में अपनी पसंद के नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाना चाहते हैं ताकि विधानसभा चुनावों में संगठन को वह मनमाफिक चला सकें। 

यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने इस बार अपनी टीम का सहारा लेने के बजाय खुद ही सुक्खू को हटवाने की भूमिका बनानी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री द्वारा जनसभाओं और मीडिया से बातचीत में बार-बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिवों की तैनाती पर कई तरह से सवाल उठाए गए हैं। वहीं उन्होंने संगठन के अंदर जरूरी बदलाव कर सुधार करने की बात भी कही है। हिमाचल प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच चल रहे इस विवाद को हल करने के लिए हिमाचल कांग्रेस प्रभारी अंबिका सोनी खुद  शिमला आ रही हैं। 

मुख्यमंत्री की बयानबाजी से आहत प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिवों की ओर से सरकार में बिना किसी मैरिट के नियुक्त किए गए अध्यक्षों व उपाध्यक्षों की नियुक्ति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि बिना मंत्रियों और विधायकों की जानकारी के प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिवों की नियुक्तियां की गई हैं। वहीं प्रदेश कांग्रेस सचिवों ने भी मुख्यमंत्री को प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के रूप में समानांतर ईकाइयां खड़ा करने पर घेरा है। 

यही नहीं, मुख्यमंत्री के बयान से आहत उनके ही गृह विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले दो सचिव तो अपने पद से इस्तीफा भी आफर कर चुके हैं और अब पांच अन्य सचिवों ने भी इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। हालांकि मुख्यमंत्री और संगठन के बीच चल रही इस लड़ाई के असर को भांपते हुए वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह की ओर से गिले-शिकवे दूर करने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार की जा रही इस तरह की बयानबाजी से संगठन में असंतोष पैदा हो चुका है। 

गैरकृषक हिमाचलियों के हित में आया हाईकोर्ट का फैसला हिमाचली होते हुए भी यहां की सरकार की नीतियों के कारण सौतेला व्यवहार झेलते आ रहे लाखों गैरकृषक हिमाचलियों को हि.प्र. हाईकोर्ट ने राहत दी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में धारा 118 के कारण राज्य में जमीन नहीं खरीद पा रहे सभी गैरकृषक हिमाचलियों को जमीन खरीदने का अधिकार देने के लिए राज्य सरकार को 90 दिनों के भीतर संबंधित एक्ट में आवश्यक संशोधन करने को कहा है। हाईकोर्ट का यह फैसला 1972 से पहले हिमाचल में रह रहे गैरकृषक हिमाचलियों पर लागू होगा। 

1972 में तब के मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार ने प्रदेश में बागीचों और खेती जमीनों को अन्य राज्यों के लोगों से बचाने के लिए धारा 118 को लागू किया था। हालांकि यह धारा भारत के संविधान के विपरीत है लेकिन फिर भी पिछले 44 वर्षों से यह हिमाचल में लागू है  परन्तु अब हि.प्र. हाईकोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले से प्रदेश में रह रहे लाखों गैरकृषक हिमाचलियों को राहत मिली है। इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसे लागू करती है या फिर इस पर आगे अपील में जाती है।


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