सरकार को अपने कदमों पर ‘सफाई’ देना जरूरी

punjabkesari.in Thursday, Apr 09, 2020 - 01:59 AM (IST)

सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाऊन को बढ़ाने के संकेत दिए हैं। इसका आदेश मोदी ने 25 मार्च को दिया था। देश में लॉकडाऊन को बढ़ाने या फिर इसे आंशिक रूप से हटाने पर चर्चाएं तथा बहस जारी थी। हालांकि कोई भी इसे हटाने के लिए नहीं कह रहा है। इस दुखभरी घड़ी में सरकार को लोगों के मनों को भांपते हुए उनकी शंकाएं दूर करनी चाहिएं। मोदी सरकार की हमेशा से एक पक्षीय संवाद करने की प्रवृत्ति रही है। 

मोदी सरकार ने लगता है कि यह कसम खा रखी है कि वह लोगों के किसी भी सवाल चाहे मीडिया से ही हो, का जवाब नहीं देगी। सत्ता में लौटने के बाद से ही मोदी ने लोगों के सवालों के जवाब सीधे तौर पर देने से इंकार ही किया है। मोदी का संदिग्ध रिकार्ड बताता है कि उन्होंने कोई भी एक प्रैस वार्ता नहीं की और न ही मीडिया के किसी सवालों के जवाब दिए। आजादी के बाद से लेकर उन जैसा प्रधानमंत्री नहीं देखा गया जो लोगों के सवालों से मुंह फेरता हो। 

मोदी के पास अपने विचारों को बाहर निकालने के लिए कई प्लेटफार्म मौजूद हैं, जिसमें राष्ट्र को सम्बोधित करना, सार्वजनिक बैठकें करना और यहां तक कि सोशल मीडिया भी शामिल है जहां पर उनसे कोई भी सवाल नहीं कर सकता। नागरिकों के पास अधिकार है कि वे मोदी से सवाल-जवाब करें तथा सरकार की गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करें। लोग यह भी जानना चाहते हैं कि इस महामारी से निपटने के लिए कौन से कदम उठाए जा रहे हैं तथा सरकार इस मुश्किल से कैसे पार पाना चाहती है। 

नागरिक यह भी जानना चाहते हैं कि सरकार की ओर से महामारी से निपटने के लिए कौन से प्रबंध किए गए हैं। अपने राष्ट्र के नाम संदेशों में मोदी ने ऐसे कदमों को उठाने के प्रति कोई भी विस्तृत जानकारी नहीं दी। लोग इस बात को यकीनी बनाना चाहते हैं कि देश में काफी सहूलियतें हैं तथा इन्हें और ज्यादा कैसे उत्पन्न किया जाएगा। मिसाल के तौर पर लोग यह भी जानना चाहते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दवाइयां उपलब्ध करवाने के धमकी भरे बयान पर भारत का क्या रवैया है। किसी भी विश्वसनीय सूचना के अभाव में सभी मुद्दे आशाओं के क्षेत्र में बंध कर रह जाते हैं।

मोमबत्तियां, दीए या फिर मोबाइल फोन की टार्च लाइट को जलाने का मकसद समझ नहीं आया 
मोदी ने अभी तक लोगों को हाल ही में तालियां बजाने तथा दीए जलाने के लिए की गई अपील के बारे में कोई भी स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं करवाया। कोरोना वायरस से लडऩे वाले डाक्टरों तथा अन्य मैडीकल स्टाफ के लिए ताली बजाने का मकसद तो समझ में आया है। ताली बजाने का मतलब ऐसे लोगों का आभार प्रकट करना था तथा उनका हौसला बढ़ाना था। ऐसा ही आभार कई अन्य देशों जैसे इटली, स्पेन तथा बाद में ब्रिटेन में प्रकट किया गया। इस प्रक्रिया में देश के सभी वर्गों ने भाग लिया। हालांकि कुछ मूर्ख लोगों ने घरों से बाहर निकल कर जलूस निकाले तथा मोदी की अपील का जश्न मनाया। मोमबत्तियां, दीए या फिर मोबाइल फोन की टार्च लाइट को जलाने के मकसद के बारे में कुछ समझ नहीं आया और न ही इसके बारे में कोई व्याख्या की गई। 

मोदी के इस कदम की व्याख्या तथा सिद्धांतों पर बाद में कोई पीएच.डी. करना चाहेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने यह जरूरी नहीं समझा कि ऐसे कार्यों के पीछे के तथ्य के बारे में बताया जाए। मोदी के कार्य के समर्थन में भाजपा नेताओं की लम्बी सेना मौजूद है। उनका मानना है कि यह नक्षत्रों तथा ज्योतिष से संबंधित है तथा इस सामुदायिक कार्रवाई से कोरोना वायरस से लडऩे में मदद मिलेगी। कुछ अन्य लोग भी हैं जो यह दावा करते हैं कि इससे आलौकिक संदेश भेजा जा सकता है। 

यहां पर ऐसी भी अटकलें थीं कि तिथि और समय का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के गठन के साथ जुड़ा है और पूरे देश को इस मौके को मनाना पड़ा। कुछ बौद्धिक तर्क भी दिए गए कि ऐसा करने से अपने भावों को उठाने में मदद मिलेगी। जो इन सब बातों को नहीं मानते, उनका मानना है कि कोरोना वायरस पर अंकुश लगाने के प्रयास में सब लोगों की भागीदारी को शामिल किया गया। 

केवल सरकार ही महामारी के साथ नहीं लड़ सकती बल्कि सभी लोगों जिन्होंने इस प्रक्रिया में भाग लिया उनकी भी जिम्मेदारी बनती है। इसलिए सफलता या विफलता का श्रेय केवल सरकार को ही नहीं जाता बल्कि उन लोगों को भी जाता है जिन्होंने अपना योगदान दिया। प्रधानमंत्री द्वारा लोगों से की गई इस तरह की अपील के पीछे के विचार का व्याख्यान किया जाना चाहिए। सवालों के जवाब तथा व्याख्या के अभाव में अटकलबाजियों तथा अफवाहों का बाजार गर्म रह सकता है। समाज के लिए ऐसी बातें ठीक नहीं। सरकार को नागरिकों के वास्तविक सवालों के जवाब देने चाहिएं।-विपिन पब्बी
 


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