नदियां बचाने के लिए भगीरथ जैसा प्रयास करना होगा

punjabkesari.in Saturday, Apr 09, 2022 - 04:21 AM (IST)

जलवायु परिवर्तन और पानी का गहराता संकट भारत समेत पूरे विश्व और मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। रिकॉर्ड सफलता हासिल करने वाली सुपरहिट फिल्म आर.आर.आर. में साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई के साथ जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को भी शिद्दत से उठाया गया है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरे देश में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। पंजाब और हरियाणा के साथ देश के कई राज्यों में नदियों के पानी के इस्तेमाल और बंटवारे पर जंग भी शुरू हो गई है। 

दिलचस्प बात यह है कि नदियों के पानी पर हक का दावा करने वाली राज्य सरकारें जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण के मुद्दे पर केंद्र के सर पर ठीकरा फोडऩे लगती हैं। दूसरी तरफ देश के बड़े शहरों में हर पल के ट्रैफिक जाम का अपडेट लोगों को गूगल से मिल रहा है। लेकिन केंद्र सरकार के पास देश की छोटी बड़ी नदियों में पानी की उपलब्धता का नवीनतम डाटा ही नहीं है। 

पौराणिक अनुसूचियों के अनुसार भगीरथ गंगा नदी को लाए थे, लेकिन काशी में ही गंगा सूख रही है। अब गंगा समेत नदियों को बचाने के लिए सरकार के साथ समाज को भी भगीरथ प्रयास करना पड़ेगा। आई.आई.टी.की प्रोफैसरी त्याग कर नदियों को बचाने के लिए जीवन अर्पित करने वाले डा. जी.डी.अग्रवाल की तर्ज पर अनेक मनीषी-नदियों के साथ समाज और सरकार के साथ संवाद को स्थापित कर रहे हैं। उसी कड़ी में 12 अप्रैल को नई दिल्ली में नदी संवाद का आयोजन हो रहा है। पर्यावरणविद, वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, संतों और आम जन से हुए विचार मंथन के अनुसार नदी संवाद के इन 9 प्रस्तावों पर समयबद्ध तरीके से कार्रवाई हो तो भारत जल क्रांति का वैश्विक सिरमौर बन सकता है। 

1.पानी को कानूनी तौर पर देखें तो इसके भीतर नदी, नहर, कुआं, तालाब, वर्षा जल और भूगर्भ जल के मामले आते हैं। पानी का संकट राज्यों का नहीं बल्कि पूरे देश का है। नदियों को जोडऩे के लिए सुप्रीम कोर्ट के 10 साल पुराने फैसले के बावजूद नदियों के विषय को संविधान की समवर्ती सूची में नहीं लाया गया। इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा, जिसके बाद राज्य और केंद्र दोनों मिलकर इस बारे में ठोस काम कर सकेंगे। 

2. जल (नदी और तालाब) का विषय जंगल और जमीन से जुड़ा है। गोचर जमीन, जंगल और नदी के किनारे की जमीनों के राजस्व सीमांकन के नक्शों में भू-माफिया द्वारा किए जा रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए राष्ट्रीय जल पोर्टल बनें। 
3. जल (नदी, तालाब और भू-गर्भ जल) की गर्मियों और बारिश के समय में उपलब्धता का नवीनतम डाटा पोर्टल के माध्यम से सार्वजनिक हो। इससे समाज, मीडिया और सरकार को जल संकट की भयावहता का अंदाजा होगा। 

4. महानगरों, कस्बों और पंचायतों की मानव बस्तियों के नजदीक से गुजरने वाली नदियों के तट के लिए मास्टर प्लान में ग्रीन जोन की व्यवस्था बने। इसमें पक्के निर्माण और कॉलोनी की बसाहट की बजाय, पशुपालन, गौचरण, बागवानी, खेल के मैदान, पार्क, पेड़ों की नर्सरी और इको टूरिज्म के विकास को बढ़ावा दिया जाए।
5. नदियों में बालू और बजरी निकालने के लिए दिए गए सभी पट्टों को पोर्टल के माध्यम से सार्वजनिक किया जाए। नदियों को बर्बाद करने वाले अवैध खनन के माफिया को रोकने के लिए सी.सी.टी.वी. के साथ उपग्रह मानचित्रों का इस्तेमाल हो। 

6.पानी की समस्या के समाधान के लिए कई लाख करोड़ की नदी जोड़ो परियोजना और बड़े बांधों के प्रोजैक्ट से फायदे की बजाय दीर्घकालिक नुक्सान ज्यादा हैं। उस बड़े बजट से स्थानीय स्तर पर नदियों और तालाबों को रिचार्ज करने और पुनर्जीवित करने के छोटे प्रोजैक्टों को सफल बनाने की जरूरत है। पानी की कमी का सबसे बड़ा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। इसलिए ऐसे छोटे प्रोजैक्ट्स में लालफीताशाही और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पंचायत स्तर पर महिलाओं की निगरानी समितियां बनाई जाएं। 

7. शोधन के बगैर नाले या ड्रेनेज के गंदे पानी को नदी में डालने के लिए स्थानीय नगरपालिका, विधायक और सांसद की जवाबदेही तय की जाए। नालों की गाद और गंदे पानी के इस्तेमाल से नदियों के किनारे सघन वृक्षारोपण हो सकता है। मथुरा में चल रहे यमुना मिशन जैसे मॉडल को पूरे देश में सफल बनाने के लिए विधायक और सांसद निधि का इस्तेमाल हो।

8. तीर्थ स्थानों के विकास और नदियों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर केंद्र और राज्य की सरकारें भारी-भरकम बजट जारी करती हैं। विकास के नाम पर चल रही सरकारी परियोजनाओं में पक्के निर्माण और कंक्रीटीकरण से नदियों के किनारे पानी का कैचमैंट एरिया खत्म हो रहा है। ऐसी सभी योजनाओं को बंद करके उस पैसे से नदियों की गाद निकालने और सफाई का काम हो। 

9.पेयजल की कमी एक भयानक आपदा है, जिसे बोतलबंद पानी के कारोबारियों ने कई लाख करोड़ के व्यापार में बदल दिया है। सामुदायिक पानी का इस्तेमाल कर रहे इन कारोबारियों से भारी टैक्स और पानी के टैंकर माफिया से भारी जुर्माना वसूला जाए। आजादी के 75वें वर्ष पर आयोजित अमृत महोत्सव के अवसर पर ईको फ्रैंडली वाहन इंडस्ट्री को प्रोत्साहित करने के साथ पर्यावरण संजोने के लिए इन प्रस्तावों पर ङ्क्षचतन और अमल होना,सूखते समाज की सबसे बड़ी जरूरत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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