नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश की समस्याओं पर ध्यान दें

punjabkesari.in Monday, Dec 25, 2017 - 04:35 AM (IST)

भाजपा के शिखर नेतृत्व के मन में गत 3 दिनों में यह प्रश्न कई बार आया होगा कि गुजरात के चुनाव में इतनी मशक्कत क्यों करनी पड़ी? विपक्ष ने गुजरात मॉडल को लेकर बार-बार पूछा कि इस चुनाव में इसकी बात क्यों नहीं हो रही? विपक्ष का व्यंग था कि जिस गुजरात मॉडल को मोदी जी ने पूरे देश में प्रचारित कर केन्द्र की सत्ता हासिल की, उस मॉडल का गुजरात में ही जिक्र करने से भाजपा क्यों बचती रही? क्या उस मॉडल में कुछ खोट है? 

क्या उस मॉडल को जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया? क्या उस मॉडल का गुजरात की आम जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा? वजह जो भी रही हो भाजपा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री को काफी पसीना बहाना पड़ा गुजरात का चुनाव जीतने के लिए। एक और फर्क यह था कि पहले चुनावों में मोदी जी के नाम पर ही वोट मिल जाया करते थे लेकिन इस बार केन्द्र के अनेक मंत्रियों, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रांतों के मंत्रियों और पूरे देश के संघ के कार्यकत्र्ताओं को लगना पड़ा गुजरात की जनता को राजी करने के लिए कि वे एक बार फिर भाजपा को सत्ता सौंप दें। 

इन स्टार प्रचारकों में सबसे ज्यादा आकर्षक नाम रहा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का, जिनके केसरिया बाने और प्रखर संभाषणों ने गुजरात के लोगों को आकर्षित किया। अब चर्चा है कि भाजपा लोकसभा के चुनाव में योगी जी का भरपूर उपयोग करेगी, पर इस सबके बीच मेरी ङ्क्षचता का विषय उत्तर प्रदेश का विकास है। उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से इस वक्त शासन चल रहा है उससे कुछ भी ऐसा नजर नहीं आ रहा कि बुनियादी बदलाव आया हो। लोग कहते हैं कि सुश्री मायावती के शासनकाल में नौकरशाही सबसे अनुशासित रही। 

अखिलेश यादव को लोग एक सद्इच्छा रखने वाला ऊर्जावान युवा मानते हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के विकास के लिए बहुत योजनाएं चालू कीं और कुछ को पूरा भी किया लेकिन पारिवारिक अंतर्कलह और राजनीति पर परिवार के प्रभाव ने उन्हें काफी पीछे धकेल दिया। योगी जी का न तो कोई परिवार है और न ही उन्हें आर्थिकअसुरक्षा। एक बड़े सम्प्रदाय के महंत होने के नाते उनके पास वैभव की कमी नहीं है इसलिए यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपना शासन पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करेंगे, लेकिन केवल निष्ठा और ईमानदारी से लोगों की समस्याएं हल नहीं होतीं। उसके लिए प्रशासनिक सूझ-बूझ, योग्य, पारदर्शी और सामथ्र्यवान लोगों की बड़ी टीम चाहिए जिसे अलग-अलग क्षेत्रों का दायित्व सौंप सकें। 

क्रियान्वयन पर कड़ी नजर रखनी होती है। जनता से फीडबैक लेने का सीधा मैकेनिज्म होना चाहिए जिनका आज उत्तर प्रदेश शासन में नितांत अभाव है। श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह को उत्तर प्रदेश के विकास पर अभी से ध्यान देना होगा। केवल रैलियां, नारे व आक्रामक प्रचार शैली से चुनाव तो जीता जा सकता है लेकिन दिल नहीं। उत्तर प्रदेश की जनता का यदि दिल जीतना है तो समस्याओं की जड़ में जाना होगा। लोग किसी भी सरकार से बहुत अपेक्षा नहीं रखते। वे चाहते हैं कि बिजली, सड़कें, कानून व्यवस्था ठीक रहे, पेयजल की आपूर्ति हो, सफाई ठीक रहे और लोगों को व्यापार करने करने की छूट हो। किसानों को सिंचाई के लिए जल और फसल का वाजिब दाम मिले तो प्रदेश संभल जाता है। 

इतना बड़ा सरकारी अमला, छोटे-छोटे अधिकारी के पास गाड़ी, मकान, तन्ख्वाह व पैंशन, फिर भी रिश्वत का मोह नहीं छूटता। आज कौन-सा महकमा है उत्तर प्रदेश में जहां काम कराने में नीचे से ऊपर रिश्वत या कमीशन नहीं चल रहा और कब नहीं चला। यदि पहले भी चला और आज भी चल रहा है  तो फिर योगी जी के आने से क्या अंतर पड़ा। मोदी जी की इस बात का क्या प्रभाव पड़ा कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’। मैं बार-बार अपने लेखों के माध्यम से कहता आया हूं कि दो तरह का भ्रष्टाचार होता है। एक क्रियान्वयन का और दूसरा योजना का। क्रियान्वयन का भ्रष्टाचार व्यापक है, कोई भी इंजीनियरिंग विभाग ऐसा नहीं है, जो बिना कमीशन के काम करवाए या बिल पास करे लेकिन इससे बड़ा भ्रष्टाचार यह होता है कि योजना बनाने में ही आप एक ऐसा खेल खेल जाएं कि जनता को पता ही न चले और सैंकड़ों करोड़ के वारे-न्यारे हो जाएं। 

मुझे तकलीफ  के साथ मोदी जी, योगी जी और अमित शाह जी को कहना है कि आज उत्तर प्रदेश में सीमित साधनों के बीच जो कुछ भी योजनाएं बन रही हैं उनमें पारदर्शिता, सार्थकता और उपयोगिता का नितांत अभाव है। कारण स्पष्ट है कि योजना बनाने वाले वही लोग हैं, जो पिछले 70 साल से योजना बनाने के लिए ही योजना बनाते आए हैं। केवल मोटी फीस लेने के लिए योजनाएं बनाते हैं। बात बार-बार हुई कि जमीन से विकास की परिकल्पना आए। लोगों की भागीदारी हो, गांव और ब्लॉक स्तर पर समझ विकसित की जाए, योजना आयोग का भी नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया गया लेकिन इसका असर लोगों को जमीन पर नहीं दिखाई दे रहा। फिर भी देश की जनता यह मानती है कि साम्प्रदायिकता, पाकिस्तान, चीन और कई ऐसे बड़े सवाल हैं, जिन पर निर्णय लेने के लिए एक सशक्त नेतृत्व की जरूरत है और वह नेतृत्व नरेन्द्र मोदी दे रहे हैं। 

उन्होंने अपनी छवि भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी बनाई है जहां इंदिरा गांधी के बाद उन्हीं को सबसे ज्यादा सुना और समझा जा रहा है। परिणाम अभी आने बाकी हैं। फिर भी उत्तर प्रदेश के स्तर पर यदि ठोस काम करना है तो समस्याओं के हल करने की नीति और योजनाओं को भी ठोस धरातल से जुड़ा होना होगा। समस्याओं के हल उन लोगों के पास हैं, जिन्होंने उन समस्याओं को ईमानदारी से हल करने की कोशिश की है। कोशिश ही नहीं की, बिना सरकारी मदद के सफल होकर दिखाया है। 

क्या कोई भी प्रांत या कोई भी सरकार ऐसे लोगों को बुला कर उनको सुनने को तैयार है? अगर नहीं तो फिर वही रहेंगे ‘ढाक के तीन पात’ उत्तर प्रदेश में आने वाला लोकसभा चुनाव तो मोदी जी जीत जाएंगे लेकिन उसके लिए गुजरात से कहीं ज्यादा मशक्कत करनी पड़ेगी। अगर अभी से स्थितियां सुधरने लगें, त्वरित परिणाम दिखने लगें तो जनता भी साथ होगी और काम भी साथ होगा, फिर बिना किसी बड़े संघर्ष से वांछित फल प्राप्त किया जा सकता है।-विनीत नारायण


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