विपक्ष का मुकाबला ऐसे संगठन से जो काम करने की ताकत रखता है

punjabkesari.in Saturday, Mar 09, 2024 - 05:53 AM (IST)

आम चुनाव की घोषणा के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिपरिषद की यह अंतिम बैठक थी। स्वाभाविक तौर पर अंतिम बैठक में कुछ तात्कालिक फैसले होते हैं। सामने लोकसभा चुनाव हो तो उसकी चर्चा बिल्कुल स्वाभाविक है। किंतु इस बैठक का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें ऐसा लगा ही नहीं कि कोई सरकार अपने मंत्रिपरिषद की अंतिम बैठक कर रही है। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में माहौल ऐसा था कि हमें ही आगे भी सरकार चलानी है, इसलिए भविष्य के कार्यों की रूप-रेखाएं, योजनाएं तथा लंबे लक्ष्यों से फोकस नहीं हटना चाहिए। 

वास्तव में इस बैठक में न केवल 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विजन इंडिया डाक्यूमैंट या 2047 तक विकसित भारत का दृष्टि पत्र पेश किया गया बल्कि नई सरकार के अगले 5 साल की कार्य योजना के साथ अगली सरकार बनने के बाद के पहले 100 दिनों में क्या करना है इसकी भी रूप-रेखा सामने लाई गई। पांच मंत्रालयों के सचिवों ने इसमें अपना प्रैजैंटेशन देकर बताया कि अब तक कौन सी योजनाएं लागू की गई हैं ,या जो लागू होने वाली हैं उनका स्टेटस क्या है? 

सच कहा जाए तो इस बैठक के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने यही संदेश दिया कि चुनाव आते-जाते रहेंगे, सरकार चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा में नहीं बैठती, वह दूरगामी योजनाओं से हर क्षण देश के लिए काम करती रहती है। प्रधानमंत्री ने कहा भी कि पहले 100 दिन हनीमून पीरियड नहीं होता बल्कि ठोस कार्य करने का समय होता है। लगभग 8 घंटे तक मंत्रिमंडल परिषद की बैठक चलने का भी अपने आप में रिकॉर्ड ही होगा। मंत्रिपरिषद की इस तरह की बैठक का अतीत में भी कोई रिकॉर्ड शायद ही उपलब्ध हो। यह बैठक भी अचानक आयोजित नहीं हुई थी। जितनी जानकारी है उसके अनुसार 2 वर्ष से इसकी तैयारी चल रही थी। जो 2047 का दृष्टिपत्र पेश किया गया उनको दिसंबर 2021 से जनवरी 2024 तक सभी मंत्रालयों, राज्य सरकारों , शिक्षाविदों, उद्योग निकायों, नागरिक समाज, वैज्ञानिक संगठनों आदि के साथ अलग-अलग माध्यमों और अवसरों से परामर्श के बाद तैयार किया गया है। इसके लिए लगभग 2700 से अधिक बैठकें, कार्यशालाएं और सैमीनार आयोजित हुए। 

जैसा बताया गया 20 लाख से अधिक युवाओं का सुझाव भी इसमें शामिल किया गया। विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की जितनी आलोचना करे पर यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इतना व्यापक और ऐसी सोच, समझ, सक्षमता तथा परिश्रम साध्य प्रयास दूसरी ओर अभी तक दिखाई नहीं पड़ता है। आलोचकों का मानना है कि जानबूझकर चुनाव के पूर्व सरकार होने का लाभ उठाया जा रहा है, यह भी चुनाव प्रचार का एक हिस्सा है।

यानी यह मतदाताओं को बताना चाहते हैं कि हम बैठते नहीं, हमें तो केवल देश की चिंता है, हम अगली सरकार की कार्ययोजना भी तैयार कर बैठे हैं और आगे 2047 यानी स्वतंत्रता के 100 वर्ष बाद की भी। इस बात को स्वीकार कर लिया जाए कि यह प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की चुनावी रणनीति का अंग था तब भी क्या ऐसे प्रयासों से असहमति व्यक्त की जा सकती है? चुनाव की दृष्टि से देखें तो प्रधानमंत्री ने कहा भी कि हमें सरकार के गठन के बाद कार्यों को लोगों के बीच ले जाना चाहिए। मंत्रियों को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य और इससे होने वाले लाभ के प्रति लोगों को अवगत कराना चाहिए। ध्यान रखिए कि प्रधानमंत्री ने इस बैठक में कहा कि चूंकि विपक्ष मुद्दाविहीन है, इसलिए हमारे सामने लोगों को यह जाकर बताने का अवसर है कि 10 साल के कार्यकाल में वंचित,पिछड़े और आकांक्षी वर्ग के सशक्तिकरण के लिए सरकार ने क्या किया है। 

हमें लोगों को विश्वास दिलाने की जरूरत है कि राजग की सरकार ही भारत को विकसित राष्ट्र बनाएगी। तो इसमें बुराई क्या है? प्रधानमंत्री देश के साथ अपनी पार्टी के नेता हैं और चुनाव में विजय की दृष्टि से उन्हें हर तरह का मार्गनिर्देश भी देना है। इसलिए स्वाभाविक ही उन्होंने आगाह भी किया कि विपक्ष किसी तरह के विवादास्पद बयान सामने आने की उम्मीद करता है जिसे वह मुद्दा बना सके और हमें ऐसा अवसर नहीं देना है, सोच समझ कर बोलें। यह सच है कि चुनाव में किसी भी पक्ष की ओर से निकल गए ऐसे एक शब्द को भी तिल और तार बनाकर पेश करती है। 

अगर प्रधानमंत्री इसके लिए आगे कुछ कर रहे हैं तथा अपनी भावी योजनाओं तथा भारत के लक्ष्य आदि को लेकर जनता के सामने लाकर उससे  बात करने की सलाह दे रहे हैं तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है। वैसे बैठक के एजैंडा को देखें तो यह किसी भी दृष्टि से चुनावी तैयारी तक सीमित नहीं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रियों, अफसरों सहित सभी से संबंधित मंत्रालयों के रिकॉर्ड को देखने के लिए कहा ताकि पता चल सके कि भूतकाल में निर्णय कैसे विकसित हुए और पिछले 25 वर्षों में देश के विचार कैसे बदले हैं। उनके निर्देश में यह स्पष्ट है कि सरकार का हर विभाग विकसित भारत सैमीनार में जो एजैंडे तय हुए, उसके अनुरूप विचार और कार्य योजनाएं बनाता रहेगा। यानी चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा में तैयारी रुकेगी नहीं, सारी योजनाएं अगली सरकार आने के पूर्व तक तैयार हो जाएंगी। इस तरह कार्यों में निरंतरता का संदेश और व्यवहार है। 

अगर आप इस विजन को देखें तो भारत को विश्व का नेतृत्वकर्ता बनने का भाव इसमें स्पष्ट परिलक्षित होता है। यह दृष्टिकोण पत्र नागरिकों को सशक्त और टिकाऊ अर्थव्यवस्था बनने पर आधारित है। इसमें ऐसे भारत की परिकल्पना है जो प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में दुनिया को नेतृत्व प्रदान करेगा। प्रश्न है कि विपक्ष इस तरह का विजन या दृष्टिकोण क्यों नहीं प्रस्तुत करता? विपक्षी इसे चुनावी प्रचार का तरीका बताएं पर आम मतदाता यह भी पूछेंगे कि इस तरह के चुनावी प्रचार के समानांतर आपके पास हमें बताने के लिए क्या है? क्या ऐसा कोई विजन या दृष्टिपत्र भारत के लिए आपके पास है? सच यह है कि विरोधियों में ऐसे नेताओं का अभाव है जो गहराई से भारत और विश्व की स्थिति का अध्ययन करते हुए अपना व्यापक विजन बनाकर देश के समक्ष रखते हैं। 

विपक्ष को पता है कि उनका मुकाबला एक ऐसे संगठन परिवार से है जो जिसके पीछे 100 वर्षों के विचारधारा के आधार पर काम करने की ताकत है, जो देश से लेकर दुनिया के अनेक देशों में फैला है, जिसके पास अलग-अलग तरह के व्यक्तिगत और समस्थानिक थिंक टैंक हैं तथा जिसका राजनीतिक नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति के हाथों हैं, जिनका दृष्टिकोण लंबे कार्यों से विकसित हुआ है और बहुत कुछ वे देश के सामने रखते रहते हैं। 

बावजूद अगर विपक्ष इसके प्रत्युत्तर की तैयारी नहीं करता तो इसमें दोष भाजपा या नरेंद्र मोदी का नहीं है। जब लगातार वह अगली सरकार में भारत को तीसरी अर्थव्यवस्था तथा 2047 तक विकसित भारत की बात कर रहे हैं , उन पर अलग-अलग वैबसाइटों पर सुझाव मांगे जा रहे हैं, सैमीनार हो रहे हैं, कार्यशालाएं आयोजित हो रही हैं तो विपक्ष को समझना चाहिए कि निश्चित रूप से चुनाव के पहले वे इसे किसी तरह के दस्तावेज में अवश्य प्रस्तुत करेंगे। आम अनुभव यही बताता है कि देश के आम लोग इस तरह की चुनावी राजनीति का ही समर्थन करेंगे जिसमें उनके और देश के लिए इतना व्यापक दृष्टिकोण तथा कार्ययोजना के साथ उसे पूरा करने के विश्वास दिलाने का भाव भी हो। भारतीय राजनीति को अगर विचारों की पटरी पर लाना है तो चाहे उस विचार के कुछ बिंदुओं से हमारी आपकी असहमति हो, ऐसे प्रयासों को भविष्य की राजनीति के लिए शुभ संकेत माना जाना चाहिए।-अवधेश कुमार 
 


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