नदियों पर राज्यों के साथ केन्द्र का भी अधिकार हो

punjabkesari.in Tuesday, Apr 16, 2024 - 05:11 AM (IST)

बेंगलुरु के बाद चेन्नई और पूरे देश में पानी का संकट दिखने लगा है। राजस्थान के कोटा में आलनिया बांध सूखने से लोग गड्ढे से पानी निकालकर प्यास बुझा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में तो पानी भरने को लेकर नाबालिग किशोरी ने महिला की हत्या कर दी। ‘हर घर जल’ योजना में 2024 तक सभी गांवों के घरों में नल से पानी पहुंचाने का दावा किया गया था लेकिन जिन घरों में पाइप का कनैक्शन है, वहां पर पानी की नियमित आपूर्ति बड़ी चुनौती है। ऐसे में राज्यों और केन्द्र की जल से जुड़ी योजनाओं और नेताओं की गारंटी का मूल्यांकन जरूरी है। 

पानी के राष्ट्रीय संकट से निपटने के लिए नदियों को जोडऩे की  परियोजना 60 साल पहले बनी थी। उसके बाद नदियों के राष्ट्रीयकरण के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर साल 2012 में लम्बा और जटिल फैसला आया। उस पर अमल के लिए मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सभी राज्यों के साथ आई.एल.आर. कमेटी बनी थी लेकिन कई दशकों के विलम्ब की वजह से परियोजना की लागत 11 लाख करोड़ से ज्यादा होने के साथ सभी नदियां भी सिकुड़ गईं। देश में पानी के 6607 ब्लॉक्स हैं जिनमें से आधे से ज्यादा इलाकों में पानी के अत्यधिक शोषण से हालात गंभीर हो गए हैं। चुनावी समीकरणों की वजह से कोई भी राज्य अपने क्षेत्र की नदियों का पानी दूसरे राज्यों को देना नहीं चाहता। 

आई.एल.आर. कमेटी को 3 सुझाव : आई.एल.आर. कमेटी के सामने लिखित नोट के माध्यम से मैंने पानी के कानूनी पहलू से जुड़े 3 बड़े सुझाव दिए थे। पहला सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप पानी और नदियों के विषय को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करने के बाद ही केन्द्र सरकार इस बारे में प्रभावी नियमन कर सकती है। दूसरा-नदी, तालाब, कुएं और भूमिगत जल के सभी स्रोतों के नवीनतम आंकड़ों को इकट्ठा करके व्यावहारिक जल नीति बनाई जाए। तीसरा-बोतलबंद पानी के कारोबार से निजी कम्पनियों को सालाना 46 हजार करोड़ से ज्यादा की आमदनी होती है। मुफ्तखोरी और बर्बादी रोकने के लिए पानी की कीमत निर्धारित होनी चाहिए। 

उन सवालों पर मंथन करने की बजाय नौकरशाही ने उस परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने की तरकीब का बखूबी इस्तेमाल किया लेकिन उसका बेहतर पहलू यह था कि अधूरी परियोजनाओं और प्रोजैक्ट रिपोर्ट में शुरूआती लगाम लगने से सरकारी खजाने को खरबों रुपए की बचत हुई। उसके बाद जल संकट के ठोस समाधान की बजाय मुफ्त में पानी और नदियों की आरती करने जैसे सियासी प्रयासों से स्थिति बिगड़ती जा रही है। श्रीराम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार नदियों को भी जीवित इकाई का कानूनी दर्जा मिला है लेकिन मौसम में बदलाव, प्रदूषण, बढ़ती आबादी और शहरी कचरे की वजह से कई नदियां मृतप्राय: हो गई हैं। जीवन के अधिकार के तहत लोगों को शुद्ध पेयजल का संवैधानिक हक हासिल है। खेती और औद्योगिकीकरण के माध्यम से ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था को सफल बनाने के लिए सभी को पानी की नियमित आपूर्ति जरूरी है। 

संविधान संशोधन की जरूरत : संविधान के अनुच्छेद-262 और केन्द्र सूची की प्रविष्टि-56 में दिए गए अधिकार के बावजूद पानी और नदी के बारे में प्रभावी कानून बनाने के लिए केन्द्र सरकार को अधिकार नहीं है। कई आलोचकों के अनुसार पानी को समवर्ती सूची में लाने से संघीय व्यवस्था में राज्यों के अधिकार कमजोर होंगे। संसद की जल संबंधी स्थायी समिति और लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में पानी को संविधान की समवर्ती सूची में डालने की सिफारिश की गई थी। शिक्षा, बिजली और चिकित्सा जैसे विषय संविधान की समवर्ती सूची में हैं। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार तीसरे टर्म में बहुमत वाली सरकार विकसित भारत और जनकल्याणकारी राज्य के एजैंडे पर तेजी से काम करेगी। उसके लिए पानी को समवर्ती सूची में लाकर राष्ट्रीय जल नीति पर ठोस कदम उठाने से देशव्यापी जल संकट से निपटने में आसानी होगी। 

नदियों के अंतर्राष्ट्रीय और अंतर्राज्यीय मामलों में केन्द्र सरकार को संवैधानिक अधिकार हासिल हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों की नदियों के बारे में पाकिस्तान, चीन और नेपाल के साथ अंतर्राष्ट्रीय संधियां हैं।  सिंधु, रावी, ब्यास, जेहलम, चेनाब और सतलुज नदियों के पानी के बंटवारे के लिए पाकिस्तान के साथ 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ था। इन नदियों पर भाखड़ा जैसे बांध की वजह से भारत में हरित क्रांति की शुरूआत हुई थी। सिंधु समझौते के अनुसार इन नदियों से भारत अपने हक के पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। केन्द्रीय मंत्री गडकरी ने सिंधु नदी के पानी को यमुना नदी में लाने की घोषणा की थी, जिस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है। पिछले कई दशकों से सियासी और कानूनी विवाद की वजह से सतलुज, यमुना लिंक नहर का निर्माण भी अधर में लटका है। 

नदियां पूरे देश और समाज की हैं लेकिन कई राज्य सियासी लाभ के लिए पानी के बंटवारे पर विवाद और मुकद्दमेबाजी कर रहे हैं। दिल्ली में शराब घोटाले के साथ डी.जे.बी. कांट्रैक्ट में घोटाले मामले पर सी.बी.आई. और ई.डी. की जांच चल रही है। दिल्ली सरकार के अनुसार डी.जे.बी. का फंड रिलीज नहीं होने से जल संबंधी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है जबकि वित्त सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि 2015-16 के बाद दिल्ली जल बोर्ड को आबंटित 28400 करोड़ का विशेष ऑडिट कराने की जरूरत है। दूसरी तरफ नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के बावजूद टैंकर माफिया, अवैध बोरवैल और आर.ओ. कम्पनियों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई नहीं हो रही। 

नदियों और भूमिगत जल का अवैध रूप से दोहन करने वाले कारोबारी स्थानीय निकायों और सरकारों को कोई राजस्व नहीं देते। पानी के बेहतर प्रबंधन से खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि के साथ हजारों मैगावाट बिजली का अतिरिक्त उत्पादन हो सकता है। पानी की नियमित आपूर्ति से लोगों को बेहतर स्वास्थ्य मिल सकता है। किसानों को पानी की नियमित आपूर्ति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में समृद्धि के साथ बड़े पैमाने पर नए रोजगारों का सृजन होगा। प्रकृति और समाज के बीच सही समन्वय, नदियों के प्रवाह और पानी के किफायती इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए जल को संविधान की समवर्ती सूची में लाने की जरूरत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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